अजय सेतिया / जम्मू की एक कोर्ट ने उन छह पुलिस कर्मियों के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं , जिन्होंने चर्चित कठुआ रेप केस मामले में झूठे गवाह पेश किए थे | उन झूठे गवाहों ने खुद कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर उब छह पुलिस कर्मियों के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज करने की दरख्वास्त लगाई थी , जिन्होंने झूठी गवाही के लिए उन्हें टार्चर किया था | जिला अदालत के इस आदेश से जम्मू कश्मीर पुलिस में हडकम्प मच गया है और कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी चल रही है | पुलिस जम्मू कश्मीर की हो या गुजरात की , अलबत्ता वह भारत के किसी भी राज्य की पुलिस हो या पाकिस्तान की , सब जगह पुलिस के काम करने का एक ही तरीका है | अपराध कबूल करवाने के लिए वह मानवाधिकारों का जम कर हनन करती है | कुलभूषण जाधव का केस तो अपने सामने है ही , जब अंतर्राष्ट्रीय अदालत के आदेश पर भारतीय काऊंसिल को उसे मिलने की इजाजत दी गई , तो वह इतनी दहशत में था कि भारतीय अधिकारी के सामने भी खुद को भारत का जासूस बताने लगा | उसे पता था कि अगर उस ने खुद के अफगानिस्तान में अपहरण कर पाकिस्तान लाए जाने की बात कही तो पाकिस्तान पुलिस/सेना उस का क्या हश्र करेगी |
इस तरह की बातें सामने आती रही हैं कि अपनी कहानी को अदालत में सच साबित करने के लिए पुलिस झूठे गवाह पेश करती हैं , जिन्हें कुछ पैसे दिए जाते हैं , लेकिन इस तरह के केस बहुत कम सामने आए हैं , जहां मार-पीट कर किसी को झूठी गवाही के लिए मजबूर किया गया हो | पुलिस ऐसा दो कारणों से करती है , एक कारण तो पुलिस का राजनीतिक दबाव में आना होता है , जहां किसी बड़े राजनीतिज्ञ की किसी को अपराधी ठहराने की मंशा हो | दूसरा कारण , पुलिस किसी केस में किसी नतीजे पर न पहुंच सके तो वह झूठे गवाह पेश कर के किसी बेगुनाह को सजा दिला देती है | ऐसे अनेक केस सामने आए हैं जिन में झूठी गवाही के आधार पर बेगुनाहों ने सजा काटी , इसे अपनी न्यायव्यवस्था की विफलता भी मान सकते हैं , लेकिन उस के लिए जिम्मेदार पुलिस ही होती है |
कठुआ रेप केस देश में राजनीतिक मुद्दा बन चुका था , जहां एक तरफ हिन्दुओं को बलात्कारी कहा जा रहा था , वहीं दूसरी तरफ हिन्दू संगठनों का आरोप था कि महबूबा मुफ्ती ने हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश के तहत हिन्दुओं को फंसाया है | इस रेप केस से जम्मू कश्मीर सरकार के साझीदारों भाजपा-पीडीपी में टकराव की शुरुआत हुई थी | प्रदेश स्तर के कई भाजपा नेता खुल कर जम्मू कश्मीर पुलिस पर फर्जी केस बनाने का आरोप लगा रहे थे , कुछ ने तो इसी मुद्दे पर भाजपा भी छोड़ दी थी | हालांकि भाजपा आलाकमान ने इस मामले में कोई दखल नहीं दिया , किसी का पक्ष भी नहीं लिया , लेकिन तभी से यह माना जाने लगा था कि भाजपा महबूबा मुफ्ती से पिंड छुडाने का रास्ता खोज रही है |
मुफ्ती सरकार की मंशा तभी से शक के घेरे में आ गई थी , जब रेप काण्ड के मुख्य आरोपी साझी राम के बेटे विशाल ज्गोतारा को भी गैंग रेप का आरोपी बताया गया | विशाल के खिलाफ झूठी गवाही देने के लिए पुलिस ने नीरज शर्मा , सचिन शर्मा और साहिल शर्मा को धर दबोचा , उन पर पुलिसिया जबर ढाया गया और उन से कहलवाया गया कि उन्होंने विशाल को कठुआ में देखा था , जबकि वास्तविकता यह थी कि विशाल तो उत्तर प्रदेश में कालेज के होस्टल में था | विशाल के कठुआ में नहीं होने और यूपी में अपने कालेज में होने का सीसीटीवी सबूत कोर्ट में पेश किया गया तो पुलिस और गवाहों की कहानी झूठी साबित हो गई | पठानकोट कोर्ट ने जहां छह आरोपियों को सजा सुनाई वहीं विशाल को बरी कर दिया |
फैसले के चार महीने बाद स्थितियां बदल चुकी है , झूठी कहानी बनाने वाली पुलिस को संरक्षण देने के लिए महबूबा मुफ्ती की सरकार मौजूद नहीं है | नीरज , सचिन और साहिल ने पहले पुलिस और बाद में जिला अदालत में एसआईटी के उन छह अधिकारियों के खिलाफ ऍफ़आईआर की गुहार लगाई , जिन्होंने उन्ही झूठी गवाही के लिए टार्चर किया था | जिला अदालत के आदेश के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस में हडकम्प है , क्योंकि अगर यह शुरूआत हो गई तो कहीं कठुआ रेप केस की परतें फिर से न खुलने लगे और कहीं हाईकोर्ट में कहानी ही न पलट जाए |
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