अजय सेतिया / दस नवम्बर 2019 और 23 नवम्बर की स्थिति में कोई अंतर नहीं आया है | फिर सवाल खड़ा होता है कि देवेन्द्र फडणविस ने दस नवमबर को मुख्यमंत्री पद पर दावा क्यों नहीं किया था और 23 नवम्बर को क्यों किया | फर्क सिर्फ इतना था कि 54 सदस्यीय राष्ट्रवादी कांग्रेस विधायक दल के नेता अजित पवार ने अपनी पार्टी को धोखा देते हुए देवेन्द्र फडणविस को समर्थन की चिठ्ठी दे दी थी | यह चिठ्ठी दस नवम्बर को देवेन्द्र फडणविस के पास नहीं थी | लेकिन तब राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने उन से समर्थन की चिठ्ठियाँ लाने को कहा भी नहीं था | देवेन्द्र फडणविस को अगर शपथ ही लेनी थी , तो राज्यपाल से कह देते कि वह बहुमत साबित कर देंगे | राज्यपाल सब से बड़े दल के नाते उन्हें सरकार बनाने का न्योता दे देते , जैसे मई 2018 में कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाईवाला ने येद्दुरप्पा को बहुमत नहीं होने के बावजूद मौक़ा दे दिया था | महाराष्ट्र की स्थिति तो कर्नाटक से बेहतर थी , क्योंकि कर्नाटक में तो तब तक कांग्रेस-जनता दल एस का गठबंधन हो चुका था और उन के पास बहुमत था , जबकि 9 नवम्बर को जब भगत सिंह कोशियारी ने देवेन्द्र फडणविस से पूछा था तो शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी में कोई गठबंधन नहीं हुआ था |
दस नवबर को नैतिकता के आधार पर सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर के भारतीय जनता पार्टी ने जितनी प्रतिष्ठा बनाई थी , 23 नवम्बर को उस से कहीं ज्यादा गवा दी | अजित पवार ने अपनी पार्टी को धोखे में रख कर चोरी छुपे भाजपा को चिठ्ठी दी थी यह बात भाजपा को भी पता थी | जब अजित पवार के साथ विधायक ही नहीं थे तो इस चिठ्ठी का मतलब ही क्या था , जिन 11 विधायकों को शपथ ग्रहण में लाया गया था , उन्हें भी धोखे में रखा गया था | जिस तरह सब कुछ चोरी छिपे हुआ , उस से मोदी सरकार की प्रतिष्ठा को भी नुक्सान पहुंचा है | अजित पवार ने तो अपनी पार्टी को धोखा दिया ही , देवेन्द्र फडणविस ने भी सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए कब अपनी पार्टी से पूछा , सरकारों के सम्बन्ध में भाजपा के सारे फैसले संसदीय बोर्ड में होते हैं , अगर सरकार नहीं बनाने का फैसला संसदीय बोर्ड का था , तो सरकार बनाने का दावा पेश करने के सम्बन्ध में कब बोर्ड से पूछा गया | और उस से अहम सवाल यह है कि फडणविस और अजित पवार के राजभवन जा कर दावा पेश करने की बात क्यों छुपाई गई , राजभवन की ओर से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश को भी देश से छुपाया गया , मंत्रिमंडल की बैठक बुला कर राष्ट्रपति राज हटाने की सिफारिश भी देश से छुपाई गई | और यह सब कुछ रात के अँधेरे में सिर्फ आठ घंटों में हो गया |
फडणविस सरकार अब शिवसेना और कांग्रेस से दलबदल करवाने पर निर्भर है | फडणविस सरकार बचे या जाए , रात के अँधेरे में लोकतंत्र के साथ छिना-झपटी की यह घटना देश के लोकतंत्र के इतिहास में दर्ज हो गई है | वैसे शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन भी लोकतंत्र से छिना झपटी ही है | राजनीति में नैतिकता का कोई तकाजा नहीं होता , पर अब नैतिकता के नए सवाल खड़े हो गए है , अजित पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस विधायक दल के नेता के नाते समर्थन की चिठ्ठी दी थी और उसी नाते उप मुख्यमंत्री बने थे | अब 54 में से 41 विधायकों ने राज्यपाल को लिख कर दे दिया है कि अजित पवार उन के नेता नहीं हैं | तो अजित पवार के पास उप मुख्यमंत्री बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रहा | उन्हें तुरंत उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए | उन्हें नेता पद से हटाने की बात राज भवन के अलावा सुप्रीमकोर्ट को भी बता दी गई है , जो लोकतंत्र से छिना-झपटी की सुनवाई कर रही है | छिना-झपटी की रात में क्या क्या , कैसे कैसे हुआ उस के सारे दस्तावेज केंद्र और राज्य सरकार से मांगे गए हैं , उन्हें देखने के बाद सुप्रीमकोर्ट वैसे ही 24-48 घंटे में बहुमत साबित करने के निर्दश देगा जैसे मई 2018 में येद्दुरप्पा को दिए थे और वह बहुमत साबित नहीं कर पाए थे , वैसे मुम्बई बेंगलूरू से बड़ी मंडी है , वह देश की आर्थिक राजधानी है , कुछ भी हो सकता है |
आपकी प्रतिक्रिया