उत्तराखंड में अगर आज चुनाव होता है भाजपा भुवन कंद्र खंडुरी को मुख्यमंत्री पद का उम्मींदवार घोषित करती है तो बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिल सकता है. इंदिया टूडे के ओपिनियन पोल के मुताबिक 70 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को 38 से 43 सीटें मिल सकती हैं. वहीं कांग्रेस को 26 से 31 सीटें मिलने का अनुमान है. अन्य दलों को 1 से 4 सीटें मिल सकती हैं.
वोट शेयर की अगर बात करें तो ओपिनियन पोल के मुताबिक बीजेपी को 43 फीसदी वोट, कांग्रेस को 39 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है वहीं अन्य दलों को 18 फीसदी वोट मिल सकती है. विधानसभा चुनाव को नजदीक देखते हुए उत्तराखंड की राजनीति गर्म हो गई है। सभी पार्टियां एक दूसरे को चुनौती देते नज़र आ रहे हैं. वहीं केदारनाथ की पूर्व विधायक और बीजेपी महिला नेता शैलारीनी रावत ने सीएम रावत को खुली चुनौती दे डाली.
ब्यूरोक्रेसी के भ्र्ष्टाचार पर पर्दा
हरीश रावत जब से मुख्यमंत्री बने हैं वह पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की ओर से केदारनाथ मंदिर और आपदा पीडितो की उपेक्षा को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्होने सर्वाधिक दौरे भी केदारनाथ के किए हैं. लेकिन उस इलाके के ग्रामिणो की समस्याए कम नहीं हुई हैं. इस का सब से बडा कारण ब्यूरोक्रेसी का भ्रष्टाचार है, लेकिन लूट का खुलासा होने के बावजूद मुख्यमंत्री ने ब्यूरोक्रेसी की लूट पर पर्दा डाल दिया.
आपदा राशि की बंदरबांट
हाल ही में आपदा पीडितो की राशि में से 12 करोड रुपया कैलाश खैर को दे कर मुश्किल में फंस गए है, केदारनाथ के आपदा पाडितो की उपेक्षा से खफा कांग्रेस छोड भाजपा में शामिल शैलारीनी रावत ने हरीश रावत को केदारनाथ से चुनाव लडने की चुनौती देते हुए कहा कि यदि उनमें हिम्मत हैं, तो आपदा पीड़ितों के दर्द का जबाव दें और आपदा प्रभावित केदारनाथ सीट से चुनाव लड़ कर दिखाएं. उन्होंने ने कैलाश खैर को आपदा मद से धनराशि देकर सीरियल बनाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
इस सीट पर चुनाव लड़े तो हो जाएंगे बेनकाब
पूर्व विधायक शैलारानी रावत ने कहा कि सीएम हरीश रावत केदारनाथ से चुनाव लड़ना चाहते हैं तो खुल कर सामने आएं। वह केदारनाथ पुनर्निर्माण के नाम पर पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता इससे विपरीत है। यदि वह इस सीट पर चुनाव लड़े तो जनता उन्हें बेनकाब कर देगी।
आपदा पीड़ितों का दर्द नहीं हुआ कम
उन्होंने कहा कि केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र में धरातल पर आज भी आपदा पीड़ितों का दर्द कम नहीं हुआ है। आपदा के तीन वर्ष बीतने के बाद भी आपदा पीड़ितों के परिवारों की विधवाएं न्याय के लिए भटक रहीं हैं.
झुला पुलो का निर्माण
विकास की भयानक तस्वीर इस तरह है कि केदारघाटी में पैदल झूला पुलों का निर्माण नहीं हुआ, ट्रालियों पर ही जिंदगियां सिमट कर रह गई हैं. आपदा पीड़ित परिवार दीनहीन स्थिति में हैं. 2000 से अधिक पीड़ितों को मुआवजा तक नहीं मिल पाया है.
आपदा पीड़ितों की संवेदना पर पहुंची ठेस
आपदा मद से कैलाश खैर को दस करोड़ से अधिक धनराशि देने पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि यह धनराशि यदि आपदा पीड़ितों को दी जाती तो सही होता. जिस स्तर पर सरकार ने यह निर्णय लिया है, वह काफी गलत है. इससे आपदा पीड़ितों की संवेदना पर ठेस पहुंची है.
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