कम्युनिस्टों खालिस्तानियों का गठजोड़

Publsihed: 28.Jan.2021, 19:38

अजय सेतिया / अपन ने जब नवंबर में ही कहा था कि यह पंजाब के समृद्ध  किसानों का आंदोलन है । और किसान भी ऐसे जिन की अपनी आढ़त की दूकानें है । और सरकारी खरीद एजेंसियों के अफसरों से गठजोड़ कर के छोटे किसानों का शोषण करते हैं । तो भाजपा के ही एक जाट किसान नेता ने टीवी चैनल पर अपन को भला बुरा कहा था । किसानों की कुछ मांगे जायज है। तीनों कानूनों में खामियां भी भरपूर है। उस के दूरगामी नतीजे भी भयानक होंगे । तीनों कानूनों से किसानों का भले कोई नुक्सान नहीं । पर कारपोरेट घरानों की पांचों उंगलियां घी में होंगी । दूसरी तरफ सच यह भी है कि आंदोलन की रूपरेखा बहुत गहरी थी । अनेक शक्तियों ने मिलकर साजिश रची थी । दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने पिछले कई सालों से जमीन पर काम किया था । विदेशों में बैठे खालिस्तानी खाद पानी डाल रहे थे । सरकारी अमले से मिलीभगत कर आढ़त से हजारों करोड़ की कमाई करने वाले बड़े किसान आंदोलन की रीढ़ की हड्डी बने । जो छोटे किसानों से एमएसपी से कम भाव पर गेहूं चावल ले कर सरकार को एमएसपी रेट पर बेचने का गौरखधंधा करते हैं । भाजपा, कांग्रेस, अकाली हर पार्टी का नेता इस लूट में शामिल है । इन पार्टियों के नेताओं की आढ़त की दूकानें हैं। सच यह है कि भ्रष्ट अफसरों से इन की मिलीभगत के चलते छोटे किसानों को कभी एमएसपी नहीं मिली । इसलिए कम्युनिस्टों और खालिस्तानियों के लिए उन्हें लामबंद करना आसान था । मोदी सरकार ने एक साथ तीन कानून बना कर उन्हें मौका दे दिया।  

इसमें सिखिज्म के खतरे में होने का तड़का लगा कर जाट सिखों को भड़काया गया । जमीनों के मालिक तो राय सिख और बनिया सिख भी है, लेकिन वे आंदोलन में नहीं थे । हरियाणा और यूपी के भी जाट ही आंदोलन में शामिल थे । इन दोनों राज्यों के भी गैर जाट किसान आंदोलन में शामिल नहीं हुए । लालकिले की शर्मनाक घटना के बाद आंदोलनकारी किसान नेता मुहं छुपा रहे हैं। आंदोलन का शांत हो कर विरोध कर रहे हरियाणा के अहीर यादव सैनी बृहस्पतिवार को भारत माता के सम्मान के लिए तैश में आ गए । 21 गांवों के अहीर किसानों ने मिलकर दिल्ली जयपुर हाईवे के मैसानी बैराज से आंदोलकारियों को भगा दिया । इसी हाईवे में शाहजहांपुर के आसपास के 45 अहीर गांवों ने गहलोत सरकार को चेतावनी दे दी वह 24 घंटे में हाईवे खाली करवाए । सिंधू बार्डर पर किसानों की तादाद आधी भी नहीं रही । दिल्ली-हरियाणा  पुलिस ने आप्रेशन शुरू कर दिया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी अपने स्टाइल से काम शुरू किया है । उन्होंने गाजीपुर बार्डर पर बैठे किसानों का हगना-मूतना बंद करवा दिया । पोर्टेबल टायलट हटा दिए गए हैं और पानी की सप्लाई बंद कर दी है। संदेश साफ , आप देश की इज्जत के साथ खेलेंगे तो आप को आंदोलन की आजादी नहीं दी जा सकती। 

अहीर - यादव - सैनी - ब्राह्मण - ठाकुर किसान हर जगह आंदोलन के खिलाफ थे । देश भर के किसानों का भी इस आंदोलन से कुछ लेना देना नहीं । आंध्र, महाराष्ट्र, गुजरात से तो कानूनों के समर्थन की खबरें आई। क्योंकि एमएसपी का गौरखधंधा सिर्फ पंजाब हरियाणा में हो रहा है । एमएसपी का सर्वाधिक  फायदा इन्ही दोनों राज्यों के किसानों को मिलता है। जिसे कोई और लूट ले जाता है।  इस लूट को समाप्त कर उसका लाभ असली किसान को मिले , यह हर कोई चाहता है । इसीलिए छोटे किसानों को मंडियों से बाहर सौदा करने का विकल्प दिया गया है । लेकिन रास्ता दूसरा भी हो सकता था, बल्कि होना ही चाहिए था कि सरकारी एजेंसियां की बड़े आढ़तियों से सांठगांठ रोकने का बंदोबस्त किया जाता। एमएसपी पर सारी फसल की खरीद तो नहीं हो सकती । इसलिए सरकार इसे कानूनन नहीं बना सकती , क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज भी रेट एमएसपी से तीन चौथाई है। इसलिए किसानों की यह मांग प्रेक्टिकल नहीं। पर छोटे किसान की पूरी फसल खरीदने की गारंटी पर विचार होना चाहिए।

किसानों और सरकार की बातचीत के दौरान ही लालकिले से ट्रेक्टर परेड का आईडिया किस का था ? इस अहम सवाल का जवाब किसान नेताओं को देना होगा । जिस ने भी यह आईडिया दिया होगा उसके तार खालिस्तानियों और कम्युनिस्टों से जुड़े हुए थे । पंजाब और पंजाब से बाहर के अनेक कम्यूनिस्ट नेता खुलेआम किसान आंदोलन से जुड़े हैं। सवाल यह है कि क्या कम्युनिस्ट नेताओं के तार भी कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन के खालिस्तानियों से जुड़े हैं । यह शक इसलिए पैदा होता है क्योकि कम्युनिस्ट पिछले 6 साल से मोदी सरकार के खिलाफ इस तरह के आंदोलनों की रूपरेखा बनाते रहे है। जेएनयू का भारत तोडो जमावड़ा उन्ही का था। भीमा कोरेगांव में हिंसा की साज़िश उन्हीं की थी । रोहित वेमूला का फर्जीवाड़ा उन्हीं का था । अवार्ड वापसी का आईडिया उन्हीं का था । असहिष्णुता का नारा उन्हीं का था । शाहीन बाग के पीछे भी दिमाग उन्हीं का था । 

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