अजय सेतिया / यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाकआउट करने से पहले कई बातों के बारे में विचार नहीं किया | देश की जनता को लाकआउट के लिए सिर्फ चार घंटे दिए गए | 24 मार्च को रात आठ बजे वह टीवी पर आए और अपना भाषण खत्म करते करते रात 12 बजे से लाक आउट का एलान कर दिया | जिस तरह नोट बंदी करते समय कुछ बातों का ध्यान नहीं रखा गया था और बाद में कम से कम सौ बार नियमों में बदलाव किया गया | ठीक वैसे ही लाक डाउन में समस्या का सामना होने पर समाधान ढूंढा जा रहा है | यानी प्यास लगने पर कुआं खोदने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है |
इसे माना ही जाना चाहिए कि लाक डाउन का फैसला केबिनेट में लिया गया था , तो केबिनेट में क्या श्रम मंत्री या गृह मंत्री को यह नहीं बताना चाहिए था कि दिल्ली , मुम्बई और सभी प्रदेशों की राजधानियों में लाखों मजदूर रहते हैं , जो दैनिक मजदूरी कर के अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं , उन का क्या होगा | अगर यह बात शुरू में ही प्रधानमंत्री के ध्यान में लाई जाती तो प्यास लगने पर कुआं खोदने की जरूरत नहीं पडती और उतर प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्रियों को दिल्ली की सीमाओं पर अपने नागरिकों के खाने पीने रहने के लिए इंतजाम नहीं करने पड़ते |
प्रधानमंत्री ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का एलान किया था , 23 मार्च से सभी ट्रेनें बंद कर दी गईं , जब कि उस दिन न तो जनता कर्फ्यू था , न ही लाक डाउन किया गया था , मतलब साफ़ है कि सरकार 24 मार्च से लाक डाउन का फैसला कर चुकी थी | प्रधानमंत्री 22 मार्च को ही रात को टीवी पर आ कर लोगों को एहतियात के तौर पर आने वाले 48 घंटों में अपने अपने ठिकाने पर पहुंचने के निर्देश दे कर ट्रेनों को बिहार , यूपी , राजस्थान भेज देते और ट्रेनें भी 24 मार्च आधी रात से बंद होती तो इस समस्या से निपटा जा सकता था |
दूसरी तरफ यह भी सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय से पहले लाक डाउन का कदम उठा कर दूरदर्शिता का काम किया था | यह प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का ही नतीजा है कि सौ से 1000 केस तक पहुंचने में 12 दिन लगे , जबकि विकसित देशों ने बहुत देर बाद लाक डाउन किया था , जिस कारण वहां 12 दिन में सौ से 3500, 5000 और 8000 तक केस पहुंच गए थे | यानी ठीक समय पर लाक डाउन के कारण ही हम काफी हद तक बचाव कर पाए हैं | हालांकि जनता , ख़ास कर एक ख़ास समुदाय ने लाक डाउन की धज्जियां उड़ा कर सभी को खतरे में डालने की कोई कसर बाकी भी छोडी |
दिल्ली और महाराष्ट्र को देश के सब से विकसित राज्य माना जाता है , लेकिन इन दोनों ही राज्यों में लापरवाही हद से ज्यादा हुई , इन दोनों राज्यों के नागरिकों ने एहितियातों का पालन नहीं कर अपने ही राज्य और पडौसी राज्यों के नागरिकों को संकट में डाला | दिल्ली को पहले शाहीन बाग़ से निपटना पड़ा , फिर यूपी , बिहार के मजदूरों ने लाकडाउन को फेल किया तो अब निजामुद्दीन इलाके में अपना सालाना जलसा कर रही तबलीगी जमात ने दिल्ली को मुश्किल में डाला है |
लाक डाउन से पहले ही वहां भारत के कई प्रदेशों और दुनिया भर के कई देशों से आए 1200 मुस्लिम जमा थे , इस सम्बन्ध में न तो स्थानीय प्रसाशन को कोई जानकारी थी , न ही पुलिस को , जैसे शाहीन बाग़ में आईबी फेल हुई थी , वैसे ही निजामुद्दीन में भी फेल हुई | लाक डाउन होने के पांचवे दिन रविवार को जब निजामुद्दीन के तबलीगी जमात के अड्डे पर डेढ़ सौ लोगों के बीमार होने की खबर आई तब सब के हाथ पाँव फूल गए | हालांकि अभी टेस्ट होना बाकी है , लेकिन करीब ढाई सौ लोगों में कोरोना वायरस के लक्ष्ण पाए जाने की खबर है , उन्हें कई अस्पतालों में भर्ती करवाया गया है और बाकी के साधे नौ सौ लोगों को कोरेटाईन में रखा जाएगा |
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