अजय सेतिया / दुनिया के हर देश में मिलने वाली लगभग हर चीज पर लिखा होता है मेड इन चाईना , यहाँ तक कि दुनिया भर में फ़ैली जानलेवा कोरोना वायरस की बीमारी भी मेड इन चाइना है , लेकिन इस बीमारी के इलाज के लिए बनी दवा पर लिखा होगा मेड इन इंडिया |
हालांकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस का इलाज ढूँढने में लगी है , दुनिया के 88 देश इस प्रयास में हैं , लेकिन जो देश सब से पहले दवा बना लेगा , वह दुनिया का बादशाह कहलाएगा | उम्मींद करनी चाहिए कि वह भारत होगा , क्योंकि जहां दुनिया के सभी देश अभी पहली स्टेज पर परीक्षण कर रहे हैं , वहीं बंदरों पर सफल प्रयोग हो जाने के बाद भारत में दवा का निर्माण शुरू हो चुका है |
है ना चौंकाने वाली खबर |
जी हाँ आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध के आधार पर भारत के सीरम इंस्टीट्यूट, जो कि पूना में स्थित है , ने दवा का निर्माण शुरू कर दिया है | कंपनी के सीईओ और प्रमोटर आदर पूनावाला ने कहा है कि दवाई का बाकायदा ट्रायल शुरू हो चुका है |
असल में आक्ल्स्फोर्ड यूनिवर्सिटी दवा बनाने कि होड़ में इस लिए आगे हैं क्योंकि एक साल पहले ही चीन में कोरोना वायरस जैसे लक्ष्ण पाए गए थे | यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने तभी परीक्षण शुरू कर दिया था | यानी वास्तव में कोरोना वायरस फैलने से पहले ही परिक्षण शुरू हो चुका था | मोंटाना में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रॉकी माउंटेन लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने मार्च में ऑक्सफोर्ड वैक्सीन की एक खुराक के साथ छह रीसस मकाक बंदरों को टीका लगाया था |
परीक्षण करने वाले शोधकर्ता विन्सेंट मुंस्टर ने कहा कि इस से पहले जानवरों को भारी मात्रा में वायरस के संपर्क में लाया गया था , जो महामारी का कारण बन रहा था – यह प्रयोगशाला में भी अन्य बंदरों को लगातार बीमार कर रहा था | तब वेक्सीन का प्रयोग ऐसे बंदरों पर किया गया जिन का 98 प्रतिशत डीएनए मानव से मिलता है , ये सभी छह बंदर टीका लगाए जाने के बाद बाकी जानवरों के साथ छोड़ दिए गए थे , 28 दिन बाद जब चेक किया गया तो पाया गया कि वायरस से संक्रमित जानवरों के बीच रहने के बावजूद सभी छह बंदर स्वस्थ थे | बाद में मनुष्यों पर भी प्रयोग किया गया तो दवा हानि रहित पाई गई |
23 अप्रेल से बड़े पैमाने पर इंसानों पर प्रयोग शुरू हो चुका है , 31 मई तक 6,000 से ज्यादा मनुष्यों पर कोरोनोवायरस वैक्सीन का प्रयोग किया जाएगा | इस से यह पता चलेगा कि इस दवा का इस्तेमाल न सिर्फ सुरक्षित है , बल्कि बीमारी को रोकने में भी कामयाब है | सितम्बर में इस टीके का परीक्षण ब्रिटेन में होगा , लेकिन इस से पहले ही कम्पनी के मालिक ने रिस्क ले कर दवा का उत्पादन शुरू कर दिया है , उस का मानना है कि अगर ट्रायल कामयाब न भी रहा तो यह दवा किसी अन्य बीमारी में उपयोगी साबित होगी |
क्लिनिकल ट्रायल सफल होने की सूरत में कम्पनी पहले छह महीनों तक 40 से 50 लाख डोज हर महीने तैयार करने के लक्ष्य के साथ काम करेगी | यदि यह प्रभावी साबित होता है तो टीके की पहली कुछ मिलियन खुराक सितंबर तक उपलब्ध हो सकती है | सितम्बर से हर रोज एक करोड़ टीके बनने शुरू हो जाएंगे | अक्टूबर में कम्पनी में 2 से 4 करोड़ तक वेक्सीन तैयार होगी |
हालांकि किसी भी नई दवा के निर्माण के लिए तय नियामकों का पालन करना होता है , लेकिन कम्पनी को संकेत मिले हैं कि इंसानों पर सफल प्रयोग के बाद इमरजेंसी के कारण नियामकों में छूट मिल जाएगी |
भारत में इस वैक्सीन की कीमत एक हजार रुपये रुपये प्रति डोज के आसपास होगी , जबकि बाकी सभी देशों में कीमत दस गुना तक हो सकती है | एमएमआर (खसरा, कण्ठमाला, और रूबेला) जैसे टीके की कीमत भारत के मुकाबले ब्रिटेन में 10 गुना है | यह वैक्सीन पुणे स्थित सीरम कंपनी में ही तैयार की जाएगी | नया प्लांट तैयार करने में 3 हजार करोड़ और 2 साल का समय लगेगा | इसलिए कोरोना वायरस की वेक्सीन तैयार करने के लिए कम्पनी बाकी सभी इसके लिए हम यहां बाकी सभी वैक्सीन का उत्पादन बंद कर देंगे. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर इस प्रोजेक्ट में 15 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा |
कम्पनी ने उम्मीद जाहिर की है कि भारत सरकार भी पार्टनर बनेगी, जिससे कि कम्पनी खर्चेों की भरपाई कर सकेंगी | अगर ट्रायल सफल हो जाता और दवा सभी मानकों को पूरा करती है तो भारत के लिए यह गर्व की बात होगी कि सरकार की भागेदारी वाली कम्पनी ने दुनिया को उस मर्ज से निजात दिलाई , जो चीन ने दिया था |
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