मोदी के सब्र से नही बना जलियांवाला

Publsihed: 27.Jan.2020, 22:53

अजय सेतिया / पिछले दिनों कपिल सिब्बल ने पहली बार अक्ल की बात की थी , जब उन्होंने कहा था कि राज्य सरकारें नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू करने से इनकार नहीं कर सकती | एक तरफ संविधान के अनुच्छेद 11 की खिल्ली उड़ाते हुए कांग्रेस अपने बहुमत वाली विधानसभाओं से संसद से पारित क़ानून के खिलाफ प्रस्ताव पास करवा रही हैं , तो दूसरी ओर 26 जनवरी को कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री को संविधान की एक प्रति भेजते हुए लिखा गया-“  'प्रिय प्रधानमंत्री, संविधान की प्रति जल्द आप तक पहुंच रही है. जब आपको देश को बांटने से समय मिल जाए तो कृपया इसे पढ़ें |” इसे कहते हैं –“ दूसरों को नसीहत , खुद मियाँ फजीहत |“ देश के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि संविधान की रक्षा के नाम पर संविधान के खिलाफ काम हो रहा है |

कांग्रेस के दोगलेपन का यह सिर्फ एक सबूत नहीं , एक तरफ वह पाकिस्तान के मुसलमानों के लिए भारतीय नागरिकता के दरवाजे खोलना चाहती है तो दूसरी तरफ  अदनाम सामी को पद्मश्री दिए जाने का विरोध करती है, जिसे मोदी सरकार ने भारत की नागरिकता दी है |

संवैधानिक बात कहने के बाद कांग्रेस में कपिल सिब्बल की जो फजीहत हुई है , उस के बाद से वह संविधान की अपनी सारी पढाई लिखाई और क़ानून की डिग्री भूल गए हैं | अब उन का ताज़ा बयान यह आया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून मुसलमानों की नागरिकता छिनने वाला है | साम्प्रदायिकता भडका कर देश के टुकड़े करने की साजिश रचने वाले जेएनयू के शरजिल इमाम और कपिल सिब्बल के बयानों में कोई फर्क नहीं दिखता | दोनों मुसलमानों को क़ानून के खिलाफ गलतबयानी कर के भडका रहे हैं | फर्क सिर्फ इतना है कि कन्हैया कुमार की तरह कपिल सिब्बल सिर्फ भडका रहे हैं, जबकि शराजिल इमाम भडका कर माहौल को प्रोडेकटिव बनाना चाहते हैं |

शुरू में मोदी सरकार के खिलाफ 1974-75 जैसा छात्र आन्दोलन खड़ा करने की रणनीति थी , जो पूरी तरह फेल हो गई , क्योंकि आन्दोलन पहले ही दिन हिंसक हो गया | उतर प्रदेश में योगी सरकार ने कड़ी कार्रवाई की और दिल्ली के जेएनयू में एबीवीपी के छात्र वामपंथियों के सामने बराबरी पर आ खड़े हुए | जेएनयू में वामपंथी किला अब अंतिम साँसे गिन रहा है | मोदी विरोधी मीडिया इस बीच शाहीन बाग़ को अंतर्राष्ट्रीय खबर बनाने में जुट गया ,तो इस खबर की किसी को भनक ही नहीं लगी कि होस्टल फीस और समेस्टर रजिस्ट्रेशन न करवाने की वामपंथी छात्र संगठनों की अपील का क्या हश्र हुआ है | छात्रों को जैसे ही वामपंथी किला कमजोर होने की भनक मिली , मध्य जनवरी तक 90 फीसदी छात्र अपनी फीस जमा करवा चुके थे |

अपन जेएनयू में वामपंथी- मुस्लिम गठबंधन की बात करते रहे हैं | | 9 फरवरी 2018 को जेएनयू में लगे नारे वामपंथी- मुस्लिम गठजोड़ का प्रमाण था | इस घटना के बाद हालांकि वामपंथियों ने इन नारों वाली वीडियो को टेम्पर किया गया बताया और नक्सली विचारधारा के मानसपुत्र अरविन्द केजरीवाल ने कन्हैया कुमार पर मुकद्दमा चलाने की इजाजत नहीं दी, लेकिन इस घटना से सावधान हो कर जेएनयू का वामपंथी – मुस्लिम गठबंधन टूट गया | जिस का प्रमाण शरजिल इमाम के इस बयान से मिलता है , जिस में वह कहता है कि कन्हैया कुमार जैसे वामपंथी मुस्लिमों की भीड़ का अपनी लोकप्रियता के लिए फायदा उठाते हैं , जिस का मुसलमानों को कोई प्रोडेकटिव फायदा नहीं होता | उस ने यह भी कहा कि वामपंथी और कांग्रेसी नेशन की बात करते हैं , जबकि मुसलमानों के लिए नेशन का कोई मतलब नहीं |

शरजिल इमाम के पीछे कोई राजनीतिक ताकत जरुर काम कर रही थी | वरना जेएनयू-एएमयू-जामिया आन्दोलन फेल हो जाने के बाद शाहीन बाग़ का वैकल्पिक आन्दोलन खड़ा नहीं होता | ट्रिपल तलाक, 370 और अयोध्या पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद अंदर ही अंदर निचले स्तर पर तैयारी चल रही थी कि केंद्र सरकार के अगले किसी भी बड़े फैसले को आधार बना कर कैसे आन्दोलन चलाना है | इस का आभास इस बात से भी मिलता है कि शाहीन बाग़ में लाल और काले रंग का एक बड़ा होर्डिंग लगा है , जिस के काले हिस्से पर शाहीन बाग़ लिखा है , और लाल हिस्से पर जलियाँवाला बाग़ लिखा है | मुस्लिम औरतों और बच्चों को भी धरने पर आगे इस लिए बिठाया गया है ताकि अगर सरकार सडकें खाली करवाने की कार्रवाई शुरू करे , तो भगदड़ में औरतें और बच्चे मारे जाएं और उस की तुलना जलियावाला बाग़ से की जा सके | लेकिन मोदी सरकार ने वैसा नहीं किया , जैसा मनमोहन सरकार ने रामलीला मैदान में धरना दे कर बैठे बाबा रामदेव के साथ किया था | मोदी सरकार ने सब्र से काम लिया और शाहीन बाग़ के धरने को बेनकाब होने दिया |

 

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