भाजपा ही क्यों भूल गई सेनानियों को

Publsihed: 24.Jun.2021, 13:03

अजय सेतिया / 46 साल पहले आज के दिन इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपातकाल लगाया था | अपन तब 19 साल के थे , इंदिरा गांधी को अपन से खतरा था | इसलिए अपनी गिरफ्तारी के लिए जगह जगह छापे मारे गए | पर अपन हर रात दीवारों पर नारे लिख देते थे | आखिर तंग आ कर पुलिस ने अपने पिताश्री को हिरासत में ले लिया | इस तरह आधी रात को थाने में पहुंच कर गिरफ्तारी देनी पड़ी | अपने जैसे अनेकों अनेक युवाओं को महानगरों , शहरों, कस्बों और गाँवों से गिरफ्तार किया गया | क्या इतना काफी था , जी नहीं , झूठे केस बना कर पुलिस रिमांड लिया गया | मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाईं गई | पुलिस यातनाएं दी गई | अपन भुगतभोगी हैं | अपने एक मित्र प्रेम फुटेला के पाजामें को नीचे बाँध कर चूहे डाल दिए गए | यह एक उदाहरण है , ऐसे हजारों उदाहरण देश के हर जिले में मौजूद हैं | मानवाधिकार संगठनों ने दावा किया था कि 1,40,000 लोग जेलों में डाल दिए गए थे |

पर ऐसी नौबत आई क्यों थी | राज नारायण ने 1971 में इंदिरा गांधी के रायबरेली से लोकसभा सांसद चुने जाने को चुनौती दी थी | इंदिरा गांधी से हारे राजनारायण ने भ्रष्टाचार और सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग के आरोप लगाए थे | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को दिए फैसले में इंदिरा गांधी को चुनावी धांधली का दोषी पाया था | जस्टिस जगमोहन लाल सिंहा ने उन का चुनाव अवैध घोषित कर दिया था | अगले छह महीनों के लिए उन के चुनाव लड़ने पर रोक भी लगा दी थी | फ़ैसले के बाद इंदिरा गांधी ने अपने घर पर कांग्रेस की बैठक बुलाई थी | जिस में कांग्रेस अध्यक्ष डी के बरुआ ने सुझाव दिया था कि अंतिम फैसला आने तक वह कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया जाए | कहते हैं तभी कमरे में संजय गांधी आ गए , उन्होंने अपनी मां को किनारे ले जा कर सलाह दी कि बड़ी मुश्किल से कांग्रेस सिंडिकेट से राहत मिली है , वह दुबारा यह जोखिम न उठाएं |

इंदिरा गांधी अपने बेटे के तर्कों से सहमत थी | उन्होंने हाईकोर्ट की ओर से 20 दिन में चुनौती देने के अधिकार का इस्तेमाल करने का निर्णय किया | सुप्रीमकोर्ट ने 23 जून को उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट तो दे दी थी , लेकिन अंतिम फैसले तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था | स्वतन्त्रता सेनानी जय प्रकाश नारायण पहले से ही गुजरात और बिहार की भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे | जेपी ने इंदिरा गांधी को निशाना बना कर आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी कर दिया | 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली रखी गई थी , जिस में लाखों लोग जुटे थे | राष्ट्रव्यापी आन्दोलन से डर कर इंदिरा गांधी ने उसी रात आपातकाल की घोषणा कर दी | सोए हुए राष्ट्रपति को जगा कर उन से आपातकाल का नोटिफिकेशन जारी करवाया गया |

आपातकाल में हुई ज्यादतियों का इतिहास भरा पड़ा है | हर लेखक ने उसे अपने ढंग से लिखा है | तब के सारे विपक्षी नेता बाद में विभिन्न गैर कांग्रेसी सरकारों में प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री, केन्द्रीय सरकारों और राज्य सरकारों में मंत्री बने | अटल बिहारी वाजपेयी , लाल कृष्ण आडवानी ,राजनारायण , चरण सिंह , मधु दंडवते आदि दर्जनों बाद में मोरारजी सरकार में मंत्री बने | लालू यादव , मुलायम सिंह , कल्याण सिंह , नितीश कुमार , भैरो सिंह शेखावत, प्रकाश सिंह बादल , शांता कुमार , सुंदर लाल पटवा , भगतसिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री बनने वाले कितने नाम गिनाएं | लेकिन इन नेताओं ने उन कार्यकर्ताओं की सुध नहीं ली , जिन्होंने पुलिस रिमांड में यातनाएं सही थीं | ऐसे सैंकड़ों कार्यकर्ता आज भी उन दिनों की यातनाओं का कष्ट भोग रहे हैं | आरएसएस के सैंकड़ों स्वयसेवक भी |

मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री रहते उन सभी को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा देते हुए पेंशन का एलान किया था | जिसे बाकी राज्यों के उन मुख्यमंत्रियों ने भी दोहराया , जो खुद जेल में रहे थे , जो उन कार्यकर्ताओं की यातना के गवाह थे | लेकिन उस में एकरूपता नहीं | पंजाब में एक हजार है , राजस्थान में 12 हजार है , तो बिहार , मध्यप्रदेश में 25 हजार | जैसे ही उन राज्यों में कांग्रेस की सरकार आती है , पेंशन बंद | आपातकाल की ज्यादतियों पर माफी मांगने के बावजूद कांग्रेस की मानसिकता वही है | लेकिन जिन राज्यों में आपातकाल विरोधियों की सरकार आई ही नहीं, उन राज्यों के लोकतंत्र सेनानिओं का क्या | लोकतंत्र सेनानियों की मांग थी कि मोदी राष्ट्रव्यापी फैसला लें | आपातकाल राज्यव्यापी नहीं , राष्ट्रव्यापी था | पर पांच साल में मोदी टस से मस नहीं हुए | दबाव बना तो अमित शाह ने पार्टी अध्यक्ष रहते नड्डा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी | नड्डा भाजपा अध्यक्ष बन गए , अमित शाह गृहमंत्री बन गए | आपातकाल की यातनाएं सहने वाले जस के तस |

 

 

 

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