साफ़ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं

Publsihed: 22.Jun.2021, 20:23

अजय सेतिया / आज की चर्चित खबर शरद पवार के घर पर हुई यशवंत सिन्हा के राष्ट्र मंच की बैठक है | चर्चा यह थी कि पीके यानी प्रशांत किशोर की सलाह पर शरद पवार 2024 की तैयारी के लिए तीसरा मोर्चा खड़ा कर रहे हैं | पीके ने सोमवार को दूसरी बार पवार से मुलाक़ात की थी | ममता बेनर्जी के चुनाव रणनीतिकार पीके कुछ ज्यादा ही बम बम हैं | वह समझते हैं कि शरद पवार और ममता को आगे कर के मोदी को मात दी जा सकती है | लगता है पवार और ममता दोनों पीके की रणनीति से सहमत हैं | इसलिए शरद पवार ने अपने घर पर मीटिंग की सहमती दी | रणनीति को आगे बढाने के लिए तृणमूल के नेता यशवंत सिन्हा को आगे किया गया है | बंगाल के चुनाव में वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे | यशवंत सिन्हा ने 30 जनवरी 2018 को राष्ट्र मंच नाम से संगठन खड़ा किया था | तीन साल बाद मंच की पहली बैठक थी | जिस में चुन चुन कर मोदी विरोधी लाए गए | पत्रकार करण थापर, आशुतोष , राजदीप सरदेसाई, प्रीतिश नंदी , पूर्व पत्रकार और वाजपेयी के ओएसडी रहे सुधींद्र कुलकर्णी , गीतकार जावेद अख्तर, सामरिक विशेषज्ञ केसी सिंह, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, अर्थशास्त्री अरुण कुमार प्रमुख थे |

उन सब मोदी विरोधियों को यशवंत सिन्हा ने पवार से मिलवाया | ताकि पवार यह मान लें कि देश का बुद्धिजीवी उन्हें नेता मानने को तैयार है | कांग्रेस से निकाले गए संजय झा और जदयू से निकाले गए पवन वर्मा भी बैठक में आए | खबर फ़ैली कि शरद पवार ने तीसरा मोर्चा बनाने की पहल कर ली है | खबर का आधार यह था कि कांग्रेस को न्योता नहीं गया था | न्योता आंध्र , तेलंगाना, उड़ीसा के मुख्यमंत्रियों और उन की पार्टियों को भी नहीं गया | जो अक्सर राज्यसभा में मोदी को समर्थन देते रहे हैं | न्योता शिव सेना को भी नहीं गया था , जो इस समय खुद एनसीपी के साथ मिल कर सरकार में है | पर शायद बाद में शरद पवार को गलती का एहसास हुआ | इस लिए उन्होंने यह कहलवा कर गलती सुधारी कि बैठक पवार ने नहीं यशवंत सिन्हा ने बुलाई थी | पवार के दूत मजीद मेमन ने सफाई दी कि कांग्रेस के नेताओं को भी बुलाया था | न्योता मनीष तिवारी , कपिल सिब्बल , विवेक तनखा , अभिषेक मनु सिंघवी और शत्रुघ्न सिन्हा को भी दिया था | पर शायद कांग्रेस ने इन सब को जाने से मना कर दिया था | इस लिए पवार ने मीटिंग से पल्ला झाड़ा | मीटिंग के बाद पहले यशवंत सिन्हा ने मीडिया से किनारा किया | फिर सफाई दे कर मेमन ने किनारा किया | और ब्रीफिंग की जिम्मेदारी बेचारे घनश्याम तिवारी पर सौंप दी | 

चलिए इतिहास में चलते हैं | 1989 में भी हू-ब-हू ऐसे ही हुआ था | राजीव गांधी के खिलाफ वित्त मंत्री वी पी सिंह ने बगावत की थी | उन के साथ भी तीसरे मोर्चे की मानसिकता वाले ऐसे ही तथाकथित बुद्धिजीवी जुटे थे | कुछ पत्रकार पर्दे के पीछे से वीपीसिंह का मार्गदर्शन कर रहे थे , कुछ सामने ही आ गए थे | राजीव विरोधियों ने जनता दल बनाया था | कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी साथ आ गईं थी | जिन्हें मिला कर राष्ट्रीय मोर्चा बनाया गया था | एन टी रामाराव अध्यक्ष और वी पी सिंह संयोजक बने थे | चुनाव के बाद राष्ट्रीय मोर्चे को वाम मोर्चे और भाजपा ने बाहर से समर्थन देकर पी सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया था | उसी वीपी सिंह की मंडल राजनीति के जवाब में भाजपा की कमंडल राजनीति ने सरकार गिरा दी थी | वहीं से शुरू हुई थी भाजपा की सत्ता तक पहुंचने की यात्रा | पर अब शरद पवार के रणनीतिकार पीके को मालूम है कि बिना सोनिया की मदद के पवार वीपी सिंह नहीं बन सकते | इस लिए जब सोनिया ने कांग्रेसियों को मीटिंग में जाने से मना कर दिया तो मीटिंग से ठीक पहले उन ने खुद एनडीटीवी को इंटरव्यू दे कर कहा कि "मैं तीसरे या चौथे मोर्चे में विश्वास नहीं करता... विश्वास नहीं करता कि तीसरा या चौथा मोर्चा भाजपा को चुनौती दे सकता है."

पीके अभी राजनीति के अनाडी हैं | नीतीश कुमार ने ठोकर मार कर निकाल दिया था , फिर भी राजनीति की चालें नहीं समझे | ममता , अखिलेश , केजरीवाल , येचुरी , डी राजा इसे समझते थे | इसलिए वे खुद बैठक में नहीं गए | उन्होंने छोटे छोटे नेताओं को बैठक में भेजा | सपा के घनश्याम तिवारी , सीपीएम नेता नीलोत्पल बसु, भाकपा सांसद बिनाय विश्वम , आप के सांसद सुशील गुप्ता मीटिंग में मौजूद थे | मेमन के बाद सीपीएम के  नीलोत्पल बसु ने भी सफाई दी कि कोई राजनीतिक मोर्चा नहीं बनाया जा रहा | सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी , किसानों की पेश्वारियों और लोकतांत्रिक संस्थायों के अवमूल्यन पर बात हुई | इन सफाईयों के बाद अपन को दाग देहलवी का वह शेयर याद आ गया , जिसे मोदी ने पिछले साल राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के जवाब में सुनाया था –“ खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं , साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं |”

 

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