अजय सेतिया / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे से कईयों के पेट में दर्द शुरू हो गया है | इन में विरोधी दलों के नेता तो हैं हीं , कई पत्रकार भी हैं | जिन्हें मोदी का किया कोई काम नहीं सुहाता | ऐसे पत्रकार खुद को विपक्ष का नेता मान कर व्यवहार करते हैं , वे टीवी पर हों तो विपक्ष के नेता से भी ज्यादा ऊंची आवाज में बोलते हैं | अखबार में हों तो विपक्षी नेता के बयान से भी ज्यादा तीखे अंदाज में लिखते हैं | ऐसा ही कुछ शुकवार को देखने को मिला , जब एबीपी की युवा एंकर रुबिका लियाकत ने मोदी के बांग्लादेश के लिए किए गए सत्याग्रह वाले बयान पर ट्विट किया तो किताबें पढ़ कर ट्विट करने वाले एबीपी के ही अभिनव पांडे उन से भीड़ गए | पांडे यह मानने को तैयार नहीं थे कि मोदी ने बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह किया होगा | वह पिछले एक हफ्ते से नेहरू का स्तुतिगान करने वाली किताब से अंश ट्विट कर के खुद की लीनिंग बता रहे थे | नेहरु –इंदिरा को महान मानने वाले असल में एकतरफा लिखा हुआ इतिहास ही पढ़ते हैं |
बांग्लादेश की निर्वासित सरकार को मान्यता दिलाने के लिए जनसंघ के सत्याग्रह के बारे में न रुबिका ने कभी पढ़ा होगा , न ही अभिनव पांडे ने | लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में रुबिका के साथ काम करते हुए पाया कि वह एक जागरूक और तेजतर्रार पत्रकार है , त्वरित जानकारी हासिल करने में वह देर नहीं लगाती | वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने ट्विटर पर तुरंत एतिहासिक दस्तावेज ही नहीं , बल्कि सत्याग्रह का वीडियो भी उपलब्ध करवा दिया , तो रूबिका ने तुरंत उन्हें अपने बचाव में पेश कर दिया | आज यानी मोदी की यात्रा के दूसरे दिन शनिवार को टाईम्स आफ इंडिया ने अपने ही अखबार की 12 अगस्त 1971 की खबर को रीप्रिंट कर के मोदी को झूठा बताने वालों का मुहं बंद कर दिया | इस अखबार ने लिखा है कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चले सत्याग्रह के आख़िरी दिन 12 अगस्त को संसद भवन के सामने गुजरात के एक जत्थे ने गिरफ्तारियां दी , जिस में महिलाएं और बच्चे भी थे | हालांकि मोदी ने यह खुलासा कोई पहली बार नहीं किया था , प्रधानमंत्री के नाते अपनी 2015 की ढाका यात्रा के समय भी उन्होंने सत्याग्रह का जिक्र किया था और 1978 में लिखी अपनी किताब “संघर्षमां गुजरात” में भी किया था |
स्वाभाविक है कि एक किताब पढ़ कर कोई पंडित या पांडे नहीं बन सकता | पर वामपंथी किस्म के जनसत्ता आनलाईन का अब एक ही काम रह गया है कि टीवी डिबेट और ट्विट देख कर खबर बना दें | “रुबिका को मिली तगड़ी काट” लिख कर जनसत्ता आन लाईन खुद ही मजाक का पात्र बन गया | जनसत्ता आनलाईन में यह खबर पढ़ कर प्रभाष जोशी की आत्मा भी रो रही होगी कि उन के मानसपुत्र के आनलाईन एडिशन का क्या हाल हो गया है | जब आप एक सोच बना कर पत्रकारिता करते हैं , तो आप पत्रकार नहीं एक्टिविस्ट होते हैं , अपन ने लम्बे समय से एक्टिविस्ट पत्रकारों का दौर देखा है , लेकिन फेसबुक और ट्विटर के कारण एक्टिविस्ट पत्रकारों के बुरे दिन आ गए हैं , जागरूक नागरिक उन्हें तुरंत बेनकाब कर देते हैं | ऐसा ही हाल राजनीतिज्ञों का है , वह दक्षिणपंथी राजनीतिग्य हो या वामपंथी या फिर मध्यमार्गी , जागरूक नागरिक तुरंत नंगा कर देते है | सोनिया गांधी की निगाह में चढने के लिए सब से पहले मोदी पर हमला करने के लिए मनीष तिवारी , जयराम रमेश , सुरजेवाला और शशि थरूर में होड़ लगी रहती है | इस जल्दबाजी में मनीष तिवारी तो रुबिका लियाकत को पत्रकारिता का पाठ पढाने लगे | पर मुहं फट रूबिका कहाँ चुप रहने वाली थी , उस ने तिवारी की ऐसी तैसी कर के रख दी |
मोदी विरोध और सोनिया भक्ति में शशि थरूर सब से आगे निकले थे | रविश कुमार के बाद शशी थरूर ही भगवा ब्रिगेड के हर ट्विट को फेक न्यूज बताने वाले गिरोह के सरगना है | उन्होंने सत्याग्रह पर मोदी का मजाक उड़ाते हुए ट्विट किया-“ अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा : हमारे प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश को भारतीय फेक न्यूज का स्वाद चखाया , जबकि हर कोई जानता है कि बांग्लादेश किस ने आज़ाद करवाया |” अब मोदी ने यह तो कहा नहीं था कि उन्होंने बांग्लादेश को आज़ाद करवाया | सब जानते हैं कि तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और उन्हीं के आदेश पर भारतीय फ़ौज ने बांग्लादेश को आज़ाद करवाया था | भले ही अब कांग्रेसी नहीं मानते कि मोदी के आदेश पर भारतीय फ़ौज ने पाकिस्तान में अंदर घुस कर मारा | मोदी ने तो बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता के लिए जनसंघ की ओर से किए गए सत्याग्रह में हिस्सा लेने की बात कही थी , तब इंदिरा गांधी और रूस पाकिस्तान के दबाव में थे, इस दबाव के खिलाफ जनसंघ ने सत्याग्रह किया था , जिन्हें तिहाड़ में बंद किया जा रहा था | शशी थरूर को इतिहास के इस तथ्य से थोड़े ही मतलब था , उन्हें तो मतलब इस बात से था कि इंदिरा गांधी का नाम क्यों नहीं लिया , जबकि मोदी ने अपने भाषण में इंदिरा गांधी को श्रेय दिया था | जब यह पता चला तो शशि थरूर ने माफी मांगना ही उचित समझा |
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