शाहीनबाग़ में था नफरत का धरना 

Publsihed: 24.Mar.2020, 19:08

अजय सेतिया /प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजुल मीडिया के पत्रकारों से बातचीत के 24 घंटे बाद जब पुलिस ने शाहीन बाग़ से तम्बू उखाड़ फैंके तो मीडिया में कोई शोर शराबा नहीं हुआ | असल में सरकार विजुअल मीडिया के डर से ही चुप्पी साध कर बैठी हुई थी | वरना वह गैरकानूनी धरना 17 दिसम्बर को ही उखाड़ फैंकती | नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध तो पूरी तरह अनपढ़ता पर आधारित है ही , सडक पर धरना लगाना भी गैरकानूनी था |

शुरू में आमजन और मीडिया की आँखों में धूल झोंक कर धरने को सेक्यूलर बताने की कोशिश की गई , कुछ हिन्दुओं , सिखों , ईसाईयों को धरने में बिठा कर सभी धर्मों की ओर से नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध दर्शाया गया | अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के दिल्ली स्थित रिपोर्टरों ने इसी भ्रान्ति में आ कर क़ानून के खिलाफ व्यापक विरोध की बेबुनियाद खबरें लिखीं जिस से दुनिया भर में भारत की छवि खराब हुई | इस लिए भी मोदी सरकार फूंक फूंक कर कदम रखना चाहती थी |

कपिल सिब्बल ने राज्यसभा में यह कह कर कि नागरिकता संशोधन क़ानून से किसी की नागरिकता नहीं जाएग , इस धरने के आधार की हवा निकाल दी थी | साबित हो गया था कि अनपढ़ औरतों को कैदखाने में रखे जाने का झूठा डर दिखा कर धरने पर बिठाया गया था | यह डर मणिशंकर अय्यर से ले कर सलमान खुर्शीद और सोनिया गांधी के सिपहसलार हर्ष मंदर तक दिखा कर आए थे | इस धरने के पीछे असली ताकत जेहादियों और वामदलों के गठबंधन की थी , जिन्होंने कांग्रेस के नेताओं को भी लगातार झूठ बोलने के लिए मजबूर किया | जबकि डेढ़ पेज के क़ानून में ऐसा कुछ नहीं था , जो सामान्य पढ़ा लिखा आदमी भी न समझ सके कि यह क़ानून नागरिकता लेने का नहीं देने का था |

क़ानून की संवैधानिकता सुप्रीमकोर्ट तय करेगी , जहां 200 से ज्यादा याचिकाएं लम्बित हैं , लेकिन उस से पहले ही वामपंथी नेता क़ानून को मुस्लिम विरोधी  बता कर अनपढ़ मुस्लिम औरतों को नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ भडकाने के लिए इस्तेमाल करते रहे | सवाल यह भी है कि जो लोग इन अनपढ़ औरतों को अब तक भडका रहे हैं , उन्हें इस्लामिक देशों में प्रताड़ित होने वालों से क्या दुश्मनी है कि वे उन को भारत की नागरिकता देने में अडचन पैदा कर रहे थे | इस के दो ही मतलब निकलते हैं , या तो उन का विरोध इस लिए है क्योंकि वे सब हिन्दू हैं , या फिर उन का विरोध मुस्लिम देशों के बचाव में है |

बात तब होती अगर मुस्लिम औरतें शिक्षा के अधिकार को 18 साल की उम्र तक लागू करने की मांग करतीं , रोजगार की मांग करतीं , मुसलमान मर्दों को शरीयत के मुताबिक़ मिले चार शादियाँ करने के अधिकार और हलाला के खिलाफ क़ानून की मांग करतीं | जो लोग उन्हें जेएनयू जैसे आज़ादी के नारे सिखा रहे थे , वे अगर उन से मर्दों की बराबरी के हक और बुर्के से आज़ादी के नारे लगवाते , तब भी मानते कि मुस्लिम औरतें अन्याय के खिलाफ उठ खडी हुई हैं | उन्हें बहला फुसला कर फर्जी मुद्दे पर हिन्दुओं के खिलाफ  नफरत पैदा कर के धरने पर बिठाया गया था |

आप सोचिए कि वह कितना शातिर दिमाग होगा , जिस ने इन औरतों को बीच सडक में ला कर बिठा दिया और असीमित समय के लिए उन के भोजन पानी और टेंट तक का इंतजाम कर रखा था | उन्होंने स्कूली बच्चों के स्कूल जाने का रास्ता रोक लिया , मरीजों को अस्पताल ले जाने का रास्ता रोक लिया , आम नागरिक के सडक पर चलने की आज़ादी छीन ली | वे संविधान की प्रति , बाबा साहिब अम्बेडकर की फोटो और  राष्ट्रीय ध्वज ले कर बैठीं थी , लेकिन सारा काम संविधान , बाबा साहिब अम्बेडकर , राष्ट्रीय ध्वज के खिलाफ कर रहीं थी | अगर वे देश के हित में धरना दे रहीं थी तो कोरोना वायरस के खिलाफ जब सारा देश एक जुट हो कर जूझ रहा है तो वे खुद ब खुद धरने से क्यों नहीं उठीं , अलबत्ता वे तो यह कह रहीं थी कि अगर मरना ही है तो मोदी की गोली से मरें या कोरोना वायरस से ,कोई फर्क नहीं पड़ता |

उन की अनपढ़ता की हद तो यह थी कि वे यहाँ तक कह रहीं थी कि मोदी और अमित शाह ने उन्हें धरने से उठाने के लिए कोरोना वायरस की अफवाह उडाई है , अब ये बातें सुनने के बाद आप कह सकते हैं कि इन्हें नागरिकता संशोधन क़ानून की कुछ समझ रही होगी | अमित शाह से इशारा पा कर दिल्ली पुलिस ने इन का टीन-टप्पर तो उखाड़ फैंका है , लेकिन दिल्ली पुलिस और गुप्तचर एजेंसियों को इस घटनाक्रम से सबक लेना चाहिए कि वे उन के इलाकों पर लगातार निगाह बना कर रखें | सडकों और पार्कों में उन्हें इक्कठा न होनें दें , वरना फिर से धरना शुरू होने में देर नहीं लगेगी |

 

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