संसद की बहस का स्तर कितना गिर गया। यह अपन ने मंगलवार को राज्यसभा में देखा। पीएम जब कटघरे में खड़े हुए। तो पर्सनल अटैक पर उतर आए। फिर लालू यादव क्यों पीछे रहते। सो वे भी अपनी पर आ ही गए। देखते-देखते राज्यसभा गली-मोहल्ला दिखने लगा। एटमी करार पर बहस शुरू हुई। तो यशवंत सिन्हा ने पीएम पर बमबारमेंट शुरू कर दी।
बोले- 'आप रूस गए थे। एटमी करार क्यों नहीं करके आए।' पीएम चाहते तो चुप रहते। पर बोले- 'करार का तब तक कोई फायदा नहीं होता। जब तक एनएसजी से क्लीयरेंस न हो।' तब सिन्हा ने हमला किया- 'फिर आप गए क्यों थे।' दूसरा हमला किया- 'आप शंघाई क्यों नहीं गए?' पीएम बोले- 'वहां मंच पर भारत को प्रमुख जगह नहीं दी गई थी।' सिन्हा ने कटाक्ष किया- 'यही तो फर्क है आप और हमारे प्रधानमंत्री वाजपेयी में।' मनमोहन आग बबूला होकर सिन्हा से बोले- 'आप जब जापान गए थे। तो वहां के वित्त मंत्री ने आपसे मुलाकात ही नहीं की।' इस पर्सनल अटैक से सब दंग रह गए। पर सिन्हा ने पीएम को याद दिलाया- जिस वक्त जापान का वित्त मंत्री मुझे नहीं मिला। उस समय आप आर्थिक सलाहकार थे।' पीएम को घिरा देख लालू बचाव में उतरे। बोले- 'जब कर्पूरी ठाकुर बिहार के सीएम थे। तो आप उनके पीए थे।' सिन्हा मुस्कराते हुए बोले- 'हां, मैं सीएम का प्रधान सचिव था। और लालू जी मेरे कमरे में सिफारिशें लेकर आते थे।' सिन्हा ने एक कैदी की सिफारिश याद भी कराई। पर बात यहीं पर खत्म नहीं हुई। राम जेठमलानी पीएम के सबसे बड़े वकील थे। पर राम पीएम की वकालत भूल। अमेरिका की वकालत करने लगे। हद तो तब हो गई। जब उनने छाती चौड़ी करके कहा- 'मैं अमेरिका का दोस्त हूं।' आरएसपी के अबनी राय का सवाल जायज था। बोले- 'यह भारत की संसद है। या अमेरिका की। यहां भारत के प्रतिनिधि बोलेंगे या अमेरिका के।' बताते जाएं। राम को सोनिया ने वाजपेयी के खिलाफ लड़ने का तोहफा दिया। राम सारी उम्र इंदिरा-राजीव के खिलाफ लड़े। पर सोनिया ने सारे पाप माफ कर राज्यसभा भेज दिया। वह भी राष्ट्रपति के कोटे से। उस समय यशवंत सिन्हा थे नहीं। जब राम ने सिन्हा पर वार किए। सिन्हा लौटे तो राम की एक टिप्पणी पर बोले- 'आप तो हमेशा बीच में रहते हैं। जिधर मौका लगे, उधर हो जाते हैं।' इसी पर राम ने कहा- 'मैं किधर भी नहीं हूं। मैं अमेरिका के साथ हूं।' इस पर तो सदन में इतना बवाल हुआ। पूछो मत। अमर सिंह तो धरने पर जा बैठे। वह तो अहलूवालिया और रविशंकर ने बीच बचाव किया। वरना धरना उठता ही नहीं। पर ऐसा नहीं। जो एटमी करार पर गंभीर बात नहीं हुई। अमर सिंह ने सीताराम येचुरी को कटघरे में खड़ा किया- 'आप तो कह रहे थे। सरकार को आईएईए में जाने नहीं देंगे। फिर क्यों जाने दिया।' दिग्विजय सिंह को ही लो। उनने पीएम से कहा- 'आपने जब यह देखा। संसद का बहुमत आपके साथ नहीं। तो अमेरिकी लॉबी को अटल-आडवाणी के घर मनाने भेज दिया।' पर दिग्विजय ने असली हमला तो तब किया। जब उनने नटवर सिंह का एक इंटरव्यू पढ़कर सुनाया। जिसमें उनने कहा था- 'एटमी करार का मुझे भी पता नहीं था। जब व्हाईट हाउस में पहुंचे। तो हमारे सामने एटमी करार रख दिया गया। बाद में भारत पहुंचने पर सोनिया ने मुझसे पूछा- यह करार कैसे हुआ।' अब तक यह अखबारी खबर थी। अब यह संसद के रिकार्ड में। ताकि सनद रहे, बुश-मनमोहन करार के वक्त नटवर विदेश मंत्री थे। नटवर ने खुद खड़े होकर सदन में पुष्टि की- 'दिग्विजय सिंह ने जो कुछ कहा, वह सच है।' अब एटमी करार का सच सबके सामने। अपन तो शुरू से लिखते रहे- 'करार भारत के हित में नहीं। अमेरिका के हित में।'
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