किसान,कश्मीर और बेरोजगारी हैं मुद्दे

Publsihed: 07.Jun.2017, 11:18

मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए | दो बाकी रह गए |  मंत्री आए दिन अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं | आलिशान बने नए मीडिया सेंटर में दावतें उड़ रही हैं | हर रोज कोई मंत्री मीडिया के सामने पेश होता है | मंत्री अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करते हैं | जिस पर नया जुमला लिखा होता है -" साथ है, विशवास है, हो रहा विकास है |" तीन साल से हाथ पर हाथ धरे बैठी कांग्रेस को भी अब कुछ सूझा | सोनिया गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई | बैठक के बाद गुलाम नबी ने भी जवाबी जुमला उछाला -"टेलीविजन पर हीरो है, जमीनी कामों में जीरो है |" पर अगर यह सच है,तो भाजपा जीत क्यों रही है | कांग्रेस हार क्यों रही है | कांग्रेस को जुमले उछालने की बजाए इस पर चिंतन करना चाहिए | जुमले का जवाब जुमले से दे कर तो राजनीति नहीं होती | सोनिया गांधी ने मीटिंग में खुद कहा कि दो साल बहुत दूर नहीं | पर दो सालों में भी कांग्रेस के उठ खड़े होने के आसार नहीं दीखते | सोनिया गांधी की सेहत साथ नहीं दे रही | राहुल गांधी में दम आने के आसार नहीं | यह बात सिर्फ अपन नहीं कह रहे | हर कांग्रेसी महसूस करता है | कांग्रेस को वक्त रहते जागना होगा | सोनिया का विकल्प ढूंढना होगा | राहुल गांधी पार्टी के उपाध्यक्ष बनें रहें | कांग्रेस के किसी दिग्गज नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए | भाजपा बहुत दिनों से सामूहिक नेतृत्व पर चल रही थी | अब सामूहिक नेतृत्व का प्रयोग कांग्रेस को करना चाहिए | आज़ादी से पहले कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व पर ही चलती थी | तभी कांग्रेस की जड़ें इतनी गहरी हो गईं | खैर कांग्रेस के नेतृत्व संकट से कांग्रेस खुद सुलटेगी | अपन क्यों मुफ्त के सलाहाकार बनें | अपन लौट चलते हैं वर्किंग कमेटी की बैठक पर | जिन दिनों अपन रिपोर्टिंग किया करते थे | वर्किंग कमेटी वाले दिन 24 अकबर रोड पर मेले का माहौल हुआ करता था | उन दिनों विजय भास्कर रेड्डी , नवल किशोर शर्मा , सीता राम केसरी , अर्जुन सिंह , वीएन गाडगिल, चंदू लाल चंद्राकर, आर के धवन जैसे धुरंधर हुआ करते थे | वर्किंग कमेटी के बाद अपन लोग उन के घर जाया करते थे | आफ दि रिकार्ड बहुत कुछ मिल जाया करता था | अब तो कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं होता | कुछ होता भी नहीं होगा बताने को , तो बेचारे क्या बताएं | जो गुलामनबी ने कहा ,उतना ही समझो | गुलामनबी ने मनमोहन सिंह के दो पैराग्राफ भी बाँट दिए | मनमोहन सिंह घर से तैयार करवा कर लाए थे | मोदी ने जब नोटबंदी की थी तो मनमोहन सिंह ने दो फीसदी जीडीपी गिरने की भविष्यवाणी की थी | भले ही मनमोहन सिंह अच्छे पीएम साबित नहीं हुए | उनकी केबिनेट बेलगाम हो गई थी | वह लगाम अपने हाथ में नहीं रख पाए | अर्थशास्त्री का अर्थतन्त्र भी गड़बड़ा गया था | महंगाई आसमान छूने लगी थी | पर बन्दे के अर्थतंत्र में अभी भी दम है | अरुण जेटली और वंकैया नायडू खिल्ली उड़ा रहे थे ,पर जीडीपी दो फीसदी ही गिर गई | तो मनमोहन सिंह ने वर्किंग कमेटी में लिखा हुआ सुनाया | उस में लिखा था-" कुछ तो नोटबंदी ने मारा | ग्रोस वेल्यू एडिड (जीवीए) में भी भारी गिरावट आई | निजी क्षेत्र धडाम से गिर गया है | अब आर्थिक गाडी सिर्फ एक ईंजन से चल रही है | और वह ईंजन है लोगों के रोजमर्रा के खर्चे | उद्योगों की जीवीए मार्च 2016 में 10.7 थी | मार्च 2017 में सिर्फ 3.8 रह गई | इस का सब से नकारात्मक असर रोजगार पर पडा है | युवक बेरोजगार हो गए हैं | रोजगार देने वाला निर्माण कार्य एकदम ठप्प हो गया है | " भले कोई चुप रहे या गुणगान करता रहे | मनमोहन सिंह का दस लाईन का भाषण सोलह आने सही है | पर कांग्रेस सही मुद्दे उठाने की बजाए खुद वामपंथियों के उठाए फर्जी मुद्दों में उलझी है | अब सुनिए गुलामनबी ने वर्किंग कमेटी का सार क्या बताया | बोले -" एनडीए के तीन साल निराशाजनक रहे | तीन साल में जनता में डर, खौफ और भय का माहौल पैदा हुआ | दलित, अल्पसंख्यक और महिलाएं डर में जी रहे हैं | " ये एनडीए की हवा खराब करने वाले वामपंथियों के गढे फर्जी मुद्दे हैं | कांग्रेस इन में उलझ गई है |  सोनिया गांधी का भाषण भी इन्हीं मुद्दों और असहिष्णुता के इर्द गिर्द रहा | असहिष्णुता नाम के जुमले की हवा निकल चुकी है | असली मुद्दे नहीं हैं | उधार के विजन और मुद्दों से कांग्रेस खडी नहीं होगी | कांग्रेस को सोनियां के भाषण की कुछ बातें उठानी चाहिए | तीन की शिनाख्त कर सकते हैं | कश्मीर, बेरोजगारी, किसान | इन मुद्दों पर सरकार फिलहाल फेल है | कांग्रेस इन्हें उठाएगी तो सरकार  विचलित होगी | बेरोजगारों,किसानों की सहानुभूति भी मिलेगी | फिलहाल कांग्रेस सहानुभूति के लायक ही है | बेरोजगार परेशान है,  किसानों में अफरातफऱी का माहौल है | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन चल रहे हैं | पर इन आंदोलनों का मतलब यह नहीं कि किसान कांग्रेस के साथ आ जाएंगे | बेरोजगारी के बावजूद युवा अभी मोदी के साथ हैं | कश्मीर के हालात भले ही बिगड़े हों | पर राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज की प्रेस कांफ्रेंसों से दिशा दिखती है | दिशा साफ़ है कि सरकार कश्मीर में झुकेगी नहीं , सफाया करेगी | कांग्रेस राज में तो अलगाववादियों पर छापों की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था | हुर्रियत वाले दामाद बने हुए थे | अब उनके सफाए की तैयारी है | फिर भले ही महबूबा सरकार की बलि देनी पड़े | 

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