अजय सेतिया / किसान नहीं माने , उन का कहना है कि एमएसपी पर कमेटी बनाने से बात नहीं बनेगी क्योंकि स्वामीनाथन कमेटी का हश्र वे पहले ही देख चुके हैं | डेढ़ साल तक कृषि क़ानून स्थगित करने पर भी किसान सहमत नही हुए , हालांकि इस मुद्दे पर किसान नेताओं में फूट है , योगेन्द्र यादव , हन्नान मौला,दर्शन सिंह टाईप वामपंथियों ने बात नहीं बनने दी | फिलहाल बातचीत टूट गई है ,तो कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति बैठक में कृषि कानूनों को लेकर मोदी पर पूंजीपतियों के लिए काम करने का आरोप लगाया है | कांग्रेस को पता है कि मोदी बुरी तरह घिर गए हैं , 2015 में भी वह कृषि भूमि अधिगृहण के मुद्दे पर घिरे थे और उस के बाद किसानों के मुद्दे पर ही अब दुबारा घिरे हैं | इस लिए कांग्रेस ने आंदोलनकारी किसानों की पीठ थपथपाई | पर मोदी इन बातों से बेखबर से दिखते हैं , वह अपनी राजनीतिक गोटियाँ अपने ढंग से चलते रहते हैं | उन्होंने एक बार कहा था कि मेरा क्या है , मैं अपना झोला-कमंडल उठा कर चला जाउंगा | अब तो उन्होंने बाबाओं वाली दाढी भी बढा ली है | लेकिन झोला उठाने के कुछ और भी मतलब हैं | उन्होंने किसानों के हित में क़ानून बनाए , उन्हें मंजूर नहीं , तो उन्हें क्या आखिर में थक हार कर रद्द कर देंगे |
लेकिन नरेंद्र मोदी राजनीतिक गोटियाँ अपने हिसाब से ही चलते हैं | आज नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का 125वां जन्मदिन है , तो उन्होंने याद कराया कि 1938 में गुजरात के हरिपुरा में ही नेता जी कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे | यह बात अलग है कि मोदी के गुजराती भाई महात्मा गांधी ने ही उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया था | मोदी ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अध्यक्ष चुने जाने की बात ठीक उस समय की , जब दिल्ली में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य नए अध्यक्ष के चुनाव को ले कर आपस में उलझ रहे थे | अपन ने नरसिंह राव , सीताराम केसरी के जमाने में कांग्रेस कवर की है , इस लिए अपन को यह जान कर खुशी हुई कि चलो कांग्रेस कार्यसमिति में बहस तो होने लगी है , वरना अपन ने तो कांग्रेस कार्यसमिति के चुनावों में नरसिंह राव के उम्मीन्द्वारों को हारते हुए भी देखा है | यह अच्छी बात है कि कांग्रेस में लोकतंत्र लौट रहा है , कार्यसमिति के सब सदस्य घुग्घू बन कर नहीं बैठते |
राजनीतिक दलों के नेता अगर अपनी सर्वोच्च बैठकों में अपने आका के सामने सिर झुका कर घुग्घू बन कर बैठ जाएं , तो उस पार्टी में लोकतंत्र नहीं होता | खैर राहुल गांधी को इस्तीफा दिए 20 महीने हो गए , कांग्रेस उन का विकल्प नहीं ढूंढ पाई , सोनिया गांधी दुबारा कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष है | बार बार खबर आती है कि राहुल दुबारा अध्यक्ष बनने को मान गए हैं , लेकिन वह खबर झूठी निकलती है | इस बार कांग्रेस के कलैंडर में जिस तरह प्रियंका गांधी के फोटो लगाए गए हैं , उस से राजनीतिक गलियारों में अटकलें है कि राहुल नहीं माने और अब प्रियंका पर दाव खेला जाएगा | लेकिन शुक्रवार को कांग्रस कार्यसमिति की बैठक से ठीक पहले खबर आई कि राहुल नहीं माने तो अशोक गहलोत के नाम पर सहमती बनाई जाएगी | शायद यह नाम कांग्रेस के चिठ्ठी ब्रिगेड को मंजूर नहीं , इस लिए कार्यसमिति में चिठ्ठी ब्रिगेड की गांधी परिवार के वफादारों से तकरार हो गई |
गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक और पी चिदंबरम ने अध्यक्ष का चुनाव तुरंत करवाने की गुहार लगाई | अशोक गहलोत, अमरिंदर सिंह, एके एंटनी, तारिक अनवर और ओमन चांडी का कहना था कि बंगाल समेत पांच राज्यों के चुनावों के बाद होना चाहिए | आखिर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव मई-जून तक टल गया | पर सुभाष चन्द्र बोस के बहाने सवाल तो नरेंद्र मोदी ने खड़ा कर दिया है कि गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष न बना और कांग्रेस अध्यक्ष का बाकायदा चुनाव हुआ , तो क्या महात्मा गांधी की तरह कांग्रेस की मौजूदा राष्ट्र माता उसे अध्यक्ष पद पर कबूल करेंगी | क्योंकि सुभाष चन्द्र बोस की तरह निर्वाचित अध्यक्ष सीता राम केसरी को हटाए जाने का मामला भी अपने सामने है |
किसान आन्दोलन के सब से बड़े संकट के बावजूद मोदी का राजनीतिक दिमाग वोट राजनीति के नए नए गुर सोचता रहता है | बंगाल के चुनावों में युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए मोदी ने गांधी को किनारे कर सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिन को “पराक्रम दिवस” के तौर पर घोषित कर के एक तीर से कई निशाने साधे हैं | उन्होंने गांधी और नेहरु के मुकाबले सुभाष चंदे बोस को बड़ा बना कर पेश कर दिया है , जो देश की हमेशा से साध रही है | हालांकि मोदी और राजनाथ सिंह के सार्वजनिक वायदे के बावजूद सुभाष चन्द्र बोस से जुड़े कई दस्तावेज अभी भी डी-क्लासीफाईड नहीं किए गए हैं , जिन्हें ले कर सुभाष चन्द्र बोस के समर्थकों में रोष है और यह भाजपा के खिलाफ ही चुनावी मुद्दा बनेगा |
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