अपन चुनाव आयोग की मजबूरी नहीं जानते। पर नरेंद्र मोदी को भेजा गया नोटिस अपने गले नहीं उतरा। अपन ने शाम सवा सात बजे ओम माथुर से बात की। तो नोटिस अभी उन्हें मिला ही था। नोटिस अरुण जेटली को थमाते हुए उनने अपन से बात की। चुनाव आयोग से निपटने में जेटली की महारत। पर कोई अपन से पूछे। तो इससे मोदी को राजनीतिक फायदा ही होगा। आयोग जितना कड़ा रुख अपनाएगा। मोदी उतने फायदे में।
नोटिस पर मोदी बोले- 'मुझे कोई आकर बेईमान कह जाए। मुझे कोई आकर मौत का सौदागर कह जाए। तो क्या मैं चुप बैठा रहूं? क्या मैं उसी भाषा में जवाब न दूं? तब तक मैं तो विकास की बात ही कर रहा था। जब तक मुझे मौत का सौदागर नहीं कहा गया।' लब्बोलुबाब यह- मोदी अपने आप इस मुद्दे पर नहीं आए। सोनिया लेकर आई। आयोग ने जिन दो धाराओं में मोदी को नोटिस दिया। जरा पहले उन्हें पढ़ लें। पहली धारा- 'कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार ऐसी गतिविधि में हिस्सा नहीं लेगा। जिससे मतभेद बढ़ें। या नफरत पैदा हो। या विभिन्न जातियों, समुदायों, संप्रदायों या भाषा के आधार पर तनाव पैदा हो।' पहले अपन इस धारा की चीर-फाड़ कर लें। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा- 'गुजरात में हिंदू आतंकवादी।' आचार संहिता की यह धारा दिग्गी राजा पर लगने के लिए माकूल। पर आयोग ने अखबारी खबरों पर नोटिस नहीं लिया। मोदी को भेजे नोटिस में कहा- 'मंगरोल में आपका चार दिसम्बर का भाषण मीडिया रिपोर्ट से आयोग के ध्यान में आया।' यानी आयोग की निगाह सिर्फ मोदी पर। सोनिया ने मोदी को बेईमान और मौत का सौदागर कहा। तो आयोग ने गंभीर नहीं माना। मोदी को मौत का सौदागर किस सिलसिले में कहा। कौन नहीं जानता। मोदी को गोधरा के बाद की मौतों का सौदागर कहा। गोधरा के बाद हुए दंगे सांप्रदायिक। सो क्या सोनिया ने सांप्रदायिकता भड़काने की कोशिश नहीं की? पर आयोग ने इस अखबारी खबर पर गौर नहीं किया। अब अपन मोदी की बात करें। क्या कहा था मोदी ने। उनने भीड़ से पूछा- 'उस आदमी के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए। जिससे बड़ी मात्रा में एके-47 राईफलें बरामद हों। जिसकी तलाश चार राज्यों की पुलिस कर रही हो। जिसने पुलिस पर हमला किया हो। जिसके पाकिस्तान से संबंध हों। और गुजरात में घुसने की कोशिश कर रहा हो।' भीड़ ने कहा- 'मार दो उसे। मार दो उसे।' मोदी ने कहा- 'क्या इसके लिए मेरी सरकार को सोनिया बेन की इजाजत लेनी पड़ेगी।' अब इसमें नोटिस की पहली धारा कैसे लागू हुई। अपन नहीं जानते। नोटिस में बताई दूसरी धारा भी पढ़ लो। दूसरी धारा है- 'जाति-धर्म के आधार पर वोट हासिल करने की अपील नहीं की जानी चाहिए। मंदिर-मस्जिद-चर्च या किसी धर्म स्थल से चुनावी प्रोपेगंडा नहीं होना चाहिए।' यह धारा तो अपन को कहीं से लगती दिखती नहीं। सुनते हैं, चुनाव आयोग में आम सहमति नहीं थी। आयोग के वकील मेहंदीरत्ता दिल्ली में नहीं थे। आयोग ने फोन से बात की। अपन मेहंदीरत्ता की राय नहीं जानते। पर आयोग ने नोटिस दे दिया। जवाब भी आ जाएगा। जहां तक सवाल शिकायती तीस्ता सितलवाड़ का। तो मोदी के खिलाफ सितलवाड़ की जंग कोई नई नहीं। नोटिस की एक बात तो काबिल-ए-गौर। जरा आप भी पढ़िए- 'आयोग की प्रारंभिक राय है कि आपके भाषण में स्वर्गीय श्री सोहराबुद्दीन का जिक्र। उनके नाम को आतंकवाद से जोड़ने पर मौजूदा मतभेद बढ़ेंगे। नफरत पैदा होगी। विभिन्न समुदायों में तनाव पैदा होगा।' गौर करिए- 'स्वर्गीय और श्री सोहराबुद्दीन।' हुई होगी फर्जी मुठभेड़। पर अपन को ऐसा लगा। जैसे आयोग ने सोहराबुद्दीन को लोकप्रिय धार्मिक मुस्लिम नेता मान लिया।
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