अजय सेतिया / एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की मीटिंग शुक्रवार शाम 8 बजे खत्म हुई , 9 बजे शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने अपने ट्विटर हैंडल पर मीटिंग के चार फोटो पोस्ट किए | साढे नौ बजे भाजपा विधायक दल के नेता देवेन्द्र फडनवीस और एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार ने राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी से मिल कर दावा पेश किया | केंद्र को संदेश पहुंचा , रात को केबिनेट की आपात बैठक हुई और सुबह 5.47 पर राष्ट्रपति भवन के फरमान से राष्ट्रपति राज खत्म कर दिया गया | साढे छह बजे शरद पवार को सूचना गई कि आठ बजे राजभवन में भाजपा-एनसीपी सरकार का शपथ ग्रहण है | सुबह 8 बज कर 4 मिनट पर देवेन्द्र फडनवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद और गोपनीयताकी शपथ ले ली |
महाराष्ट्र में 1978 दोहराया गया , जब शरद पवार ने कांग्रेस के सिर्फ 12 विधायकों के साथ दलबदल कर वसंत दादा पाटिल की सरकार का तख्ता पलट कर जनता पार्टी के साथ साझा सरकार बना ली थी | शुक्रवार रात को 9 बजे तक शरद पवार का भतीजा उन के साथ था और साढ़े नौ बजे देवेन्द्र फडनवीस के साथ | शनिवार को एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की बैठक के बाद उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाने का दावा पेश करना था | सवाल है कि 6.30 से 8 बजे तक शरद पवार ने क्या किया | क्या उन्होंने तुरंत उद्धव ठाकरे को बताया या शपथ ग्रहण के बाद फोन किया | शरद पवार ने बाद में उद्धव ठाकरे के साथ की गई साझा प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि अजित पवार ने धोखा दिया है ,उन्होंने कुछ विधायकों को भी मीडिया के सामने पेश किया जिनके अजित पवार ने दस्तखत करवाए हुए हैं | लेकिन शरद पवार ने अजित पवार के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से इनकार किया है | अपन पहले भी लिख चुके हैं कि शरद पवार को समझना आसान नहीं | बीस नवम्बर को जब वह प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे तो मुद्दा महाराष्ट्र की फसल बर्बादी का था , इस लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण भी मौजूद थी , लेकिन बातचीत में अमित शाह क्यों मौजूद थे |
सवाल उठता है कि क्या अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की सहमति से भाजपा के साथ गए हैं | क्या उसी दिन शरद पवार ने मोदी और अमित शाह से कह दिया था कि राज्य स्तर पर अजित पवार से बात कर लें | क्या शरद पवार को भरोसा नहीं था कि उद्धव ठाकरे जिला को-आपरेटिव समितियों और जिला बैंकों की वर्तमान स्थिति को बहाल रखेंगे | क्योंकि 2011 में पृथ्वी राज चौहान ने इन्हें भंग कर के उन्हें राजनीतिक नुक्सान पहुंचाया था जिस कारण पवार ने कांग्रेस से नाता तोड़ कर अकेले चुनाव लडा और बहुमत नहीं होने के बावजूद भाजपा की सरकार बनवाई थी | बदले में देवेन्द्र फडनवीस ने सारी को-आपरेटिव सोसाइटियों को बहाल कर दिया था | इस लिए उद्धव ठाकरे के मुकाबले देवेन्द्र फडनवीस ज्यादा भरोसेमंद हैं | अगर यह नहीं है तो क्या अजित पवार अपने भतीजे रोहित पवार को आगे बढाए जाने की शरद पवार की रणनीति से खफा थे , क्या पवार अपने पोते रोहित को उप-मुख्यमंत्री बनवाने की रणनीति पर काम कर रहे थे |
याद करने की बात है कि विधानसभा चुनाव से पहले अजित पवार ने विधानसभा और एनसीपी से इस्तीफे का एलान किया था | शरद पवार ने अजित की सीट बारामती से रोहित को लडवाने का एलान भी कर दिया था , साथ ही यह भी कह दिया था कि वह विधायक दल के नेता होंगे | तब अजित पवार की भाजपा में शामिल होने की बातचीत शुरू हो गई थी | इस के बाद परिवार के लोगों ने बीच बचाव किया तो चाचा भतीजे में समझौता हुआ था | इस समझौते के तहत अजित को बारामती सीट का एलान हुआ और उन्हें ही विधायक दल का नेता बनाने का वादा भी हुआ , उन्हें नेता बनाया भी गया | अब अजित पवार का दावा है कि 54 में से 29 विधायक उन के साथ हैं | लेकिन क्या 30 नवम्बर को बहुमत साबित करने तक इतने विधायक उन के साथ रह पाएंगे | अगर अजित पवार के साथ ज्यादा विधायक नहीं रहे तो क्या अमित शाह एनसीपी की तरह कांग्रेस और शिवसेना में भी दलबदल करवाने जा रहे हैं | शरद पवार , उद्धव ठाकरे और अहमद पटेल का दावा है कि 30 नवम्बर को सरकार गिर जाएगी और शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार बनेगी | अगर ऐसा होता है तो राज्यपाल के विवेक पर भी सवाल उठेंगे |
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