लाक डाउन के आफ्टर इफेक्ट

Publsihed: 29.Mar.2020, 17:16

अजय सेतिया / देश भर में 21 दिन का लाक डाउन लागू होने के तीसरे दिन ही दिल्ली में अफरा तफरी मच गई | एक तरफ ऐसी अफवाहों का बाज़ार गर्म था कि लाक डाउन अवधि आगे भी बढ़ेगी , तो दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उन लाखों मजदूरों के खाने-पीने का इंतजाम करने में पूरी तह विफल साबित हो रहे थे | पहले दिन तो उन्होंने सिर्फ 20 हजार दिहाड़ी मजदूरों के लिए खाने की व्यवस्था की थी , जबकि जरूरत कम से कम चार लाख लोगों के लिए भोजन की थी | यह एहसास उन्हें दुसरे दिन हुआ तो उन्होंने 2 लाख लोगों के भोजन की व्यवस्था करने का एलान किया लेकिन तीसरे दिन उस में भी विफल हो गए | नतीजा यह निकला कि यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से आ कर दिल्ली में काम करने वाले लोगों में बेचेनी बढ़ गई | ख़ास कर यूपी –बिहार के मजदूरों का दिल्ली में बिना काम के दिल्ली में रहना मुश्किल हो गया |

इधर व्यवस्था में नाकाम आम आदमी पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं ने यह कर कर उन का होंसला तोड़ा कि लाक आउट तो 21 दिन से भी ज्यादा चलेगा , यह सच भी हो, तो भी उन्हें उन के रहने खाने की व्यवस्था करनी चाहिए थी , जैसा कि अरविन्द केजरीवाल ने 25 मार्च को प्रेस कांफ्रेंस में एलान किया था | आरोप तो यहाँ तक है कि केजरीवाल सरकार ने ही लाखों मजदूरों और फेक्ट्री-कारखानों के कर्मचारियों को डीटीसी बसों पर बदरपुर बार्डर और रोहतक बार्डर पर पहुंचाया | दिल्ली में लाक डाउन पूरी तरह विफल होने से यूपी , बिहार , हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के हाथ पाँव फूल गए | योगी आदित्य नाथ और अशोक गहलोत ने अपने नागरिकों को लेने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर बसें भेज दीं तो बिहार के मुख्यमंत्री ने इस का विरोध किया , क्योंकि इस से कोरोना वायरस के व्यापक संक्रमण की स्थिति पैदा होने की आशंका बढ़ जाती |

बिहार के मुख्यमंत्री ही नहीं , बदरपुर बार्डर की हालत देख कर केंद्र सरकार के भी होश उड़ गए , यह तो कोरोना वायरस को सीधा बुलावा था | कम से कम दिल्ली सरकार को तो इस का अंदाज होना चाहिए था , वह तो केद्र सरकार से बात कर के उसे आगाह कर सकती थी | दिल्ली के उप-राज्यपाल भी कोई अंदाज नहीं लगा सके ,अब तो उन की क्षमता और योग्यता पर भी सवाल उठने लगे हैं | बदरपुर बार्डर पर लाखों की भीड़ देखने के बाद केंद्र सरकार ने रातों-रात दिल्ली सरकार को एसडीआरऍफ़ के अंतर्गत प्रवासी मजदूरों को शेल्टर होम, भोजन और दवाईयां उपलब्ध करवाने के लिए 29000 करोड़ रुपए जारी किए | इस के अलावा रविवार को गृह मंत्रालय ने पांच सूत्रीय निम्न आदेश जारी किया |

1.सभी राज्यों में तुरंत अस्थाई शेल्टर होम बनाए जाएं , जहां माईग्रेटीड मजदूरों और अन्य जरुरतमंदों के रहने खाने की व्यवस्था हो |

2.जो लोग एक जगह से दूसरी जगह के लिए रवाना हो चुके हैं , उन्हें सब से नजदीकी सेल्टर होम में ठहराया जाए , उन्हें 14 दिन तक आगे उन के गाँवों तक नहीं जाने दिया जाए |

3. सभी उद्योगपति , फेक्ट्री मालिक , दूकानदार और व्यापारिक संस्थान लाक डाउन  के दौरान अपने कर्मचारियों का वेतन बिना कटौती उसी दिन जारी करेंगे , जिस दिन वे पहले देते थे |

4. जहां कर्मचारी किराए के मकानों में रह रहे हैं , उन के मालिक उन से एक महीने का किराया नहीं लेंगे |

5. अगर कोई मकान मालिक विध्यार्तियों या मजदूरों को मकान खाली करने के लिए कहेगा तो उन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी |

सभी जिलों के डीएम  , और एसपी उपरोक्त आदेशों का पालन करवाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे |

अगर केंद्र सरकार को आने वाले खतरे का जरा भी एहसास होता तो 24 मार्च को प्रधानमंत्री के राष्ट्र को सम्बोधन के समय ही इस तरह के कड़े आदेश जारी होने चाहिए थे कि मजदूरों और कर्मचारियों का पलायन रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी , शेल्टर होम बनाने और भोजन दवा के लिए केंद्र सरकार उन्हें धन उपलब्ध करवाएगी | प्रधानमंत्री के भाषण में इतना कह देने से काम नहीं चलता कि फेक्ट्री –कारखाना मालिक, उद्योगपति आर दुकानदार अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं काटें | अगर ऐसा होता तो लाखों मजदूर अपने गावों में जाने के लिए पैदल ही नहीं चल पड़ते | रविवार को जारी किया गया आदेश भी पर्याप्त नहीं है , दिल्ली में ही ऐसे अनेक वरिष्ठ नागरिक हैं , जिन की जिंदगी किराए पर चढाए गए मकान या कमरे से चलती है | सरकार के आदेश से उन का महीना कैसे चलेगा | निजी लोगों की भरपाई करने के लिए सरकार ने अभी भी कोई आदेश जारी नहीं किया है | 

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