अजय सेतिया / इसी साल 29 जनवरी को नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जदयू से लात मार कर बाहर कर दिया था , उस दिन अपने कालम में अपन ने उसे राजनीति का कोरोनावायरस लिखा था | नीतीश कुमार ने उस समय खुलासा किया था कि उन्होंने प्रशांत किशोर को अमित शाह की सिफारिश पर जदयू में शामिल किया था | अपन ऐसा पहली बार देख सुन रहे थे कि कोई अदना सा गैर राजनीतिक व्यक्ति किसी पार्टी में शामिल होते ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया जाता है , और जिस व्यक्ति ने उस का राजनीतिक कद बनाया , वह उसी को झूठा कह रहा था | अमित शाह ने न तो नीतीश कुमार के दावे की पुष्टि की थी , न खंडन किया था | लेकिन बाद में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में प्रशांत किशोर का अमित शाह की खिल्ली उडाने वाला ट्विट ही उन की जदयू से बर्खास्तगी का कारण बना था |
असल में प्रशांत किशोर ने आईपैक नाम की कम्पनी बना कर चुनाव प्रबंधन का धंधा शुरू किया था , 2011 में उन्होंने मोदी से मिल कर एक प्रजेंटेशन दिया , जो उन्हें पसंद आ गया , तो उन्हें 2012 के गुजरात विधानसभा में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी दे दी गई | मोदी रिकार्ड बहुमत के साथ चुनाव जीत गए , चुनाव से पहले ही उनमें प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जागृत हो चुकी थी , इस लिए 2012 का चुनाव उन के लिए भविष्य की रणनीति का चुनाव था | मोदी ने भाजपा कार्यकारिणी से खुद को चुनाव प्रभारी बनवा कर प्रशांत किशोर को 2014 के लोकसभा चुनाव का भी प्रबंधक नियुक्त कर दिया | किसी ने सोचा नहीं था कि भाजपा अपने बूते पर सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है , लेकिन मोदी भाजपा को सत्ता में ले आए | बस वहीं से प्रशांत किशोर का घमंड सातवें आसमान पर पहुंच गया था |
गांव की पुरानी कहावत सुनी होगी , बैलगाड़ी के नीचे चल रहा कुत्ता यह समझता है कि बैल गाडी वही चला रहा है | मोदी और अमित शाह ने चुनाव जीतते ही प्रशांत किशोर को निकाल बाहर किया , तब से वह मोदी और शाह से खार खाए हुए हैं | प्रशांत किशोर ने दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए 2015 में उस नीतीश कुमार का दामन थाम लिया , जिस ने मोदी को मुद्दा बना कर एनडीए छोड़ा था | उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान जेडीयू के चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई , जिस में कथित तौर पर नीतीश कुमार का लालू और राहुल से समझौता करवाना भी शामिल था | लालू-नीतीश-राहुल गठबंधन के समय प्रशांत किशोर की राहुल गांधी से नजदीकी बनी तो पंजाब और उत्तरप्रदेश के चुनावों का ठेका भी प्रशांत किशोर को मिल गया |
यूपी में प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव का गठबंधन करवा कर भाजपा के सामने बड़ी चुनौती खडी की थी , किसान खाट सम्मेलनों जैसी अद्भुत नौटंकियों से चुनाव लडवाया | पर मोदी और अमित शाह की रणनीति के आगे प्रशांत किशोर की आईपैक यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी को धुल चाटनी पड़ी | पंजाब में अमरेन्द्र सिंह ने प्रशांत किशोर की एक भी बात नहीं मानी थी , इसलिए पंजाब में चुनाव जितने का श्रेय प्रशांत किशोर को मिलना ही नहीं था , इस लिए 2016 में उन का घमंड चकनाचूर हो गया | तब अपनी दूकान बंद कर उन्होंने नीतीश कुमार का दामन थाम कर राज्यसभा का सपना संजो लिया था , लेकिन नागरिकता संशोधन के मुद्दे पर मोदी विरोध और फिर दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए काम करने की राजनीतिक बेवकूफी के कारण जदयू से भी निकाल बाहर किए गए |
इसी दौरान 2017 में प्रशांत किशोर की टीम ने उत्तराखंड में हरीश रावत की लुटिया डुबोई थी |जबकि गलतफहमी के शिकार हरीश रावत खुद उन्हें चुनाव प्रबंधन के लिए ले कर गए थे | 2018 में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में जरुर उन्होंने चुनाव जीतने वाली पार्टी पकड़ ली थी और वाईएसआर के चुनाव जीतने का श्रेय ले लिया , हालांकि वहां सारी मेहनत जगनमोहन रेड्डी की थी , जो कई सालों से संघर्ष कर रहे थे | वह जगनमोहन रेड्डी को जिताने का श्रेय लेते हैं , लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की लुटिया डुबोने की जिम्मेदारी नहीं लेते | अब प्रशांत किशोर ने अगले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बेनर्जी को जिताने की जिम्मेदारी ली है | यूपी की तरह इस बार भी प्रशांत किशोर की सीधी टक्कर अमित शाह से है | अमित शाह ने ममता की पार्टी में सेंध लगाना शुरू कर दिया है और 294 के सदन में 200 से ज्यादा सीटें लेने का दावा कर रहे हैं , तो ममता की हौंसला अफजाई के लिए प्रशांत किशोर ने अपना कैरियर दाव पर लगाते हुए कहा है कि अगर भाजपा 10 सीटें भी जीत गई तो वह चुनाव प्रबंधन का काम छोड़ देंगे | अपना मानना है कि भाजपा दो सौ भले न जीते , पर सौ से तो ज्यादा सीटें जीतेगी ही | लगातार फेल हो रहे प्रशांत किशोर का धंधा तो छूटना ही है , पर तब वह करेंगे क्या |
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