अजय सेतिया / उत्तर भारत से ठुकराए जा चुके राहुल गांधी ने पिछले दिनों केरल में दक्षिण की राजनीतिक संस्कृति की तारीफ़ की थी | उन्हें उत्तर भारत के लोग अब उतने पसंद नहीं आते ,क्योंकि वे उन्हें लगातार ठुकराते जा रहे हैं | राहुल गांधी हिन्दी अच्छी नहीं जानते , शायद इस लिए उत्तर भारतीयों ने उन्हें ठुकरा दिया | अब जब तक कोई संस्कृत नहीं जाने तो दक्षिण भारतीय भाषाएँ भी कोई खाला जी घर नहीं | बाकी सभी उत्तर भारतीय नेताओं की तरह वह भी अनुवादकों से काम चला रहे हैं , लेकिन आप ने वह वीडियो भी देखा होगा , जिस में कांग्रेस के एक बड़े नेता राहुल की अंगरेजी भी नहीं समझ पा रहे थे |
पर अपना माथा तब से ठनका हुआ है , जब से राहुल गांधी ने दक्षिण भारत की राजनीतिक संस्कृति की तारीफ़ की है | अपनी दक्षिण भारत की यात्राओं में अपन ने जो राजनीतिक संस्कृति देखी थी , वह बड़ी शान-ओ-शौकत वाली थी | वहां राजनीतिग्य तो सभी अरबपति हैं , लेकिन आम जनता दो रूपए किलो के सरकारी चावल पर ही निर्भर है | इस लिए अपन ने जयललिता और करुणानिधी के जमाने से ही चुनावों में हमेशा दो जोड़ी मुफ्त धोती और दो रूपए किलो चावलों के चुनावी वायदे ही सुने थे , फिर चुनावी वायदों में कुकर , गैस चुल्हा , टीवी , मिक्सी जैसी चीजें शामिल होती भी देखी हैं | इस लिए राहुल गांधी को दक्षिण भारत की राजनीतिक संस्कृति बहुत पसंद आई होगी , क्योंकि छोटे मोटे लालच से गरीब-लाचार वोटरों को लुभाया जा सकता है , जो यूपी बिहार में संभव नहीं |
राहुल गांधी की वजह से तमिलनाडू, पुदुचेरी , केरल और बंगाल के चुनावों पर अपनी गहरी नजर बनी हुई है | दक्षिण भारत की राजनीतिक संस्कृति का अंदाज आप इस एक उदाहरण से लगा सकते हैं कि तमिलनाडू की मदुराई दक्षिण विधानसभा सीट से चुनाव लड रहे एक निर्दलीय उम्मीन्द्वार टी. सरवनन ने चुनाव जीतने पर एक मिनी हेलीकॉप्टर, हर घर में सालभर में एक करोड़ रुपये की राशि, शादी के लिए सोने की ज्वैलरी और तीन मंजिला घर बनाने का वादा किया है | इन वायदों के माध्यम से उस ने सभी वोटरों को आईना दिखाया है कि वे छोटे छोटे लालच में आ जाते हैं | दक्षिण भारत में गरीबी की जो हालत है , उस का राजनीतिक नेता बेजा फायदा उठाते रहे हैं , चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि उतर भारत के मुकाबले दक्षिण भारतीय राज्यों में चुनावों के दौरान काले धन का इस्तेमाल कई गुना होता है |
तमिलनाडू में कई बार तो काले धन के कारण चुनाव स्थगित भी करना पड़ा है | ताजा उदाहरण चुनावों के दौरान इनकम टेक्स और आईडी के छापों में मिली नगदी से लगाया जा सकता है , जो वोट खरीदने के लिए इस्तेमाल किया जाना था | तिरुवन्नमलई सीट से पांच बार विधायक और मंत्री रह चुके डीएमके उम्मीन्द्वार वेलू के ठिकानों पर मारे गए छापों में 3.5 करोड़ की नगदी पकड़ा जाना दक्षिण भारतीय राजनीति की एक झलक है | डीएमके ने छापेमारी को ''राजनीतिक रूप से प्रेरित'' तथा सत्ता का ''दुरुपयोग'' बता कर नरेंद्र मोदी की निंदा करनी थी , सो कर रही है | स्वाभाविक है कि यह पिछली काली कमाई का फ्यूचर की काली कमाई के लिए पूंजीनिवेश है | इसी लिए तो कांग्रेस की साझा सरकार के गृहमंत्री जब पुलिस से सौ करोड़ रूपए महीने की वसूली मांगते हैं , तो राहुल गांधी निष्पक्ष जांच की मांग नहीं करते |
पर चुनावी खर्च का रिकार्ड तो शायद इस बार बंगाल तोड़ दे | भाजपा ने चुनाव प्रचार पर दुनिया भर की ताकत झोंक दी है , उतर भारतीय तो छोड़ों , विदेशों में बसे बंगाली भी चुनाव प्रचार के लिए आ गए हैं | जिन्हें ममता बेनर्जी बाहरी कह कर दुत्कार रही हैं | लेकिन ममता ने लोहे को लोहे से काटने वाली रणनीति अपनाई हुई है | नरेंद्र मोदी के भारतीय राजनीति में छा जाने के दो कारण बताए जाते हैं , पहला यह कि 2014 के चुनाव में उन का रणनीतिकार प्रशांत किशोर था , दूसरा यह कि प्रशांत किशोर ने सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव लडवा कर कांग्रेस समेत सभी विरोधी दलों को मात दी थी | तब उन की कम्पनी का नाम कैग था , लेकिन बाद में उन्होंने 2015 में हैदराबाद में जो कम्पनी रजिस्टर्ड करवाई है उस का नाम आई-पैक है | ममता बेनर्जी ने मोदी से प्रेरणा लेकर चुनावी प्रचार का ठेका प्रशांत किशोर और उस की कम्पनी आई-पैक को दे दिया है |
वैसे 2017 में यूपी में राहुल गांधी और अखिलेश यादव भी आई-पैक को ठेका देकर अपनी खटिया खडी करवा चुके हैं | अब अगर ममता चुनाव हारी तो वह प्रशांत किशोर की खटिया जरुर खडी करेगी , क्योंकि वह तृणमूल कांग्रस की सारी कमाई चट कर रहे हैं | प्रशांत किशोर फेसबुक को 1.69 करोड़ रुपया दिलवा चुके हैं | जबकि भाजपा ने फेसबुक को सिर्फ 26 लाख रूपए का विज्ञापन दिया है | सिर्फ बंगाल क्यों , तमिलनाडू में स्टालिन के सोशल प्लेटफार्म का कम्पेन भी आई-पैक ने सम्भाला हुआ है और स्टालिन से अब तक तीन करोड़ रूपए वसूल चुके हैं प्रशांत किशोर |
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