एटमी करार पर बहस देर रात तक चली। मनमोहन भी शौरी-सिब्बल को सुनने बैठे रहे। यों तो राज्यसभा में सिब्बल-जेटली की नोंक-झोंक मजेदार होती। पर करार के एक्सपर्ट शौरी। वैसे भी जेटली गुजरात के मोर्चे पर। गुजरात की बात चली। तो बता दें- कांग्रेस का अपना सर्वेक्षण 85 का। बीजेपी के खाते में 95 सीटें। कांटे की लड़ाई का अहसास दोनों को। सो सोनिया ने पूरा जोर लगा दिया। मोदी ने भी तलवार म्यान से निकाल ली। मंगल की रात सिब्बल गुजरात छोड़ राज्यसभा में लेफ्ट से जूझ रहे थे। तो मोदी ने सोहराबुद्दीन का मुद्दा उठा दिया।
याद है- सोहराबुद्दीन मुठभेड़ में मारा गया था। मोदी सरकार ने कोर्ट में माना था- 'मुठभेड़ फर्जी थी।' डीआईजी वंजारा अभी जेल में। पर मोदी ने सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ का जिम्मा ले लिया। बोले- 'आतंकी को मारने के लिए सोनिया की इजाजत नहीं चाहिए। हिम्मत हो, तो सोहराबुद्दीन की मौत के लिए मुझे फांसी पर चढ़ा दो।' मोदी के मुद्दे अब अफजल और सोहराबुद्दीन। दोनों की पीठ पर कांग्रेस। यों अभिषेक सिंघवी बुधवार को मोदी के खिलाफ खूब भड़के। पर सोहराबुद्दीन की पैरवी से वोट मिलेंगे। यह सिंघवी की गलतफहमी। लगते हाथों अपन आज की बात भी कर लें। आज छह दिसम्बर। सो संसद में हंगामा होगा। अपने शाहनवाज सेंट्रल हाल में कांग्रेसी जयप्रकाश को समझा रहे थे- 'इस बार आपने संसद न चलने दी, तो हमें गुजरात में फायदा होगा।' पर कांग्रेस आत्महत्या पर उतारू हो। तो कौन रोकेगा? वैसे मोदी का मुकाबला इस बार अपने ही झड़फियों से। पर जेटली-माथुर को झड़फियों की ज्यादा फिक्र नहीं। फिक्र घर में बैठे केशुभाई से। जो अपने ही घर में आग लगाने पर आमादा। केशुभाई चुप रहते। तो मोदी को ज्यादा नुकसान नहीं होता। पर उनने झड़फियों की पीठ थपथपाना शुरू कर दिया। जैसे कांग्रेस से निकले नटवर उतने खतरनाक नहीं होते। जितने कांग्रेस में बैठे नटवर। अपन ने कल राज्यसभा में हुई नटवर की टिप्पणीं का जिक्र किया। पर बात वहीं खत्म नहीं हुई। नटवर ने बाकायदा बोलने की इजाजत मांगी। तो कांग्रेसियों की धुकधुकी बंध गई। नटवर देर रात अपनी बारी के इंतजार में बैठे रहे। रात साढ़े ग्यारह बजे जब सब भाषण हो चुके। तो दिग्विजय-यशवंत ने रहमान खान से गुहार लगाई- 'नटवर को बोलने दिया जाए।' रहमान को इसी का डर था। उनने दोनों से कहा- 'आप क्यों पैरवी कर रहे हैं। वह आपके दल के तो नहीं।' नटवर खुद खड़े हुए। तो रहमान सदन स्थगित करने के लिए खड़े हो गए। खड़े-खड़े उनने कहा- 'आपने जो बात सदन में कही। वह रिकार्ड में आ गई है। अब ज्यादा स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं।' कांग्रेस ने 'जान छूटी लाखों पाए' जैसी राहत की सांस ली। देर रात तक बहस चली। पर जवाब बुधवार को हुआ। प्रणव दा का वही रटा-रटाया जवाब- 'हाइड एक्ट का वन-टू-थ्री करार से कुछ लेना-देना नहीं।' बीजेपी को याद दिलाया- 'डंकल समझौते के समय भी आपकी ऐसी आशंका थी। जो गलत साबित हुई। अब यह भी गलत साबित होगी।' जवाब खत्म हुआ। तो जसवंत सिंह ने कहा- 'आप रिपब्लिकन सांसदों में लॉबिंग कर रहे हैं। पर अपनी संसद को विश्वास में नहीं ले रहे। जल्दबाजी न करें। संसद में आम सहमति बनाएं। तभी आगे बढ़ें।' यही बात सीताराम येचुरी ने कही। बोले- 'क्लिंटन अमेरिकी कांग्रेस से सीटीबीटी मंजूर नहीं करा पाए। तो उनने लोकतंत्र के सामने सिर झुका लिया था। अब संसद का बहुमत एटमी करार के पक्ष में नहीं। तो आप लोकतंत्र को नजरअंदाज न करें।' पर प्रणव दा ने दोनों को खारिज किया। तो एनडीए-यूएनपीए के साथ लेफ्ट भी वाकआउट कर गया। लेफ्ट ने लोकसभा में हुई गलती सुधार ली। तीन चौथाई राज्यसभा खाली हुई। तो प्रणव दा कपड़ों से बाहर हो गए। पर लेफ्ट के बीजेपी के साथ वाकआउट के मतलब समझिए। लोकसभा पर तलवार फिर लटक गई।
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