किसान आंदोलन में मीडिया की भूमिका

Publsihed: 31.Dec.2020, 13:00

अजय सेतिया / ये जाने पहचाने पत्रकार हैं , जो बड़े बड़े मीडिया घरानों में काम करते हैं | वे अपनी विचारधारा के सम्पादकों की बदौलत नौकरी पा लेते हैं और फिर एक ही तरह की खबरें लिखते और बोलते हैं , उन के लिए उन की विचारधारा ही सर्वोच्च है , उन की विचारधारा विरोधी सरकार के खिलाफ कोई आन्दोलन कर रहा हो , तो वही उन के लिए खबर का असली मौक़ा होता है | फिर वे सही गलत नहीं देखते , सच झूठ नहीं देखते , तर्क कुतर्क नहीं देखते , बस आन्दोलन को हवा देना ही उन की पत्रकारिता का धर्म है| जो भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह के नारों को सेक्यूलरिज्म बता सकते हैं | जो मोदी तेरी कब्र खुदेगी के नारों को किसानों की ओर से लगाया गया नारा बता सकते हैं | जबकिआंदोलनकारी किसान तो हिन्दू और सिख हैं | न तो हिन्दू के लिए कब्र खुदती है , न सिख के लिए | यह नारा मुसलमान ही लगा सकते हैं , क्योंकि कब्र तो सिर्फ मुसलमान के लिए ही खुदती है | परते खुल रहीं है कि किसान आन्दोलन भी शाहीन बाग़ पार्ट -2 है | पर वे विचारधारा की पत्रकारिता करते हैं , सो वे खबर की तह तक नहीं जाएंगे , वे बाल की खाल नहीं निकालेंगे , जो कि एक पत्रकार का धर्म होना चाहिए | 

बधाई के पात्र हैं ये सभी वामपंथी पत्रकार जिन्हें सच को झूठ और झूठ को सच बना कर पेश करने की कला में महारत हासिल है | उन पत्रकारों को पहचाना जा सकता है , जिन्होंने इस तरह की पत्रकारिता कर के पाठकों के सामने झूठ परोसा और पढ़े लिखे पाठकों को अनपढ़ बना दिया | जबकि न नागरिकता संशोधन क़ानून भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है , न कृषि क़ानून किसानों पर बाध्यकारी हैं | कोई ज़रा सी सच्चाई लिखने की कोशिश करे तो वह गोदी मीडिया कह कर दुत्कारा जाएगा | गोदी मीडिया शब्द मोदी के साथ जोड़ कर गढा गया है | पर अगर गोदी मीडिया का मतलब सरकार की गोदी में बैठना है , तो ये सभी पत्रकार , जो अब मोदी सरकार की ऐसी तैसी करने को पत्रकारिता का धर्म समझते हैं , पहले कांग्रेस सरकार की गोदी में बैठे रहते थे | उन की तब की नागरिकता रजिस्टर पर की गई रिपोर्टिंग देख लो , जब चिदम्बरम ने संसद में बयान दिया था या किसानों को दलालों से मुक्त करने और कृषि में पूंजी निवेश के लिए कांट्रेक फार्मिंग का समर्थन करने वाले 4 दिसम्बर 2012 को संसद में दिए गए कपिल सिब्बल के भाषण की रिपोर्टिंग देख लो | 

सरकार का समर्थन करने वाले , या जो मोदी की गोदी में बैठे हैं , उन में से भी कितने पत्रकार हैं , जिन्होंने किसान आन्दोलन के पीछे की सच्चाई को जानने की कोशिश की है | विचारधारा की लड़ाई में भी वे वामपंथियों से पच्चास साल पीछे हैं , अब जबकि पंजाब के किसान दिल्ली को घेर कर बैठे हैं और उन तीन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं , जो उन पर बाध्यकारी ही नहीं हैं | तीनों में से दो क़ानून तो किसान को सिर्फ विकल्प देते हैं ( कांट्रेक्ट फार्मिंग और मंडियों से बाहर सौदा ) , तीसरा क़ानून किसानों के खिलाफ नहीं , लेकिन कारपोरेट घरानों को जमाखोरी की छूट देने वाला है , जिस का देश भर के उपभोक्ताओं को भी विरोध करना चाहिए , क्योंकि उस का सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा | पता नहीं पंजाब के किसान किस के उकसावे पर तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं | छटे दौर की बातचीत में बिजली का रेट बढाने वाले क़ानून और पराली जलाने पर भारी भरकम जुर्माने वाले आदेश को रद्द करने पर सहमत हो गई है , अब बात कानूनों को रद्द करने और एमएसपी पर अटकी है, देखते है 4 जनवरी की अगली वार्ता में क्या होता है | 

अगली बैठक में एमएसपी पर कोई फार्मूला लाएगी , पर किसान नहीं चाहते तो तीनों क़ानून भी रद्द कर देने चाहिए ,कांट्रेक्ट फार्मिंग तो क़ानून के बिना भी हो रही है | पर अपन आते हैं उस असली सवाल पर जो पत्रकारिता से जुड़ा है | यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर क्यों नहीं आ रही कि किसान आन्दोलन के नाम पर पंजाब में नक्सलवाद की पदचाप साफ-साफ सुनने को मिल रही है | किसानों को दिल्ली भेज कर नक्सलवादी पंजाब में सक्रिय हो गए हैं | यूपीए सरकार के समय ही आईबी की रिपोर्ट थी कि पंजाब में नक्सलवादी सक्रिय हो रहे हैं | कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने 2013 में खुद यह बात कही थी | पर मोदी सरकार 6 साल से सोई थी , नक्सलियों की मदद के लिए वामपंथी दलों ने किसानों को केंद्र सरकार के खिलाफ आन्दोलन के लिए तैयार किया, किसानों के बड़े पैमाने पर दिल्ली कूच के बाद नक्सलियों ने जिओ माबाईल के टावरों को तोड़ना शुरू कर दिया है | 1561 टावर तोड़े जा चुके हैं , यह हरकत नक्सलियों की छतीसगढ़ , झारखंड और आंध्रप्रदेश की हरकतों से मिलती जुलती है | कैप्टन अमरेन्द्र सिंह राज्य में चल रही नक्सली साजिशो से मंगलवार तक बेखबर थे , रिलायंस ने लिखित में शिकायत की तो अमरेन्द्र सिंह जागे है और पुलिस को सक्रिय किया है , लेकिन गोदी मीडिया तो अभी भी सोया हुआ है |

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