वाघेला की पटकनी से जख्मी हुई कांग्रेस 

Publsihed: 21.Jul.2017, 23:27

राहुल गांधी ने अभी तो कांग्रेस की बागडोर नहीं संभाली | एक-एक कर पूर्व मुख्यमंत्री छोड़ कर जा रहे हैं | विजय बहुगुणा , एसएम कृष्णा , जगदम्बिका पाल के बाद अब शंकर सिंह वाघेला भी गए | अपन ने कल शुकवार के कालम में ही तो लिखा था-" गुजरात की कांग्रेस भी टूट के कगार पर है | शंकर सिंह वाघेला कभी भी राहुल गांधी को टाटा-बाय-बाय कह सकते हैं | " असल में शुक्रवार को वाघेला का जन्मदिन था | वह 77 साल के हो गए | गुरूवार को दिल्ली में थे , तो कई नेताओं को मिले थे | अफवाह उडी कि उनने राहुल और सोनिया से मिलने का वक्त माँगा है | पर वक्त नहीं मिला, इस लिए वह कांग्रेस छोड़ देंगे | इस में आधा सच था, आधा झूठ | वाघेला ने न सोनिया से मिलने का वक्त माँगा था, न राहुल से | अलबत्ता अहमद पटेल ने वाघेला से मिलने का वक्त माँगा था, जो वाघेला ने नहीं दिया | वाघेला की राहुल-सोनिया से दो टूक बात कई दिन पहले ही हो चुकी थी | वह तीन महीने पहले से ही कांग्रेस छोड़ने का मन बनाने लगे थे | मई में वाघेला ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात की थी | मुलाकात की खबरें फोटो के साथ छपी थी | इस खबर को कांग्रेस पर दबाव की राजनीति माना गया | यह सच भी था | कांग्रेस को इशारा समझना चाहिए था | वाघेला दो टूक कह रहे थे कि विधानसभा चुनाव की बागडोर सौंपी जाए | या तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए या मुख्यमंत्री का उम्मीन्द्वार तय किया जाए | अमरेन्द्र सिंह के दबाव में कांग्रेस ने पंजाब में ऐसा ही किया था | पर राहुल गांधी पहले आनाकानी करते रहे | फिर साफ़ कह दिया कि इस से कांग्रेस के पुराने नेता खफा हो जाएंगे | जब यह बात साफ़ हो गई, तो वाघेला या तो मन मसोस कर रह जाते | या फिर टाटा-बाय-बाय कह देते | अपन शंकर सिंह वाघेला को कोई आज का नहीं जानते | बात 1995 की है , जब भाजपा को गुजरात में बहुमत मिला था | विधायकों का बहुमत वाघेला के साथ था | पर भाजपा हाईकमान ने केशुभाई पटेल को सीएम बना दिया था | आठवें महीने ही वाघेला ने बगावत कर दी थी | भाजपा को घुटने टेकने पड़े | समझौते में वाघेला खेमे के सुरेश भाई मेहता को सीएम बनाया गया और मोदी को गुजरात निकाला मिला था | वह दिल्ली ला कर भाजपा के सचिव बनाए गए थे | पर एक साल बाद वाघेला की सुरेश भाई मेहता से भी नहीं पटी | तो वाघेला ने हाईकमान के खिलाफ फिर बगावत कर दी | बगल के मध्य प्रदेश में तब दिग्विजय सिंह की सरकार थी | वाघेला भाजपा के विधायको को  तोड़ कर दिग्विजय सिंह के संरक्षण में मध्यप्रदेश लाए थे | राष्ट्रीय जनता पार्टी के नाम से अलग गुट बनाया और कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बने थे | कांग्रेस में तो वह 1998 में शामिल हुए | जब केंद्र में वाजपेयी की सरकार बन गई थी | वाघेला धुन के पक्के और धारा के खिलाफ बहना जानते हैं | हाईकमान को चुनौती देने के तो वह अनुभवी हैं | अपन जानते थे कि वह न सुनने के आदी नहीं और राहुल गांधी ने न कह दी थी | इस लिए अपन को पता था कि वह कभी भी टाटा-बाय-बाय कह देंगे | गुरूवार को वह भविष्य की रणनीति बनाने दिल्ली आए थे | हालांकि राजनीति के वह कितने बड़े खिलाड़ी हैं | यह तो ऊपर पढ़ कर आप समझ ही गए होंगे | वह शरद पवार से मिले थे , फिर प्रफुल्ल पटेल से भी मिले | उनने प्रफुल्ल पटेल को बता दिया था कि वह शुक्रवार को टाटा-बाय-बाय कह रहे हैं | गुजरात में विपक्ष के नेता थे, वहां से भी इस्तीफा दे दिया | आठ अगस्त को राज्यसभा की एक सीट का चुनाव है | वाघेला के साथ 10 एमएलए तो हैं ही | अहमद पटेल का अब राज्यसभा में आना मुश्किल होगा | आने वाले 18 दिन राजनीतिक उथल-पुथल के हैं |  देखते हैं राज्यसभा सीट का ऊंट किस तरफ बैठता है | तो क्या वह खुद राज्यसभा का जुगाड़ कर रहे हैं, या अपने बेटे को भेजने की रणनीति है |  पन्द्रह अगस्त को वाघेला विधानसभा की सदस्यता छोड़ देंगे | वह तीसरे मोर्चे का गठन कर सकते हैं | जिसमें एनसीपी , जदयू ,हार्दिक पटेल, अल्‍पेश ठाकुर और जिग्‍नेश मेवानी को शामिल किया जा सकता है | इन उभरते हुए नेताओं का अलग अलग जातियों पर असर बना है | हार्दिक पटेल पाटीदारों के नेता बन कर उभरे हैं | अल्पेश ठाकुरों के नेता और जिग्नेश मेवानी दलितों के नेता बन कर उभरे हैं | अगर यह गठबंधन बना तो भाजपा विरोधी वोट इस गठबंधन और कांग्रेस में बटेंगा | यानि गुजरात में भाजपा मजे से जीत रही है |

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