आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र अंग्रेजों की साजिश समझ गए थे | उनने 28 जुलाई, 1857 को बकरीद के मौक़े पर फरमान जारी किया था | फरमान में कहा गया था -"जो भी गौ वध करने या कराने का दोषी पाया जाएगा, उसे मौत की सज़ा दी जाएगी |
अजय सेतिया
दादरी की घटना ने देश में गौहत्या के मामले को उछाल दिया था | मुसलमानों के अलावा भी भारत में कुछ लोग हैं ,जो अंग्रेजों की तरह गाय को सिर्फ पशु मानते हैं | वे खुद को वामपंथी और बुध्दीजीवी कहते हैं | दादरी की घटना पर उन ने अच्छा खासा बवाल काटा | उन्हें तो मोदी के खिलाफ बवाल का बहाना चाहिए था | अब फिर राजस्थान के बहाने बवाल खडा है | राजस्थान के अलवर में गाए तस्करी करने वाले पहलू खान को भीड़ ने पीट पीट कर अधमरा कर दिया | बाद में वह अस्पताल में हार्ट अटैक से मर गया | जब दादरी की घटना हुई थी, तब सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल हुई थी | अब राजस्थान की घटना हुई, तो सुप्रीम कोर्ट की भी नींद खुल गई | सुप्रीम कोर्ट को भी वामपंथियों की तरह इस देश की संस्कृति से कोई वास्ता नहीं | सुप्रीमकोर्ट का बुध्दीजीवीपन जाग गया है | वह गौरक्षको को बैन करना चाहती है | उस ने भारत सरकार को नोटिस दिया है कि क्यों न गौरक्षक दलों को बैन किया जाए | जबकि गौ रक्षक दल इसलिए हैं क्योंकि हिन्दू गौ को माता की तरह पूजते है | हिंदूवादी सरकार बनने से हिन्दुओं में गौ ह्त्या पर प्रतिबंध की उम्मींद जगी है | देशव्यापी अभियान में केंद्र सरकार से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग हो रही है | गौवंश की रक्षा के लिए कठोर क़ानून बनाए जाने की मांग की जा रही है |
गाय भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है | यहां गाय की पूजा की जाती है | यह भारतीय संस्कृति से जुड़ी है | लेकिन देश की संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश हो रही है | इसी लिए देशभर में गौरक्षा दल हैं | शायद सुप्रीम कोर्ट इस देश में चले गौ रक्षा आंदोलनों का इतिहास नहीं जानती | अपन उस का जिक्र भी आगे जा कर करेंगे | पहले गौहत्या और मुसलमानों का इतिहास जान लें | गौ ह्त्या के मामले में अब तक मुसलमानों का ही नाम आ रहा है | जबकि हदीसों में गाय के मांस को नुक़सानदेह बताया गया है | नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सल. फ़रमाते हैं कि " अल्लाह ने दुनिया में जो भी बीमारियां उतारी हैं, उनमें से हर एक का इलाज भी दिया है | जो इससे अंजान है , वह अंजान ही रहेगा | गाय के घी से ज़्यादा स्वास्थ्यवर्द्धक कोई चीज़ नहीं है -(अब्दुल्लाबि मसूद हयातुल हैवान) |" क़ुरआन में कई आयतें ऐसी हैं, जिनमें दूध और ऊन देने वाले पशुओं का ज़िक्र है | मुग़ल काल में गाए को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में दंगों का कहीं जिक्र नहीं मिलता | भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई | अंग्रेजों के भारत आने तक यहां गाय और सुअर की हत्या नहीं की जाती थी | हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे | अंग्रेजों को इन दोनों ही पशुओं के मांस की ज़रूरत थी | उन्होंने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरआन में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की क़ुर्बानी हराम है | इसलिए उन्हें गाय की क़ुर्बानी करनी चाहिए | कुछ मुसलमान उनके झांसे में आ गए | इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री पर मोटी रकम का झांसा दिया |
उन दिनों प्रसिद्ध उपन्यास-लेखक मुंशी प्रेमचंद गोरखपुर में अध्यापक थे । उन्होंने अपने यहाँ गाय पाल रखी थी । एक दिन चरते-चरते उनकी गाय वहाँ के अंग्रेज़ जिलाधीश के आवास के बाहर वाले गार्डन में घुस गई । अभी वह गाय वहाँ जाकर खड़ी ही हुई थी कि वह अंग्रेज़ बंदूक लेकर बाहर आ गया | उसने ग़ुस्से से आग बबूला होकर बंदूक में गोली भर ली । उसी समय अपनी गाय को खोजते हुए प्रेमचंद वहाँ पहुँच गए । अंग्रेज़ ने कहा कि 'यह गाय अब तुम यहाँ से ले नहीं जा सकते। तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने अपने जानवर को मेरे गार्डन में घुसा दिया । मैं इसे अभी गोली मार देता हूँ, तभी तुम काले लोगों को यह बात समझ में आएगी कि हम यहाँ हुकूमत कर रहे हैं ।' और उसने भरी बंदूक गाय की ओर तान दी । प्रेमचंद ने नरमी से उसे समझाने की कोशिश की, 'महोदय ! इस बार गाय पर मेहरबानी करें । कल से इधर नहीं आएगी । मुझे ले जाने दें साहब । यह ग़लती से यहाँ आई ।' फिर भी अंग्रेज़ झल्लाकर यही कहता रहा, 'तुम काला आदमी ईडियट हो - हम गाय को गोली मारेगा ।' और उसने बंदूक से गाय पर बदूक तान दी । प्रेमचंद झट से गाय और अंग्रेज़ जिलाधीश के बीच में आ खड़े हुए | प्रेमचंद ग़ुस्से से बोले, 'तो फिर चला गोली । देखूँ तुझमें कितनी हिम्मत है । ले , पहले मुझे गोली मार ।' फिर तो अंग्रेज़ की हेकड़ी हिरन हो गई । वह बंदूक की नली नीची कर कहता हुआ अपने बंगले में घुस गया ।
यूरोप दो हज़ार बरसों से गाय के मांस का प्रमुख उपभोक्ता रहा है | भारत में अपने आगमन के साथ ही अंग्रेज़ों ने यहां गौ हत्या शुरू करा दी | 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी | अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी ने सेना के रसद विभागों के लिए कसाईखाने बनवाए | गौ हत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों ने हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डाली | इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी | आख़िरकार महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंस डाउन को पत्र लिखा | महारानी ने इस पात्र में लिखा - "हालांकि मुसलमानों की ओर से की जा रही गौ हत्या पर आंदोलन शुरू हुआ है | पर हक़ीक़त में यह हमारे ख़िलाफ़ है, क्योंकि मुसलमानों से कहीं ज़्यादा गौ वध हम कराते हैं | तभी तो हमारे सैनिकों को गौ मांस मुहैया होता है |
आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र अंग्रेजों की साजिश समझ गए थे | उनने 28 जुलाई, 1857 को बकरीद के मौक़े पर फरमान जारी किया था | फरमान में गाय की क़ुर्बानी के खिलाफ चेतावनी दी गई थी | इस चेतावनी में कहा गया था -"जो भी गौ वध करने या कराने का दोषी पाया जाएगा, उसे मौत की सज़ा दी जाएगी | गौ ह्त्या के खिलाफ आन्दोलन तेज होता गया | गौ ह्त्या के खिलाफ देश भर से अंग्रेजों को ज्ञापन भेजे गए | इन ज्ञापनों पर पर हिंदुओं के साथ मुसलमानों के भी दस्तखत होते थे | आज़ादी के आन्दोलन के समय कांग्रेस के नेताओं ने वादा किया था कि गौ हत्या पर रोक लगेगी | महात्मा गांधी गौ ह्त्या पर पूर्ण प्रतिबंध के पक्षधर थे | वह कहते थे कि गौ माता निस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है | गाय का ज़िक्र करते हुए वह लिखते हैं-"गौ माता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है. हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बड़े होकर उसकी सेवा करेंगे | गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज़ की आशा नहीं करती | हमारी मां प्राय: रूग्ण हो जाती है और हमसे सेवा की अपेक्षा करती है | गौ माता शायद ही कभी बीमार पड़ती है | वह हमारी सेवा आजीवन करती है | लेकिन आज़ादी के तुरंत बाद गांधी की हत्या हो गई और कांग्रेस ने हिन्दुओं को धोखा दिया |
अक्तूबर-नवम्बर 1966 में गोरक्षा आन्दोलन चला । चारों शंकराचार्य तथा स्वामी करपात्री जी भी जुटे थे । जैन मुनि सुशीलकुमार जी तथा सार्वदेशिक सभा के प्रधान लाला रामगोपाल शालवाले और हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो॰रामसिंह जी भी बहुत सक्रिय थे । श्री संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे | भारत साधु-समाज, आर्यसमाज, सनातन धर्म, जैन धर्म और सिखों ने आन्दोलन में हिस्सा लिया | सात नवम्बर 1966 को संसद् पर ऐतिहासिक प्रदर्शन हुआ | देशभर के लाखों लोगों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया था | इंदिरा गांधी ने निहत्थे हिंदुओं पर गोलियाँ चलवा दी थी | सैंकड़ों साधू मारे गए थे | गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने इस्तीफा दिया था | गोली चलाने खिलाफ शंकराचार्य निरंजनदेव, स्वामी कृपात्री और महात्मा रामचंद्र वीर ने अनशन किया | राजस्थान के महात्मा रामचंद्र वीर का अनशन 166 दिन चला |
राजस्थान में अकाल पड़ता था | फिर भी देश में सब से ज्यादा गौशालाएं राजस्थान में पाई जाती हैं | गाय से इतना प्यार है राजस्थानियों को | बाज़ारों में हर दूकान पर गौरक्षा के लिए दान के डिब्बे रखे हैं | राजस्थान से गाय की तस्करी पर प्रतिबंध है | यह अलवर की घटना गाय तस्करी से जुडी है | पुलिस को सूचना मिली थी, गाय तस्करी की | पुलिस ने मौके पर जा कर दो ट्रक पकडे | पर चार ट्रक नाका पार कर चुके थे | जो ट्रक पकडे गए उन के पास गाय ले जाने के कानूनी कागजात नहीं थे | पुलिस को चकमा देकर निकल गए ट्रकों को गौरक्षको की भीड़ ने घेर लिया था | वहीं पर भीड़ ने इस पहलू खान की जम कर धुनाई की | चार दिन बाद वह अस्पताल में हार्ट अटैक से मर गया | राजस्थान सरकार ने दो केस बनाए हैं | गौ तस्करी का भी और गौरक्षकों पर भी | पर सुप्रीम कोर्ट चाहती है कि गौरक्षकों पर बैन लगे | क्या यह हिन्दुओं के साथ विश्वासघात नहीं होगा | जिन्हें आज़ादी के आन्दोलन में वादा किया गया था गौहत्या बैन का | सुप्रीम कोर्ट में गौरक्षक दलों को बैन करने की याचिका तब दाखिल हुई थी जब नरेंद्र मोदी अगर दादरी की घटना के बाद गौरक्षक दलों को "दूकानों की संज्ञा दी थी | गौरक्षक दल तब से बने हैं जब 1966 के आन्दोलन को इंदिरा गांधी ने बदूक की नाली से कुचल दिया था | एक तरफ मोदी और योगी के आने से हिन्दुओं में आशा जगी है, तो दूसरी तरफ उन पर प्रतिबंध की तलवार लटका दी गई है | |
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