बीएचयू के संस्कृत आन्दोलन की सच्चाई

Publsihed: 21.Nov.2019, 13:20

अजय सेतिया / खुले और यहाँ तक की संकुचित विचारों वाले हिन्दुओं ने भी बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में चल रहे संस्कृत छात्रों के उस आन्दोलन का विरोध किया है , जो उन्होंने मुस्लिम अध्यापक की नियुक्ति के खिलाफ शुरू किया है | अपन ने भी शुरू एन आन्दोलन का विरोध किया | नए तथ्य सामने आने के बाद हिन्दू समाज को अपने विरोध पर पुनर्विचार की जरूरत है | मुस्लिम अध्यापक की नियुक्ति का विरोध कर रहे छात्र शुरू में अपनी बात स्पष्ट नहीं कर सके , या मीडिया के एक वर्ग ने जानबूझ कर कुछ तथ्यों को छुपा कर हिन्दू मुस्लिम का विवाद बनाया | अब जो बातें सामने आई हैं , उन के मुताबिक़ बीएचयू में संस्कृत से जुड़े दो विभाग हैं , जहां तक संस्कृत भाषा का सवाल है वह कला संकाय के अंतर्गत आता है , जहां संस्कृत पढाई जाती है | जिस विभाग में डा. फिरोज खान की नियुक्ति हुई है , वह संस्कृत विभाग नहीं है , अलबत्ता संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग है , जहां हिन्दू धर्म और उस के कर्मकांडों की शिक्षा दी जाती है , ताकि वे अध्ययन के उपरान्त हिन्दुओं के कर्मकांड करवा सकें |

उपरोक्त तथ्यों से जाहिर है कि यह हिन्दू मुस्लिम का विवाद नहीं है | यह नियुक्ति संस्कृत शिक्षक की नहीं बल्कि धर्म विज्ञान संकाय में वेद अध्यापन की है | यह विभाग मदन मोहन मालवीय ने विशेष रूप से सनातन धर्म परम्परा व रीति का गहन अध्ययन करने के लिए हिन्दू मात्र के लिये आरक्षित किया था , ऐसा विभाग के बाहर लिखी पट्टिका में भी लिखा है | धरने पर बैठे विद्यार्थियों का तर्क है कि जैसे सेना में पंडित की नियुक्ति किसी मुस्लिम को नहीं दी जा सकती , पादरी की नियुक्ति किसी हिन्दू को नहीं दी जा सकती , वैसे ही काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग में मुस्लिम की नियुक्ति नहीं हो सकती | उन्हें डॉक्टर खान के मुस्लिम होने पर कोई आपत्ति नहीं..विश्वविद्यालय में होने पर कोई आपत्ति नहीं..उनकी विद्वत्ता पर कोई आशंका नहीं, वे सिर्फ इतना चाहते हैं कि डाक्टर फिरोज खान को संस्कृत पढाने के लिए कला विभाग में रखा जाए |

विभिन्न मुस्लिम विद्वानों ने संस्कृत का अध्यन और अध्यापन किया है , जिस का उल्लेख 20 नवम्बर को नया इंडिया के अपने कालम में वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक ने किया था | किसी भाषा पर किसी धर्म विशेष का अधिकार नहीं होता , न तो हिन्दी और संस्कृत हिन्दुओं की भाषा है , न उर्दू और फारसी मुसलमानों की भाषा है , लेकिन यहाँ सवाल भाषा का नहीं है, जैसा कि शुरू में समझा गया था | यह सबरीमाला जैसा मामला है जिसे पहले वामपंथियों ने खूब तूल दे कर सुप्रीमकोर्ट तक पहुंचा दिया और अब जमीनी हकीकत जानने के बाद बच कर निकलने का रास्ता ढूंढ रहे हैं | बनारस हिन्दू विश्व विधालय के उपकुलपति राकेश भटनागर पर भी वामपंथियों का प्रभाव है , वह वामपंथियों की कर्मभूमि जेएनयू से ही आए हैं , जहां वह बायोटेक्नालाजी के प्रोफेसर थे

डाक्टर फिरोज खान जन्म से मुस्लिम और कर्म से हिन्दू हैं | उन की पिछली दो पीढियां भी कर्म से हिन्दू हैं , उन के पूर्वज मुगल काल में शायद तलवार की नोंक पर मुस्लिम बन गए होंगे , लेकिन उन के संस्कार सनातनी वैदिक रहे होंगे , जिस का असर हमेशा कायम रहा | डाक्टर फिरोज का परिवार मंदिरों में अराधना तक करता है , तो फिर विधिवत घर वापसी क्यों नहीं | अगर खुद हिन्दुओं की ओर से घर वापसी का विरोध नहीं किया जाता तो आज कश्मीर की समस्या भी नहीं होती | जहां कश्मीरी विद्वानों ने 1322 में कश्मीर के बोद्ध शासक रिन्चन के साथ राज्य के  मुसलमानों को यह कह कर हिन्दू बनने से रोका कि हिन्दू धर्म में वापसी या अहिंदू के हिन्दू बनने का प्रावधान नहीं है | नतीजतन रिन्चन की रहनुमाई में दस हजार बोद्ध और हिन्दू भी मुस्लिम बन गए  थे | वेद पढने पढ़ाने के लिए यजोपवित की रस्म अदायगी की शर्त ही तो है | डाक्टर फिरोज खान को यजोपवित धारण कर सनातन धर्म में वापसी का एलान कर के इस समस्या का हल खुद निकाल लेना चाहिए , इस से वामपंथी साजिश भी नाकाम हो जाएगी |  

 

 

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