मिस-मेनेजमेंट से मेनेजमेंट तक

Publsihed: 27.May.2021, 21:40

अजय सेतिया / मार्च में अपन ने मोदी सरकार की मिस-मेनेजमेंट उजागर करना शुरू किया था | खुद कोविड पोजिटिव होने तक अपन ने इस पर  चार–पांच कालम लिखे थे | जिस में पांच राज्यों के चुनाव करवाने और दूसरे दौर के संक्रमण की संभावित लहर की आशंका के बावजूद तैयारियां नहीं होने की आलोचना की थी | अपन पहले भी लिख चुके हैं कि मिस-मेनेजमेंट के लिए सब से बड़ी जिम्मेदार ब्यूरोक्रेसी है | जिस पर मोदी अलोकतांत्रिक ढंग से ज्यादा ही भरोसा करते हैं  | उस ने अपनी चिर परिचित नालायकी से मोदी को देश के कटघरे में खड़ा कर दिया | टास्क फ़ोर्स मुहं ढंक कर सौ गई थी | दूसरे दौर के संक्रमण की लहर का आकलन ही नहीं किया गया | जबकि अमेरिका, इटली , फ्रांस , ब्रिटेन , स्पेन में दूसरी लहर में पहली लहर से ज्यादा मौतों के सबूत मिल चुके थे | दुनिया भर के वैज्ञानिक भारत में दूसरी लहर की चेतावनी दे रहे थे | भारतीय डाकटर और वैज्ञानिक भी चेतावनियाँ दे रहे थे , लेकिन पहली लहर में जितना भी ढांचा तैयार किया गया था , ढहा दिया गया |

28 नवंबर 2020 को मोदी ने सीरम और भारत बायोटेक का दौरा किया था | लेकिन मोदी की नालायक ब्यूरोक्रेसी ने वेक्सीनेशन की गंभीरता को भी नहीं समझा | सिर्फ एक करोड़ वेक्सीन का अग्रिम आर्डर दिया गया | सीरम ने उतनी ही वेक्सीन बनाई , जितनी उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के तहत विदेशों को भेजनी थी और जितना अग्रिम आर्डर था | भारत बायोटेक की जितनी वेक्सीन बनाने की क्षमता थी ,उतनी ही बनी | दूसरे दौर की तैयारी के लिए अस्पतालों में आक्सीजन और दवाईयों की तैयारी तो बहुत दूर की बात | मोदी नाकाबिल ब्यूरोक्रेसी के फीडबैक से बेफिक्र थे कि भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है | इस लिए वह डिप्लोमेसी करने के लिए भामाशाह बन गए | खुद के घर में वेक्सीन नहीं थी , वह विदेशों को दान देने लगे | बुजुर्ग कहते थे दूसरों की मदद ज़रूर करो , पर उतनी ही कि बाद में आप ख़ुद को मुश्किल न हो । अगर उस समय टास्क फ़ोर्स गंभीरता से विचार कर के मोदी को सही जानकारी देती तो मोदी निर्यात की आलोचना से बच सकते थे | अगर ब्यूरोक्रेसी सीरम और भारत बायोटेक को 50-50 करोड़ वैक्सिन का अग्रिम आर्डर और एडवांस पेमेंट कर दिया होता तो मोदी को ऐसी आलोचना न झेलनी पडती |

मोदी को 15 अप्रेल को एहसास हो गया था कि ब्यूरोक्रेसी की नालायकी से वह बुरे फंस गए हैं | इस लिए चुनावों के दौरान ही उन्होंने मुख्यमंत्रियों की वर्च्युल बैठक बुला ली थी | 19 अप्रेल को सीरम को 3000 करोड़ रूपए और और भारत  बायोटेक को 1500 करोड़ रूपए अग्रिम रीलिज करवाया | इस नालायकी का सब से बड़ा ठीकरा निति आयोग ले सदस्य वी.के.पाल पर  फूटना चाहिए था , पर वह अभी भी प्रवक्ता बन कर पत्रकारों को भाषण झाड रहे है | और अपनी नालायकी छुपाने के लिए 27 मई को उन सात मुद्दों पर स्पष्टीकरण जारी किया है, जो जनता में उठ रहे हैं | इन में आधे स्पष्टीकरण नए सवाल पैदा करते हैं | जैसे उन्होंने कहा कि भारत ने 2020 के मध्य में विदेशों से वेक्सीन आयात की बातचीत शुरू कर दी थी | शायद उन्होंने अडार पूनावाला का यह बयान नहीं पढ़ा कि भारत सरकार वेक्सीनेशन के लिए गंभीर होती तो उन्हें अग्रिम आर्डर दे देती |

कोविड मिस मेनेजमेंट और बंगाल की करारी हार से मोदी को दोहरा झटका लगा था  | लेकिन चुनाव नतीजों से पहले ही मोदी 15 अपेल को कोविड मेनेजमेंट में जुट गए थे | दो मई के बाद वह टीवी पर भी दिखाई नहीं दिए | मोदी की एक महीने की मेहनत रंग लाई है | संक्रमण की दर गिर रही है | जुलाई में वेक्सीनेशन की रफ्तार बढने के संकेत मिल रहे हैं | जो लोग मोदी की विफलता की कहानियाँ लिख रहे थे अब उन्हें झटका लगना शुरू हो गया है कि मोदी ने दूसरी लहर पर भी काबू पा लिया | अब देश दुनिया के बाकी देशों से मुकाबला कर रहा है तो उसे समझ आ रहा है | अमेरिका में 3 करोड़ 39 लाख , 71 हजार 207 लोग संक्रमित हुए और आबादी के हिसाब से प्रति दस लाख पर 1882 लोग मरे | ब्राजील में 1, 62, 75,440 लोग संक्रमित हुए और आबादी के लिहाज से प्रति दस लाख पर 2125 लोग मरे | इटली में प्रति दस लाख आबादी पर 2080 , ब्रिटेन में 1873 , फ्रांस में 1667 , जब कि भारत में दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर 2 करोड़ 73 लाख , 69 हजार 097 संक्रमित हुए , लेकिन प्रति दस लाख पर सिर्फ 226 लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत हुई है | इसे सफलता कहेंगे या विफलता |

 

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