मोदी और ट्रम्प में कश्मीर पर गुपचुप

Publsihed: 26.Sep.2019, 21:24

अजय सेतिया / अमेरिका के बाद अब ब्रिटेन की भी कश्मीर में दिलचस्पी बढने लगी है | कश्मीर के विवाद की शुरुआत पाकिस्तान के उकसावे पर कबाईलियों की घुसपैठ से शुरू हुई थी | महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर को कबाईलियों की लूटपाट से बचाने के लिए भारत से मदद माँगी और अंतत विलय के दस्तावेज पर दस्तखत किए | मौजूदा सरकार के गृहमंत्री अमित शाह ने छह अगस्त को लोकसभा में आरोप लगाया था कि जवाहर लाल नेहरु एकतरफा युद्ध विराम कर के संयुक्त राष्ट्र में न जाते तो पाक फ़ौज और कबाईलियों की मिली भक्त से कब्जा किया गया कश्मीर का हिस्सा भी भारत के पास ही होता |

27 अक्टूबर 1947 को खुद लार्ड माऊंटबेटन ने महाराज हरिसिंह के विलय प्रस्ताव पर दस्तखत कर के मंजूरी दे दी थी , लेकिन कश्मीर विवाद की जद में ब्रिटेन और अमिका ही हैं , संयुक्त राष्ट्र में बहस के दौरान ब्रिटेन और अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की तरफ हो गया , जिस कारण जनमत संग्रह का प्रस्ताव पास हुआ |  यह जानते हुए भी कि जम्मू कश्मीर में मुस्लिम आबादी का बहुमत है . नेहरु ने जनमत संग्रह पर सहमती प्रकट कर दी थी | बाद में नेहरु को उन की इस सहमती पर कांग्रेस में भी विरोध का सामना करना पडा था , वह तो अच्छा हुआ कि जनमत संग्रह की पहली शर्त ही पाकिस्तान की ओर से पीओके से फौजें हटाना था , जो उस ने हटाई नहीं और जनमत संग्रह की नौबत कभी नहीं आई |

कश्मीर तब से भारत पाक में विवाद और तनाव का मुद्दा बना हुआ है , 1989 में जिया उल हक ने आपरेशन टोपाज की शुरुआत कर के भारतीय कश्मीर को युद्ध क्षेत्र बना दिया | तब से आतंकवादी वारदातों में भारत के 42 हजार जवानों और नागरिकों की जान जा चुकी है , कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जे के लिए 1999 में युद्ध भी हो चुका है | अब जब कि भारत ने संविधान के अनुच्छेद 370 में कश्मीरियों को मिले विशेषाधिकार खत्म कर दिए हैं तो कश्मीर एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बन गया है , हालांकि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने दखल देने से इनकार कर दिया था , इस के बावजूद पाकिस्तान ने 370 को संयुक्त राष्ट्र में जोर शोर के साथ उठाया है |

हालांकि नरेंद्र मोदी की हमलावर कूटनीति के कारण पाकिस्तान को ज्यादा समर्थन नहीं मिला, लेकिन अब सामने आया है कि इमरान खान ने अमेरिका और ब्रिटेन में पाक समर्थक लाबी बनाने में कामयाबी हासिल की है , जो आगे जा कर उन की मदद करेगी | जिस का प्रमाण ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी का कश्मीर सम्बन्धी प्रस्ताव है | लेबर पार्टी ने बुधवार को एक प्रस्ताव पारित करते हुए अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को  जम्मू कश्मीर में जाने देने और कश्मीरियों के आत्म निर्णय के अधिकार की मांग की | ब्रिटेन के भारतीय समुदाय ने इसकी आलोचना करते हुए इसे गलत विचार पर आधारित' और भ्रामक जानकारी' बताया |  भारत ने कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग करने वाली ब्रिटेन की लेबर पार्टी के इस प्रस्ताव की आलोचना की है | विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने लेबर पार्टी के कदम को ‘‘वोट बैंक हितों को साधने'' वाला बताया |

उधर भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के साथ बैठकों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि उन्होंने दोनों के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की है | अब तक यह खबर नहीं आई थी कि ट्रम्प ने मोदी के साथ कश्मीर मुद्दे पर कोई बातचीत की है | शायद भारतीय विदेश मंत्रालय इसे छुपाना चाहता था | छुपाने की वजह को ढूंढना मुश्किल है , लेकिन जिस तरह ट्रम्प बार बार कह रहे हैं कि अगर दोनों प्रधानमंत्री तैयार हों , तो वह मध्यस्थता करने को तैयार है , इस से शक पैदा होता है कि उन्होंने मोदी पर अमेरिकी मध्यस्थता स्वीकार करने का दबाव बनाया होगा , हालांकि न तो अमेरिका खुल कर बोल रहा है , न भारत सरकार कि मोदी और ट्रम्प में कश्मीर पर क्या बातचीत हुई |

 

 

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