सेंट्रल हाल की कुर्सियां ढूंढेंगी जेटली को

Publsihed: 25.Aug.2019, 12:41

अजय सेतिया / संसद का सेंट्रल हाल अरुण जेटली के बिना सूना सूना सा होगा | लोधी गार्डन की पगडंडियाँ ढूंढेंगी अरुण जेटली को | पंचशील पार्क की महफिल नीरस होगी अरुण जेटली के बिना | ये तीनों वे जगहें हैं जहां अपन कभी न कभी अरुण जेटली के साथ चले हैं , वाक की है, बैठे हैं , चाय की चुस्कियां ली हैं, राजनीतिक गपशप भी सुनी है और अंदर की बातें भी सुनी हैं |

पत्रकार के नाते अरुण जेटली से पहली मुलाक़ात 1992 में हुई थी , जब अपन दस साल तक डेस्क पर काम करने के बाद फिल्ड में आए थे | तब अरुण जेटली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे | मीडिया से उन का लगाव शुरू से ही रहा है , वह अक्सर तीन बजे की ब्रीफिंग के बाद भाजपा दफ्तर आ जाते थे | उन दिनों कृष्ण लाल शर्मा भाजपा के प्रवक्ता थे | वह ओल्ड स्कूल के जनसंघी थे , जबकि अरुण जेटली भाजपा की नई पौध थे | एक तरफ गोबिन्दाचार्य पार्टी का बौद्धिक मोर्चा सम्भाल चुके थे , तो दूसरी तरफ अरुण जेटली से अच्छा खासा तार्किक मसाला मिल जाता था | जेतली 1999 में बाकायदा पार्टी के प्रवक्ता बन गए , फिर तो ब्रीफिंग से लम्बी डी-ब्रीफिंग हुआ करती थी | उब दिनों पत्रकारीय क्षेत्र में अरुण जेटली की डी-ब्रीफिंग बनाम कांग्रेस में वी. एन. गाडगिल की डी-ब्रीफिंग की चर्चा रहती थी |

अरुण जेटली बिना सांसद बने ही वाजपेयी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बना दिए गए थे , साढ़े पांच महीने बाद अप्रेल 2000 में वह पहली बार राज्यसभा के सदस्य बन कर संसद में पहुंचे थे | अपन को तब तक संसद की कार्यवाही कवर करते सात साल बीत चुके थे , फिर तो लगातार संसद भवन के भाजपा कार्यालय  में कभी अरुण जेटली , तो कभी सुषमा स्वराज की महफिल सजने लगी | दोनों मंत्री होने के बावजूद मीडिया के चेहते थे | तीन साल बाद 2003 में अपना सेंट्रल हाल का पास बन गया था , वहां जा कर देखा तो पता चला कि अरुण जेटली सेंट्रल हाल में सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र थे | सेंट्रल हाल में जहां कहीं ज्यादा भीड़-भडका दिखे , समझ लेते थे कि जेटली की महफिल जमी है | उन के पास बैठने का मतलब होता था ज़िंदा दिली |

“काफी” के दौर चलते और ठहाके लगते रहते | संसद का सेट्रल हाल जीवंत हो उठता था | अरुण जेटली की महफिल में कांग्रेस के नेताओं की बात होती , तो भाजपा के नेताओं की भी होती | फ़िल्मों की बातें भी होती , तो हीरों हीरोइनों की भी | किस्सागोई का केंद्र बन गई थी अरुण जेटली की सेंट्रल हाल की महफिलें | बाद में कुछ लोग, जिन में कांग्रेस के लोग ज्यादा होते थे , सेंट्रलहाल की अरुण जेटली की महफिल को “अरुण की पाठशाला” भी कहने लगे थे, भले ही वे इर्ष्या से कहते थे , लेकिन सचमुच कई बार बहुत कुछ जानने सीखने को मिलता था | यूपीए शासन काल के दिनों में भी कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल की महफिल जेटली की महफिल के सामने फीकी पड जाती थी |

जेटली से अपनी घनिष्टता का दौर 2008 में शुरू हुआ , जब अपन पंचशील पार्क में सुबह की सैर करने जाने लगे | वैसे जेटली की लोधी गार्डन की सैर की महफिले ज्यादा मशहूर हैं , लेकिन अपन ने लम्बा समय जेटली के साथ पंचशील पार्क में सैर की है , जहां वह अक्सर अपने पडौसी और सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार के साथ आते थे | सैर के बाद महफिल जमती थी , जिस में चाय का दौर चलता था | अरुण जेटली के चाहने वाले पंजाबियों का झुरमुट उन के साथ बैठ कर गप्पे हांकता था | उस महफ़िल में राजदीप सरदेसाई भी हुआ करते थे | फिर जब सुरक्षा कारणों से जेटली को पंचशील पार्क में आने पर रोक दिया गया , तो जेटली सेंट्रल हाल में मिलते ही पूछते थे , सैर चल रही है ना | कई बार उन्होंने मेरे कालम को पढ़ कर बता भी कि अच्छा लिखा था |  

 

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