अजय सेतिया / राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव जैसे इक्का दुक्का यूपी हरियाणा के चेहरे किसान आंदोलन में न होते तो यह पंजाब के जाट सिखों का ही आंदोलन है। महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत ने पहले तीनों कानूनों का समर्थन किया था । टिकैत बाप बेटे की कांग्रेस से नजदीकी रही है । पंजाब के किसान संगठनों ने पंजाब के फिल्मी चेहरे दीप संधू पर हिंसा करवाने और ट्रैक्टर रैली को जबरदस्ती लालकिले पर ले जाने का आरोप लगाया है । इस की वजह यह है कि दीप संधू के बहाने भाजपा और सरकार को कटघरे में खडा किया जा सकता है । दीप संधू ने गुरदासपुर में भाजपा उम्मीदवार सन्नी देओल के लिए प्रचार किया था। लालकिले की प्राचीर ,जहां से प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराते हैं । वहां सिखों के धार्मिक निशान साहिब का झंडा फहराया गया , दीप संधू ने वहीं पर खड़े हो कर फेसबुक लाईव किया था ।
राकेश टिकैत के ऐसे अनेक वीडियो सामने आ चुके हैं , जिनमें उन्होंने लालकिले से इंडिया गेट तक ट्रेक्टर रैली का एलान किया था । पत्रकारों ने पूछा कि लालकिले पर कैसे पहुंचेंगे । तो टिकैत ने धमकी और चुनौती वाले लहजे में कहा - "किस की हिम्मत है जो किसानों और ट्रेक्टरों को लालकिले तक जाने से रोक सकेगा।" एएनआई ने एक ऐसा वीडियो भी जारी कर दिया, जिसमें टिकैत फोन पर किसी को कह रहे हैं - " 26 जनवरी को ट्रेक्टर ले कर लालकिले पर पहुंचना है । अगर कानून वापस न हुए तो सरकार किसानों की जमीन हड़प लेगी ।" यह झूठ टिकैत क्यों बोल रहे थे । 26 जनवरी को 11 बजे अपन सब ने पुलिस की बैरिकेडिंग को तोडते हुए दर्जनों ट्रैक्टरों को फुल स्पीड पर लालकिले की तरफ दौड़ते देखा । इन्हीं में से एक ट्रेक्टर उलट गया था, जिस का चालक किसान यूपी के रामपुर का था । वह मौके पर ही मर गया । वामपंथी मीडिया ने बिना पुष्टि खबर चला दी कि पुलिस की गोली से एक किसान मारा गया । किसानों को भड़काने के लिए यह मनघड़ंत खबर काफी थी । पुलिस ने टिकैत पर 307 का मुकदमा दायर कर लिया है । अब टिकैत अपने बचाव में कह रहे हैं कि दीप संधू जैसे समाज विरोधी तत्व किसानों को भड़का कर लालकिले पर ले गए । कांग्रेस, किसान संगठन और टिकैत का ठीकरा दीप संधू पर फोड़ना कितना हास्यास्पद है । क्या देश ने घोड़ों पर सवार दर्जनों निहंगों को तलवारें लहराते हुए नहीं देखा । दीप संधू भी उन समाज विरोधी तत्वों में से एक है । पर लालकिले पर निशान साहिब फहराना खालिस्तानी रणनीति नहीं थी क्या । सिख फार जस्टिस ने ईनाम की घोषणा नहीं की थी क्या । संयुक्त किसान मोर्चा अब भी आंदोलन के पीछे खालिस्तानियों के हाथ से इंकार करेगा । लेकिन अगर यह किसान आंदोलन है तो अखाड़ों से निकल कर निहंग कैसे तलवारों को लहराते हुए दिल्ली पहुंचे।
टिकैत और खालिस्तान समर्थकों की सांठगांठ के संकेत भी मिलते हैं । क्योंकि लालकिले तक पहुंचने वाले निहंग सिख और बाकी सिख किसान भी यूपी से लगते गाजीपुर गाजियाबाद बार्डर से दिल्ली में घुसे थे । जो टिकैत के प्रभाव वाला पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बार्डर है। गणतंत्र दिवस पर दुनिया भर में देश को कलंकित करने के अगले दिन दिल्ली से गाजियाबाद जाने वाली सड़क पर सन्नाटा है । बीते दो महीने से चलने वाले किसान आंदोलन का मंच अब खाली है। गाजीपुर बार्डर के किसान नेता भी मानते हैं कि कहीं कुछ गलती रह गई । वीडियो देखकर हिंसा करने वाले लोगों की पहचान भी हो रही है । भारतीय किसान संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जसबीर सिंह ने माना कि गलती हुई। यूपी के किसान लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने वालों से दूरी बना रहे है। भाकियू (भानु) से जुड़े किसान नोएडा-दिल्ली मार्ग की चिल्ला सीमा पर प्रदर्शन कर रहे थे । उन्होंने आंदोलन से किनारा करने का एलान कर दिया है। ‘ऑल इंडिया किसान संघर्ष को-आर्डिनेशन कमेटी' ने आंदोलन से तौबा कर ली है। कमेटी के अध्यक्ष वी एम सिंह ने कहा कि उनका संगठन ऐसे विरोध प्रदर्शन में शामिल नही रह सकता जिसमें कुछ की दिशा अलग है। अभी सिर्फ दो किसान संगठन आंदोलन से अलग हुए हैं । आगे और संगठन भी अलग होंगे क्योंकि आंदोलन के पीछे कम्युनिस्टों और खालिस्तानियों का हाथ और उनके राष्ट्र विरोधी इरादे अब उजागर हो चुके हैं। लालकिले के रास्ते पर वामपंथी नेता भी दिशा निर्देशन करते देखे गए। लेकिन अहम सवाल अभी बाकी है , जिस का जवाब संयुक्त किसान मोर्चे को देना है। उसे बताना ही होगा कि ट्रेक्टर रैली का आईडिया किस का था , जिद्द किस की थी , कौन गुमराह कर रहा था किसानों को । योगेन्द्र यादव, टिकैत, हन्नान मौला या तीनों ।
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