झारखंड में भाजपा की हार तय थी

Publsihed: 23.Dec.2019, 18:40

अजय सेतिया / झारखंड के बारे में अपनी राय दो महीने पहले ही बन चुकी थी | जब हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे आए थे तब राज्यों में भाजपा की दुर्गति होने का कारण बताते हुए अपन ने “ नया इंडिया “ में ही 21 अक्टूबर के अपने इसी कालम में लिखा था –“केन्द्रीय नेतृत्व के भरोसे राज्यों का नेतृत्व खड़ा नहीं किया जा सकता | केंद्र से थोंपे गए मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल तो पूरा कर सकते हैं , लेकिन पार्टी की जड़ें जमाने और दुबारा चुनाव जितवाने में सहयोगी नहीं हो सकते | महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री का चुनाव दिल्ली से किया गया था , वे विधायकों की ओर से चुने गए मुख्यमंत्री नहीं थे | हालांकि दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने पांच साल अच्छी सरकार चलाई , लेकिन सिर्फ सरकार चलाना और पार्टी की जड़ें मजबूत करने में बहुत फर्क है | पार्टी की जड़ें पार्टी के क्षत्रप ही जमा सकते हैं , इस लिए भाजपा को सबक लेते हुए क्षत्रपों को उभारना होगा |” यह बात तब भी झारखंड पर लागू होती थी और अब भी लागू होती है | झारखंड समेत तीनों जगहों पर केन्द्रीय नेतृत्व ने क्षेत्रीय नेतृत्व को नजरअंदाज कर के उपर से थोंपे गए मुख्यमंत्री बनाए थे | इसी कालम में झारखंड के बारे में अपन ने लिखा था-“ दिल्ली में केजरीवाल को अभी भी भाजपा और कांग्रेस से बेहतर स्थिति में माना जा रहा है , और झारखंड की भाजपा सरकार के बारे में भी कोई अच्छी छवि नही बन रही |

जो महाराष्ट्र में हुआ था , वही झारखंड में भी हुआ | महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री ने मनमानी करते हुए अपनी सरकार के मंत्री विनोद तावदे का टिकट कटवा दिया था | तो झारखंड में रघुबर दास ने अपनी मनमानी करते हुए अपनी केबिनेट के मंत्री सरयू राय का टिकट कटवा दिया | यह तो भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को देखना था कि वह अपने मुख्यमंत्रियों को मनमानी नहीं करने दें | भाजपा सामूहिक नेतृत्व से चलने वाली पार्टी रही है , इस लिए राज्य के किसी एक नेता के कहने पर टिकट देने और काटने का यह नया तरीका भाजपा के अंदरुनी लोकतंत्र को तहश नहश कर रहा है | जिस के नतीजे देखे जा रहे हैं कि 2017 तक देश के 71 फीसदी इलाके पर उस की सरकारें कायम हो चुकी थीं , जबकि अब 35 प्रतिशत इलाके तक ही सीमित हो गई है | राज्यों में भाजपा की हार के कारण अलग अलग हो सकते हैं , लेकिन अपना मानना है कि महाराष्ट्र में मराठा भाजपा से खफा थे , हरियाणा में जाट भाजपा से खफा थे और झारखंड में आदिवासी भाजपा से खफा थे | अब नागरिकता क़ानून के कारण एकजुट हुआ हिन्दू कोई भला कर जाए तो अलग बात है, वरना दिल्ली में तो भारी मंहगाई , मंदी और बेरोजगारी के कारण हर कोई भाजपा से खफा है , इस लिए दिल्ली का क्या होगा , कुछ नहीं कहा जा सकता | 2014 में भी तो दिल्ली में मोदी का जादू नहीं चला था |

हालांकि राज्यों में भाजपा की हार का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की लोकप्रियता में कोई गिरावट आ रही है | अपना शुरू से मानना रहा है कि न तो विधानसभा चुनावों का लोकसभा चुनावों पर असर पड़ता है , न लोकसभा चुनावों का विधानसभा चुनावों पर | राजस्थान , मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव नतीजों के बाद इन्हीं राज्यों की लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजे देख लीजिए | इसी तरह झारखंड के लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद विधानसभा का चुनाव नतीजा देख लीजिए |

राष्ट्रीय स्तर पर 2024 में भी मोदी का पलड़ा भारी रहना है क्योंकि कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से बाज नहीं आ रही | नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर के तो कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी से इतना बड़ा जख्म कर लिया है कि वह अब आने वाले पांच साल तक नहीं भरा जा सकेगा | कांग्रेस के सार्वजनिक विरोध ने मुस्लिम हिन्दू ध्रुविकरण को हवा दी | वह गलत मुद्दे पर मुसलमानों के साथ खडी हो गई , जिस कारण पहले से नाराज हिन्दू उन से और दूर चला गया है | पाकिस्तान  का जन्म ही इस्लाम के नाम पर हुआ था , इसलिए वहां रह गए हिन्दुओं को भारत में आने का हमेशा से ही हक था | इस बात को गांधी , नेहरु और पटेल ने समय समय पर कहा ही नहीं अलबता वायदा भी किया था कि वे जब भी भारत आना चाहें उन का स्वागत किया जाएगा | अब यह कहना कि सेक्यूलर देश में धर्म के आधार पर नागरिकता कैसे दी जा सकती है , किसी हिन्दू के गले नहीं उतर रहा |

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