स्पीकर पद की गरिमा गवा दी

Publsihed: 23.Jul.2020, 09:34

अजय सेतिया / अपन ने कल लिखा था कि राजस्थान के स्पीकर को हाईकोर्ट में नहीं जाना चाहिए था | उन्हें कानों में रुई डाल लेनी चाहिए थी और सुनना भी नहीं चाहिए था कि कोर्ट क्या कह रही है | संविधान के दसवें अनुच्छेद ने उन्हें कोर्ट की तरह अधिकार दिए हुए हैं , तो उन्होंने खुद हाईकोर्ट की दासता क्यों स्वीकार की | और फिर अपने प्रोटेक्शन के लिए सुप्रीमकोर्ट क्यों गए | अपन ने अंदेशा जताया था कि स्पीकर सी.पी,जोशी राजनीति कर रहे हैं और सचिन पायलट को ज्यादा टाइम देने के लिए ही खुद पार्टी बन गए |

 

वह बात सुप्रीमकोर्ट में सही साबित हो गई , सुप्रीम कोर्ट में जोशी के वकील कपिल सिब्बल ने जब कोर्ट में कहा, “ जब तक स्पीकर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता , तब तक कोर्ट कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकटा | हाईकोर्ट स्पीकर को सुनवाई का समय बढ़ाने का निर्देश भी नहीं दे सकता | '' तो जस्टिस बीआर गवई ने कपिल सिब्बल से पूछा कि – “ स्पीकर कोर्ट क्यों आए, वो न्यूट्रल होते हैं , वो कोई प्रभावित पक्ष नहीं हैं |” तो उन का मतलब साफ़ था कि स्पीकर खुद कोर्ट गए ही क्यों |
 

अगर स्पीकर हाईकोर्ट नहीं जाते और और संविधान में मिले अधिकारों के अनुसार अपनी कार्रवाई जारी रखते तो कोर्ट उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था | हाईकोर्ट अगर स्पीकर के नोटिस को अवैध ठहराती तो उस का फैसला स्पीकर या विधानसभा पर लागू ही नहीं होता | मणिपुर और कर्नाटक के मामलों में सुप्रीमकोर्ट कह चुकी है कि विधायकों की योग्यता के मामले में स्पीकर को फैसला करने का अधिकार है , हालांकि कर्नाटक के मामले में सुप्रीमकोर्ट ने यह जरुर कहा था कि संसद को स्पीकर के इस अधिकार पर पुनर्विचार करना चाहिए |

 

सुप्रीमकोर्ट के इस सुझाव पर मोदी सरकार ने विचार ही नहीं किया क्योंकि कोर्ट ने स्पीकर से अधिकार ले कर स्वतंत्र प्राधिकरण बनाने की बात कही थी, जिस का अध्यक्ष हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट का रिटायर्ड न्यायधीश हो | एक तरह से न्यायपालिका यह अधिकार चुने हुए सदन से छीन कर खुद लेना चाहती थी , और मोदी सरकार जजों के इस इरादे से अच्छी तरह वाकिफ है कि वे रिटायर होने के बाद किसी न किसी पद के जुगाड़ में लगे रहते हैं और नए पद सर्जित करते रहते हैं | इस से पहले कोर्ट ने मुख्य सूचना आयुक्त का पद भी रिटायर्ड जज के लिए सुरक्षित करने का आदेश दिया था | राजनीतिक सांठगाँठ से सभी राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्त का पद रिटायर्ड मुख्य सचिवों या केद्र सरकार के रिटायर्ड सचिवों ने हडपे हुए हैं , इस लिए ब्यूरोक्रेसी ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करवा कर ये पद अपने लिए बचा लिए थे |

 

खैर अपन उसी विषय पर वापस आते हैं | फिलहाल सी.पी. जोशी सुप्रीमकोर्ट में हार कर अपनी राजनीतिक चाल में सफल रहे हैं , लेकिन स्पीकरों को कोर्ट के दायरे में ला कर जोशी ने स्पीकर पद की गरिमा को नुक्सान पहुंचाया है | सचिन पायलट गुट की याचिका पर हाईकोर्ट को फैसला करने का हक मिल गया है, हालांकि इस बड़े मुद्दे पर अब सुप्रीमकोर्ट सोमवार से सुनवाई करेगा कि क्या हाईकोर्ट स्पीकर के नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर सकता है या नहीं | सुप्रीम कोर्ट कानून के बड़े सवाल पर विचार करेगा | स्पीकर के अधिकार बनाम कोर्ट के क्षेत्राधिकार पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट |

 

अब विचार इस पर भी होगा कि अगर कोई विधायक नेता के खिलाफ बयान देता है या नेतृत्व बदलने की मांग करता है तो क्या उसे पार्टी छोड़ना माना जा सकता है ? क्योंकि जस्टिस मिश्रा ने सुनवाई के दौरान बार बार इसे विधायक का लोकतांत्रिक हक कहा | सुनवाई इस पर भी होगी कि अगर कोई विधायक सदन से बाहर पार्टी छोड़ता है तो स्पीकर दलबदल क़ानून के तहत नोटिस दे सकता है या नहीं ? अपना शक अभी भी कायम है कि जोशी किसी न किसी तरह सचिन पायलट की मदद कर रहे हैं , ताकि सदन में शक्ति परीक्षण तक बागी विधायकों की बर्खास्तगी न हो | लेकिन अपनी राजनीति के लिए उन्होंने स्पीकर के अधिकारों को दाव पर लगा दिया , जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है | सोमनाथ चेटर्जी की आत्मा आज रो रही होगी , जिन्होंने स्पीकर रहते कभी कोर्ट का दखल स्वीकार नहीं होने दिया |

 

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