बहुमत का फैसला 30 से पहले नहीं

Publsihed: 26.Nov.2019, 10:24

अजय सेतिया / शनिवार रात को सुप्रीमकोर्ट की दहलीज पर जाने और रविवार को अदालत  खुलवाने वाली शिवसेना को सोमवार को भी कोई राहत नहीं मिली | मंगलवार को कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी , ऐसा लगता है कि कोर्ट 30 नवम्बर तक ही बहुमत साबित करने के लिए कहेगी | वह इस लिए क्योंकि अगर 27 नवम्बर को सदन की कार्यवाही शुरू होती है तो कम से कम 3 दिन तो 288 विधायकों की शपथ ग्रहण में लगेंगे | 30 नवम्बर ही राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने बहुमत साबित करने के लिए तय किया था | यानी शिवसेना को कोर्ट जाने का कोई लाभ नहीं हुआ, इस से पहले जब राज्यपाल ने शिवसेना को दावा पेश करने की मोहलत बढाने से इनकार कर दिया था , तब भी वह भागी भागी सुप्रीम कोर्ट गई थी , लेकिन कपिल सिब्बल न शिवसेना को ज्यादा मोहलत दिला सके न राज्यपाल को राष्ट्रपति राज लागू करवाने से रोक सके | हालांकि उन्होंने राज्यपाल की आलोचना जम कर की थी |

अब भी दोनों दिन सुनवाई के समय राज्यपाल कपिल सिब्बल के निशाने पर रहे , लेकिन सिब्बल को जजों की डांट खानी पड़ी | सोमवार को कोर्ट ने साफ़ साफ़ कह दिया कि राज्यपाल के अधिकार पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे | कोर्ट ने सरकार से उन चिठ्ठियों को माँगा जरुर था , जिन के आधार पर राज्यपाल ने राष्ट्रपति राज हटवा कर सरकार बनवाई है , लेकिन न तो दावे की उन चिठ्ठियों के आधार पर फैसला होगा , न एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना की ओर से पेश किए गए 154 विधायकों के हल्फिया बयानों के आधार पर | कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ सालोसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोनों खत पेश कर दिए | अजित पवार ने एनसीपी के 54 सदस्यीय विधायक दल के नेता के नाते राज्यपाल को सौंपे अपने पत्र में कहा है –“हम महाराष्ट्र में ज्यादा समय तक राष्ट्रपति शासन नहीं चाहते | हम राज्य में स्थायी सरकार चाहते हैं | इसलिए हम फडणवीस को सरकार बनाने के लिए समर्थन देते हैं |” एनसीपी के वकील सिंघवी ने रविवार को कहा था कि एनसीपी विधायक दल ने अजित पवार को नेता पद से हटा दिया है , उन्होंने सोमवार को वही बात दोहराई तो अजित पवार के वकील ने कहा कि वह चुने हुए नेता हैं , इसलिए वही नेता हैं | 

अगर सुप्रीम कोर्ट अजित पवार की समर्थन देने वाली चिठ्ठी पर सवाल नहीं उठाती , उम्मींद कम ही है कि कोर्ट कोई सवाल उठाएगी, क्योंकि अगर उन्हें हटाए जाने वाली दलील को मान भी लिया जाए , तो भी उस वक्त तक वही नेता थे | अजित पवार ने अवैधानिक ढंग से हटाए गए नेता पद के मुद्दे को जानबूझ कर कोर्ट में नहीं उठाया , क्योंकि अगर कोर्ट की मौन सहमति हो गई तो अगली लड़ाई विधायक दल के नेता की होगी | अजित पवार को व्हिप जारी करने का अधिकार भी मिल जाएगा , हालांकि कांग्रेस के बाला साहेब थोरेट वरिष्ठतम विधायक हैं , लेकिन भाजपा अपने ही किसी विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करेगी  | कर्नाटक में भी कांग्रेस के आर.वी.देशपांडे सीनियर मोस्ट थे , लेकिन वजुभाईवाला ने भाजपा के जी.बोपैया को नियुक्त किया था | सुप्रीमकोर्ट ने तब भी कांग्रेस के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की उन्हें हटाने की दलील नहीं सुनी थीं | प्रोटेम स्पीकर को राज्यपाल शपथ दिलाता है , अत: बाकायदा स्पीकर चुने जाने तक उसे स्पीकर की  सभी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं | प्रोटेम स्पीकर गलत प्रैक्टिस के जरिए वोट करने पर किसी विधायक के वोट को डिसक्वालिफाई कर सकता है | इसके अलावा वोटों के टाई होने की स्थिति में वह अपने मत का इस्तेमाल भी फैसले के लिए वैसे ही कर सकता है,जैसे स्पीकर करता है |

अगर यह मिलाजुला खेल नहीं है , अगर किसी बड़े सौदे के लिए अंदरखाते बात नहीं हो रही तो चाचा भतीजे की यह लड़ाई व्हिप और एनसीपी के कुछ विधायकों को वोट देने से योग्य ठहराए जाने तक जा सकती है | अंदरखाते बातचीत की आशंका अपन इसलिए व्यक्त कर रहे हैं कि अब यह खबर सामने आई है कि 17 नवम्बर को पुणे में हुई एनसीपी की कोर कमेटी में पांच सदस्यों ने भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाने की वकालत की थी | शरद पवार चुप रहे थे और आश्चर्यजनक ढंग से अजित पवार के साथ प्रफुल्ल पटेल ने भी इसी राय के थे | हो सकता है , तब दोनों तरफ बात करने पर सहमती बनी हो , जैसाकि अजित पवार कह रहे हैं | प्रफुल्ल पटेल आजकल रहस्यमई चुप्पी साधे हुए हैं |  

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