यह नीतीश खुद करवा रहे हैं या बगावत है

Publsihed: 22.Jan.2020, 16:15

अजय सेतिया / लखनऊ में हुए अमित शाह के भाषण ने बहुतेरों की नींद उड़ा दी है | उन्होंने दो टूक शब्दों में चुनौती देते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून किसी भी हालत में वापस नहीं होगा , जिस को जो करना है कर ले | वैसे शाहीन बाग़ के अलावा दश में कहीं कुछ हो भी नहीं रहा | यहाँ तक कि बंगाल में भी ममता शाहीन बाग़ जैसा विरोध नहीं दिखा पा रही | तो अमित शाह की चुनौती सीधे शाहीन बाग़ में धरने पर बैठे मुसलमानों को है | कांग्रेस शाहीन बाग़ के धरने को सेक्यूलर बनाने की भरसक कोशिश कर रही है , लेकिन एक बार जो छवि बन जाती है , वह टूटती नहीं | अलबत्ता कांग्रेसियों के वहां जाने से हिन्दुओं को फिर से हिन्दू आतंकवाद वाले जुमले ही याद आ रहे हैं |

कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन क़ानून के नाम पर शाहीन बाग़ से ले कर मुम्बई तक मुसलमानों को साधना शुरू दिया है | जबकि मुसलमानों का नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध उन की भारत के प्रति प्रतिबद्धता को ही कटघरे में खडा कर रहा है | नागरिकता संशोधन क़ानून का भारत के हिन्दू या मुस्लिम की नागरिकता से कुछ लेना देना है ही नहीं | देश की आम जनता यह मान रही है कि मुसलमानों का विरोध इस लिए है कि संशोधन में अगर हिन्दू ,सिख , जैनी, बोद्धी , पारसी, ईसाई रखे गए हैं तो बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम क्यों नहीं रखे गए |

अमित शाह जानते हैं कि भाजपा हिन्दू मतों के सहारे ही 2009 के 18.80 प्रतिशत से 2014 में 31 प्रतिशत और 2019 में 37 प्रतिशत वोट बैंक तक पहुंची है | मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2009 में 29 प्रतिशत के मुकाबले अब सिर्फ 19 प्रतिशत रह गया है | इस लिए अमित शाह को न तो मुस्लिम विरोध की चिंता है , न कांग्रेस विरोध की | उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद से मुक्त होने के बाद सिर्फ गृहमंत्री के नाते यह बयान दिया है | यह बयान 21 जनवरी को उस समय आया , जब उन को पता था कि अगले दिन यानी 22 जनवरी को सुप्रीमकोर्ट में नागरिकता संशोधन क़ानून पर सुनवाई शुरू होने वाली है , जहां मुसलमानों, कांग्रेसियों , वामपंथियों आदि ने 117 याचिकाएं दाखिल की हुई हैं |

मोदी सरकार नागरिकता संशोधन क़ानून की संवैधानिकता को ले कर पूरी तरह आश्वत दिखाई देती है | अंतर्राष्ट्रीय स्तर के क़ानून विद हरीश साल्वे क़ानून को संवैधानिक ठहरा चुके हैं | बुद्धवार को सुप्रीमकोर्ट ने प्राथमिक सुनवाई के समय नागरिकता संशोधन क़ानून और जनसंख्या रजिस्टर पर रोक लगाने से दूसरी बार साफ़ इनकार दिया | हालांकि क़ानून की सवैधानिकता पर सुनवाई के लिए केंद्र सरकार को एक महीने का नोटिस दे दिया है | इस तरह शाहीन बाग़ का धरना पहली लड़ाई हार चुका है , भले ही धरना 8 फरवरी को दिल्ली में वोटिंग तक चले या कोई बहाना बना कर उठ जाए , अब स्थानीय लोगों का धरने के खिलाफ रोष और आक्रोश शुरू हो गया है |

लेकिन अमित शाह और मोदी को चिंता करनी होगी अपने दो सहयोगियों अकाली दल और जनता दल यूनाईटेड की | अकाली दल ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर मोदी सरकार का विरोध किया है और इसी मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में गठबंधन तोड़ दिया | हालांकि अकाली दल की दिल्ली में इतनी ताकत नहीं कि वह अकेले चुनाव लड़ ले , इसीलिए उस ने चुनाव से बाहर रहने का फैसला किया | अकेले वह पंजाब में भी कांग्रेस आ मुकाबला नहीं कर सकती | लेकिन जेडीयू के दिल्ली में भाजपा से गठबंधन ने जेडीयू में दरार पैदा कर दी है | हालांकि गठबंधन पर सवाल उठाने वाले प्रशांत किशोर और पवन वर्मा की अपनी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है | दोनों की न तो विचारधारा से कोई पुरानी प्रतिबद्धता है और न ही चुनावी राजनीति का कोई अनुभव है | इस लिए शक पैदा होता है कि इन बिना जमीन वाले नेताओं से कही नीतीश कुमार खुद तो बयान नहीं दिला रहे |

नीतीश कुमार की गोलमोल बातों से भी इस के संकेत मिलते हैं , शायद वह दोनों तरफ की हवा को भांप रहे हैं | प्रशांत किशोर को तो उन्होंने शुरू से ही क़ानून , जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ बोलने की छूट दे रखी थी , अब पवन वर्मा का बयान सीधे सीधे नीतीश कुमार को चुनौती देने वाला है क्योंकि उन्होंने दिल्ली में चुनावी गठबंधन सम्बन्धी नीतीश कुमार के फैसले को पार्टी के सिद्धन्तो के खिलाफ बताया है | जदयू के वरिष्ट नेता विशिष्ठ नारायण सिंह ने तो पवन कुमार को पार्टी छोड़ कर चले जाने की चुनौती दे दी है | लेकिन राजनीति में कौन किस के लिए खेल रहा है , यह पटाक्षेप होने पर ही पता चलता है |

 

 

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