अजय सेतिया / आप सोचिए सुप्रीमकोर्ट , हाईकोर्ट , राज्यपाल कैसे सचिन पायलट के साथ खड़े दिख रहे हैं | सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि पार्टी के भीतर असहमति की आवाज उठाना पार्टी छोड़ना नहीं होता | हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार है | जबकि संविधान की दसवीं अनुसूची का अनुच्छेद 2(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का उलंघन करता है | असल में यह वह अनुच्छेद है जिस के तहत स्पीकर को अधिकार मिला है |
सुप्रीमकोर्ट ने स्पीकर सीपी जोशी से कहा था कि वह 24 जुलाई तक हाईकोर्ट के फैसले का इन्तजार कर लें | अब हाईकोर्ट का फैसला आया , तो वही था , जो सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस कह रहे थे कि पार्टी के भीतर असहमति पार्टी छोड़ना नहीं होता | हाईकोर्ट का रवैया शुरू से स्पीकर के खिलाफ था , सुप्रीमकोर्ट ने भी स्पीकर को कोई राहत नहीं दी | स्पीकर चाहते थे कि सुप्रीमकोर्ट हाईकोर्ट के उस निर्देश को खारिज करे , जिस में उन्हें बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई से रोका गया था | सुप्रीमकोर्ट ने रोका नहीं और हाईकोर्ट ने आगे बढ़ते हुए स्पीकर को तब तक रोक दिया , जब तक सुप्रीमकोर्ट स्पीकर के अधिकारों की व्यापक समीक्षा न कर ले |
पर सवाल उठता है कि क्या स्पीकर सीपी जोशी हाईकोर्ट के निर्देशों को रद्द करवाना चाहते भी थे या वही चाहते थे , जो हुआ है | अगर जोशी बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते तो उन्हें हाईकोर्ट में पार्टी बनने की जरूरत ही नहीं थी | सुप्रीमकोर्ट ने 1992 के अपने फैसले में स्पीकर का अंतिम अधिकार मान लिया था | सीपी जोशी हाईकोर्ट को इग्नोर कर अपनी कार्रवाई करते | उन के फैसले के बाद हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट 1992 फैसले की समीक्षा करती तो करती | सुप्रीमकोर्ट ने अभी 1992 के अपने फैसले पर कोई राय नहीं दी है , लेकिन हाई कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीमकोर्ट का 1992 का फैसला सदन में व्हिप और दलबदल से जुड़ा था | यानी इस केस में वह लागू नहीं होता , क्योंकि सचिन गुट के विधायकों ने दलबदल नहीं किया |
पहली नजर में लगता है कि स्पीकर ने हाईकोर्ट में अपना वकील नियुक्त कर के खुद कहा था कि आ बैल मुझे मार | पर गहराई में जाएंगे , तो समझेंगे कि जोशी , अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल कांग्रेस में गहलोत विरोधी गुट में हैं | इस लिए यह रणनीति कोर्ट को सामने रख कर गहलोत को घेरने की थी | हाईकमान के समर्थन से यह खेल खुद अशोक गहलोत ने शुरू किया था , जब उन्होंने विधायकों की खरीद फरोख्त मामले में सचिन पायलट को पूछताछ का नोटिस जारी करवा दिया था | पर बाद में एक तरफ तो केंद्र सरकार बीच में कूद गई और दूसरी तरह गहलोत जिस स्पीकर जोशी को सचिन के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहते थे , उन जोशी के 2008 के जख्म भी हरे हो गए , जब जोशी की मेहनत से चुनाव जीतने के बाद गहलौत सीएम् बन बैठे थे |
केंद्र सरकार ने गहलोत के भाई और बेटे पर केन्द्रीय जांच एजेंसियों , आयकर विभाग और ईडी के छापे मरवा कर गहलोत को घेरा तो गहलोत ने भी केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र शेखावत के खिलाफ मोर्चा खोल कर संजीवनी कोआपरेटिव सोसायटी का मामला कोर्ट में खुलवा दिया है , जिस में कोई 900 करोड़ का घोटाला है | तो कुल मिला कर यह लड़ाई केंद्र बनाम गहलोत बन गई है और गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट भाजपा के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं | मजेदार बात यह है कि स्पीकर जोशी, अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल भी दिल से गहलोत के साथ नहीं हैं |
अब राज्यपाल भी इस लड़ाई में कूद गए हैं क्योंकि चारों तरफ से हताश गहलोत तुरंत विधानसभा सत्र बुला कर बहुमत साबित करना और सचिन गुट को बेनकाब करना चाहते हैं , तो राज्यपाल ने कोरोनावायरस के बहाने तुरंत स्तर बुलाने से इनकार कर दिया है | गहलोत ने विधायकों के साथ राजभवन में धरना देकर राज्यपाल के खिलाफ आन्दोलन का बिगुल बजा दिया है , वह राष्ट्रपति भवन में कूच की तैयारी भी कर रहे हैं | लेकिन क्या इसी बीच कांग्रेस हाईकमान बीच का रास्ता निकाल कर जोशी को मुख्यमंत्री बनवा सकता है |
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