कहीं शाहीन बाग़ न बन जाए बुराड़ी

Publsihed: 30.Nov.2020, 21:00

अजय सेतिया / राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को मंडियों से बाहर बिक्री पर भी लागू करने , अलबत्ता उस से एक कदम आगे बढ़ते हुए एम्एसपी को कानूनन जरूरी बनाए जाने का भी समर्थन किया है | अपन ने शनिवार के अपने लेख में एम्एसपी को कानूनन लागू करने की बात उठाई थी | उसी दिन किसान संघ के संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी का यह बयान आया , अपने बयान में उन्होंने दिल्ली आ रहे किसानों पर हरियाणा पुलिस की ओर से किए गए अत्याचारों की भी भर्त्सना की | नए कृषि क़ानून में किसानों को मंडियों से बाहर फसल बेचने की छूट दी गई है , लेकिन उस पर एमएसपी लागू नहीं होगी | अपन ने शनिवार के कालम में जिक्र किया था कि सच यह कि किसानों को मार्केट में भी एमएसपी भी नहीं मिलती, आढती औने पौने भाव पर फसल खरीदते हैं क्योंकि ऍफ़सीआई लिमिटेड खरीद करती है  | इस बात का जिक्र कुलकर्णी के बयान में भी है , उन्होंने कहा कि सरकार का यह दावा तथ्यों के विपरीत है कि वह किसानों की उपज एमएसपी पर खरीद रही है , असल में एमएसपी पर सिर्फ 8-10 प्रतिशत फसल ही खरीदी जाती है |

हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनन बनाने के खुछ नुक्सान भी देखने को मिल सकते हैं , भाजपा के किसान मोर्चे से जुड़े रहे किसान नेता रामवीर अहीरवाल का कहना है कि एम्एसपी को कानूनी दर्जा मिलने पर कृषि मुनाफे का सौदा बनना शुरू हो जाएगा और बड़े किसान छोटे किसानों की जमीन खरीदना शुरू कर देंगे , छोटा किसान बेजमीन और बेरोजगार हो जाएगा | इस लिए उन का यह सुझाव बड़ा अच्छा है कि किसानों का वर्गीकरण किया जाए , दस एकड़ से कम जमीन वाले किसानों की सारी फसल को सरकार एमएसपी पर खरीदना सुनिश्चित करे , दस एकड़ से ज्यादा जमीनों वाले किसान मंडी में आढतियों को फसल बेचें | यह क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है , देश में छोटे किसानों की संख्या 95-96 फीसदी है | इस तरह वास्तविक किसान को सरकारी नीतियों का फायदा होगा | आगे चल कर दस एकड़ से ज्यादा जमीन वाले कृषि भूमि के जो मालिक ठेके पर या मजदूरों से खेती करवाते हैं , उन्हें आयकर के दायरे में भी लाना चाहिए, क्योंकि यह फेक्ट्री में मजदूरों से काम करवाने जैसा है |

फिलहाल अपन मौजूदा आदोलन और कृषि बिलों पर बात करते हैं | इस में कोई शक नहीं कि आन्दोलन राजनीतिक है , क्योंकि यह उस पंजाब से शुरू हुआ है , जहां की सरकार ने विधानसभा से केंद्र सरकार के कानूनों को खारिज करवाते हुए किसानों के हित की गारंटी वाले क़ानून बनाने का दावा किया है | जब मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने केंद्र के क़ानून खारिज करवा दिए तो वहां से आन्दोलन क्यों और आन्दोलन के समर्थन में अमरेन्द्र सिंह का राजघाट पर धरना क्यों | इस लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी में यह कहना कि आन्दोलन पूरी तरह से राजनीतिक है , गलत नहीं है | आन्दोलन में वे सभी भारत तोड़ो शक्तियाँ भी परदे के पीछे से काम कर रही हैं जो शाहीन बाग़ के आन्दोलन में पर्दे के पीछे काम कर रही थीं | शाहीन बाग़ में सक्रिय शरजिल इमाम पूर्वोतर को भारत से अलग करने की बात कर रहा था तो किसान आन्दोलन में पंजाब को भारत से अलग कर खालिस्तान बनाने के पोस्टर दिख रहे हैं |

शाहीन बाग़ में वामपंथी फ़िल्मी हस्तियाँ भडकाने का काम कर रहीं थी तो किसान आन्दोलन को भडकाने के लिए भी पंजाबी फिल्मों के अभिनेता दीप सिधू किसान के भेष में देखे गए हैं | वह खालिस्तान समर्थक है और शम्भू बार्डर मोर्चे को वही लीड  कर रहे हैं | किसान आन्दोलन में दिख रहे लाल झंडों के कारण बुराड़ी के शाहीन बाग़ बन जाने की आशंका भी पैदा हो गई है , वही शाहीन बाग़ जैसे लंगर शुरू हो गए हैं, बड़े बड़े किसान ट्रेक्टरों पर महीनों का राशन साथ ले कर आए हैं |  तो अब सरकार के हाथ पाँव फूले हैं | अमित शाह, राजनाथ सिंह , नरेंद्र सिंह तोमर और जे पी नड्डा ने आन्दोलन से निपटने के लिए रणनीतिक बैठक की | उधर किसान संगठनों ने भी उत्तरी दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर एक बैठक की है, यहां से हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश और पंजाब के लिए हाईवे का रास्ता गुजरता है, जिसे उन्होंने सील कर रखा है | रविवार की शाम को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर किसानों ने कहा कि वो आने वाले दिनों में दिल्ली में प्रवेश करने वाले सभी पांच प्रवेश बिंदु- सोनीपत, रोहतक, जयपुर, गाज़ियाबाद-हापुड़ और मथुरा- को बंद करेंगे |

आपकी प्रतिक्रिया