अजय सेतिया / भारत उन बड़े देशों में शामिल है जिसने विकसित देशों से पहले वेक्सिन तैयार की | पर वेक्सिन और संक्रमण को लेकर राजनीतिक दलों में जैसी बेवकूफी भरी बयानबाजी हुई और हो रही है , वैसी दुनिया के और किसी देश में नहीं हुई | इन बेवकूफियों के कारण हमें मूढ़ मति अवार्ड मिलना चाहिए | सोमवार को भारत ने एक दिन में 88 लाख लोगों को वेक्सिनेट कर के विश्व रिकार्ड बनाया | तो इस पर भी विपक्षी दलों को मिर्ची लग गई | जमानत पर जेल से बाहर पी. चिदंबरम ने कहा है कि मोदी को इस पर नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए | अपन भूले नहीं हैं कि चिदंबरम के सहयोगी शशि थरूर, जयराम रमेश और मनीष तिवारी ने भी अखिलेश यादव की तरह भारतीय वेक्सीन पर संदेह जताया था | कहा था कि अगर वेक्सिन इतनी ही विश्वसनीय है तो मोदी ने खुद क्यों नहीं लगवाई |
पहली मार्च को जब मोदी ने भारत बायोटेक की वेक्सिन लगवाई तो देश में भरोसा जगा | वेक्सिन लगवाने वालों की लाइनें लगी | तब गैर राजग मुख्यमंत्रियों और विपक्षी नेताओं ने वेक्सिन की कमी पर बवाल खड़ा कर दिया | वेक्सिन सर्टिफिकेट पर मोदी के फोटो पर बवाल खड़ा किया | फोटो पर तो इतना तिलमिलाए कि राहुल , केजरीवाल और ममता ने वेक्सिन के विकेंद्रीकरण की माग कर दी | मोदी ने राज्यों को 25 प्रतिशत वेक्सिन खुद खरीद कर लगाने की छूट दी तो केजरीवाल से ले कर ममता बेनर्जी तक के हाथों के तोते उड़ गए | फिर विपक्ष ने मुद्दा पकड़ा फ्री वेक्सिनेशन का | जब मोदी ने 21 जून से सभी को केंद्र सरकार के खर्चे पर फ्री वेक्सिनेशन का एलान कर दिया | तो अब विश्व रिकार्ड बनने की तिलमिलाहट | पर सच यह है कि वेक्सिन का यह रिकार्ड खोखला और बनावटी है | जहां 21 जून को 88 लाख वेक्सिन लगी थी | तो अगले दिन रफ्तार और बढनी चाहिए थी | पर अगले दिन यह आंकडा 54 लाख पर आ गया | सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा मध्यप्रदेश से आया | जहां सोमवार को रिकॉर्ड 16.95 लाख टीके लगे थे | वहीं मंगलवार को महज 4,825 लोगों को टीका लग सका | इसलिए अपन ने रिकार्ड को खोखला और बनावटी कहा |
अपन ने तो पहले ही लिखा था कि जुलाई आखिर से हर रोज एक करोड़ वेक्सिन का रिकार्ड बनना शुरू होगा | दो दिन वेक्सिनेशन रोक कर एक दिन बनावटी रिकार्ड बनाने का क्या फायदा | हताश विपक्ष को मुद्दों की तलाश है | विपक्ष मानसिकता वाले पत्रकारों को भी सरकार की आलोचना के मुद्दों की तलाश रहती है | वे सब बेहद खुश थे जब कोरोना की दूसरी लहर में मोदी का मिसमेनेजमेंट सामने आया | जनता का आक्रोश खुल कर सामने आ रहा था | लोग दवाईयों, आक्सीजन , अस्पताल में बेड और वेंटिलेटर के लिए मारे मारे फिर रहे थे | लेकिन वे खुश थे कि मोदी विरोधी लहर चल पड़ी है | जैसे ही मोदी ने दुनिया भर से मदद माँगी , मदद पहुंचने लगी | रातों रात आक्सीजन के प्लांट लग गए | आक्सीजन ट्रेनें चल गईं | पी.एम.केयर फंड से देश के हर जिले में हजारों वेंटिलेटर पहुंचाए गए | तो मोदी विरोधी लहर भी झाग की तरह बैठ गई | विपक्ष के सामने फिर संकट , रुदाली पत्रकार भी हताश | मोदी को धारणा बदलने में माहिर बता कर सिर धुन रहे हैं |
पर एक मुद्दा है , जो अपन को बार बार मथ रहा है | उन परिवारों का क्या होगा , जिन का मोदी सरकार की मिसमेनेजमेंट के कारण कमाने वाला चला गया | या केजरीवाल, उद्धव ठाकरे , अमरेन्द्र सिंह, गहलोत, योगी , शिवराज सिंह , नवीन पटनायक , ममता बेनर्जी , जगन मोहन रेड्डी जैसे मुख्यमंत्रियों की मिसमेनेजमेंट के कारण एकमात्र कमाने वाला चला गया | जो बच्चे अनाथ हुए , उन के लिए मुख्यमंत्रियों ने मासिक राहत का एलान किया | मोदी सरकार ने भी राहत का एलान किया | अच्छा किया , पर उन परिवारों का क्या होगा जो अनाथ हुए | एमडीएमए के तहत गृह मंत्रालय की खुद की गाइडलाइन थी कि आपदा में मरने वालों के परिवारों को 4 लाख रूपए दिए जाएंगे | इसी एक्ट के तहत कोरोना महामारी आपदा घोषित हुई है | तो कोरोना से मरने वालों के परिवारों को राहत से क्यों मुकर रही है सरकार | मोदी सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में हल्फिया बयान दे कर कहा कि केंद्र और राज्यों के लिए राहत देना संभव नहीं है | क़ानून के तहत यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों की भी थी | मोदी की किरकिरी करने के लिए केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, ममता बेनर्जी , जगन मोहन रेड्डी अपने राज्यों में राहत का एलान क्यों नहीं करते | राहुल गांधी अपने मुख्यमंत्रियों गहलोत और अमरेन्द्र सिंह को हिदायत क्यों नहीं देते | मोदी को गालियाँ निकालने से फुर्सत मिले , तो जरा इस पर भी गौर करें |
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