कांग्रेस कोरोनावायरस से मुक्त होगी ?

Publsihed: 25.Mar.2020, 19:11

अजय सेतिया  / नरेंद्र मोदी ने जब 22 मार्च के जनता कर्फ्यू का आह्वान किया था , तो सारा देश शाम 5 बजे इस संकट की घड़ी ने जनता की सेवा करने वालों का आभार करने के लिए तालियाँ, थालियाँ और घंटियां शंख बजा रहा था | शरद पवार मुम्बई में , नवीन पटनायक भुवनेश्वर में , केसीआर और जगनमोहन रेड्डी हैदराबाद में इस हवन में शामिल थे | सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी कहीं दिखाई नहीं दिए | हालांकि खुद राहुल गांधी में फरवरी मध्य में देश को इस खतरे से आगाह किया था | हालांकि उन्हें तब तक यह नहीं पता था कि कोरोना वायरस उन की एक राज्य सरकार निगल लेगा | इधर 2 मार्च को कोरोनावायरस ने दबे पाँव दस्तक दे दी थी, जब राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने भारत में कोरोनावायरस से पीड़ित पहले मरीज की पुष्टि की | उधर उसी दिन दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में विस्फोटक बयान दिया था कि भाजपा कांग्रेस के विधायको को खरीदने के लिए 25 से 35 करोड़ रूपए का भाव लगा रही है |

कोरोना वायरस छूआछूट की बीमारी है और सब जानते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के खेमे हमेशा से छूआछूत से ग्रस्त रहे हैं | तब यह समझ आ रहा था कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य के बीच राज्यसभा की सुरक्षित सीट के लिए जंग चल रही है | राज्यसभा की तीन सीटें खाली हुई है , रिटायर होने वालों में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह खुद और भाजपा के सत्य नारायण जटिया व प्रभात झा हैं | जीतने के लिए हर उम्मीन्द्वार को 58 विधायकों का समर्थन चाहिए था , कांग्रेस के अपने 114 विधायक थे , यानी कांग्रेस का जो दूसरा उम्मीन्द्वार होता उसे बसपा के दो , सपा के एक और चार निर्दलियों में से दो का जुगाड़ करना पड़ता | दिग्विजय सिंह को लगता था कि उन्हें कमल नाथ के समर्थन के बावजूद पार्टी आलाकमान सिंधिया को पहला उम्मीन्द्वार बना सकती है , अगर ऐसा हुआ तो उन्हें दो विधायकों का इंतजाम करना पड़ेगा | तभी उन्होंने बसपा विधायक रमा देवी का अपहरण किए जाने का आरोप लगाया था |

ज्योतिरादित्य ग्वालियर राज घराने से हैं , तो दिग्विजय सिंह राघोगढ़ राज घराने से हैं | सिंधिया परिवार और दिग्विजय सिंह के परिवार में राजनीतिक में राजनीतिक लड़ाई की कहानी 200 साल से भी ज्यादा पुरानी है | जब 1816 में, सिंधिया घराने के दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ के राजा जयसिंह को युद्ध में हरा दिया था, राघोगढ़ को तब ग्वालियर राज के अधीन होना पड़ा था | माधव राव सिंधिया जब 1977 में कांग्रेस में शामिल हुए , तब तक दिग्विजय सिंह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे | हालांकि 1984 के बाद माधव राव सिंधिया राजीव गांधी के ज्यादा करीब थे , इस के बावजूद 1989 में दिग्विजय सिंह के कारण माधव राव मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे , जबकि 1993 में तो माधव राव को मात दे कर दिग्विजय सिंह खुद मुख्यमंत्री बने थे | इस बार भी दिग्विजय सिंह ने कमल नाथ का समर्थन कर के ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया था |

सिंधिया और दिग्विजय सिंह में यह जंग सिर्फ राज्यसभा सीट की नहीं थी | सिंधिया परिवार का वारिस 1989 से हो रहे अपमान को समाप्त कर देना चाहते थे | सोनिया गांधी और राहुल गांधी इस इतिहास को जानते होते तो सत्ता का संतुलन बना कर रखते | अगर कमल नाथ की बात पर भरोसा किया जाए , तो ज्योतिरादित्य संतुलन बनाने को तैयार थे | उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है –“ कभी नहीं सोचा था कि ज्योतिरादित्य कांग्रेस छोड़ जाएंगे , लेकिन ये उनका फैसला है | सब अपना भविष्य तय करते हैं, उन्होंने भी किया है | मैं उन्हें पीसीसी चीफ नहीं बना सकता था क्योंकि यह दिल्ली से बनता है | अब ये क्यों इच्छुक थे, किस चीज के इच्छुक थे, हमारे कांग्रेस के जो नेतागण दिल्ली में हैं, वो इसका जवाब देंगे |” उन के इस वाक्य से साफ़ है कि 2018 में मुख्यमंत्री पद की दौड़ से फिसल जाने के बाद ज्योतिरादित्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहते थे |

ज्योतिरादित्य ने भाजपा की मदद कर के दिग्विजय सिंह के प्यादे को हरा दिया है | सरकार गिर जाने के बाद क्या कमलनाथ अब यह कहना चाहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान ने दिग्विजय के दबाव में ज्योतिरादित्य को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बना कर भयंकर गलती की | जब प्रशांत किशोर और पवन वर्मा ने नीतीश कुमार को चुनौती देना शुरू कर दिया था , तो अजय आलोक ने कहा था कि ये दोनों राजनीति के कोरोनावायरस हैं | अब कुर्सी खिसक जाने के बाद कमल नाथ कांग्रेस की राजनीति के कोरोना वायरस ढूंढ रहे हैं शायद | पर फिलहाल तो कमल नाथ खुद कोरोना वायरस की दहलीज पर हैं , भगवान उन्हें इतनी शक्ति दे कि वह खुद भी जल्द एकांतवास से मुक्ति पाएं  और कांग्रेस को कोरोना वायरस से मुक्त कर पाएं |  

 

 

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