अजय सेतिया / जगत प्रकाश नड्डा भाजपा के अध्यक्ष हो गए , पिछले छह महीने से उन के पद के आगे चिपका कार्यकारी हट गया है | जिस दिन वह कार्यकारी अध्यक्ष बने थे , उसी दिन तय हो गया था कि वह भाजपा के अगले अध्यक्ष होंगे | वैसे जून 2014 से संकेत मिलने शुरू हो गए थे कि आज नहीं तो कल वह भाजपा के अध्यक्ष बनेंगे | नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद ही तय कर लिया था कि अब पार्टी अध्यक्ष भी उन की मर्जी का होगा | राजनाथ सिंह चाहते तो अध्यक्ष बने रह सकते थे , लेकिन उन्होंने गृहमंत्री का पद स्वीकार कर के मोदी की मर्जी का अध्यक्ष पद बनाए जाने का रास्ता साफ़ कर दिया था |
तब मोदी के सामने तीन विकल्प थे , ओम माथुर, जे.पी.नड्डा और अमित शाह | तीनों मोदी के साथ काम कर चुके थे | ओम माथुर लम्बा समय गुजरात के प्रभारी रहे , अलबत्ता भाजपा नेतृत्व मोदी की इच्छा से ही उन्हें प्रभारी बनाता रहा था | दूसरा विकल्प जे.पी.नड्डा थे , जिन्हें नितिन गडकरी 2010 में ही महासचिव बना कर दिल्ली ला चुके थे | नरेंद्र मोदी जब भाजपा महासचिव के नाते हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे , तब से उन की नड्डा से नजदीकी थी | खैर उस समय उन्होंने अमित शाह को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर चुना जो इन तीनों में से उन के सर्वाधिक नजदीकी थे और पार्टी महासचिव के नाते 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के प्रभारी के नाते करिश्मा दिखा चुके थे |
नड्डा को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया और ओम माथुर को राज्यसभा में ला कर हॉउस कमेटी का चेयरमेन बना दिया गया | सवाल पैदा होता है कि नड्डा से सीनियर ओम माथुर पार्टी अध्यक्ष क्यों नहीं बन सके | वह पार्टी अध्यक्ष नहीं बनेंगे ,यह तभी तय हो गया था , जब अमित शाह ने उन्हें पार्टी महासचिव नहीं बनाया था , जबकि नड्डा मंत्री होने के बावजूद पार्टी महासचिव और संसदीय बोर्ड के सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी बिठाए गए थे | पिछले पांच साल से नड्डा पार्टी में सर्वाधिक प्रभाव वाले नेता के रूप में उभरे थे | 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में और 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरप्रदेश के चुनाव प्रभारी के नाते वह अपनी संगठनात्मक क्षमता का परिचय दे चुके हैं |
उत्तराखंड में उन के नेतृत्व में भाजपा ने रिकार्ड तोड़ विजय हासिल की , जबकि ऐसी विजय की उम्मींद भाजपा का स्थानीय नेतृत्व भी नहीं करता था | मुख्यमंत्री पद का उम्मीन्द्वार कोई नहीं था , पूर्व मुख्यमंत्रियों भगत सिंह कोशियारी , रोमेश पोखरियाल निशंक और बीसी खंडूरी तीनों सांसद थे , इन तीनों को विधानसभा चुनाव में नहीं उतारा गया था | प्रदेश अध्यक्ष खुद रानीखेत में अपने चुनाव में उलझे हुए थे | चुनावों की सारी बागडोर नड्डा के हाथ में थी , उन की संगठनात्मक क्षमता और चुनाव प्रबंधन ने रिकार्ड तोड़ जीत दिलाई | विद्ध्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री के समय ही उन्होंने एक गम्भीर और कुशल संगठनकर्ता और रणनीतिकार की छवि बना ली थी , जिसका लाभ अब भाजपा को संगठन में मिलेगा |
जबसे वह कार्यकारी अध्यक्ष बने थे , भाजपा के भीतर और बाहर उन्हें मोदी और अमित शाह के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जा रहा है | कहा जा रहा है कि पार्टी तो अमित शाह ही चलाएंगे , लेकिन ऐसा सिर्फ वे लोग कह सकते हैं , जो भाजपा की कार्यशैली से परिचित नहीं हैं | भाजपा अध्यक्ष न तो चुनावों में टिकट बांटता है , न मुख्यमंत्री और मंत्री बनाता है | यह सब काम संसदीय बोर्ड करता है | भाजपा अध्यक्ष कभी भी अपने आप संगठन में नियुक्तिया भी नहीं करता | अलबत्ता हर अध्यक्ष संगठन महामंत्री और संगठन सह महामंत्रियों की सलाह से ही काम करता है | संगठन के मामले में संगठन महामंत्रियों और संगठन सह महामंत्रियों के निर्णय और भूमिका ही अंतिम होती है | इस बार भाजपा को नड्डा से अतिरिक्त लाभ होगा , क्योंकि भाजपा को कुशल संगठन कर्ता ही मिला है | इस के अलावा भी भाजपा सामूहिक नेतृत्व से चलती है , एक नेता से नहीं चलती |
भाजपा कांग्रेस की तरह नहीं है , जहां जिला अध्यक्ष पद के लिए भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के इर्दगिर्द लाबिंग करनी पडती है | भाजपा में तो दिल्ली के दफ्तर में चक्कर लगाने वालों का पत्ता ही काट दिया जाता है | भाजपा की देखादेखी कांग्रेस ने भी अब राष्ट्रीय स्तर पर संगठन महामंत्री का पद सृजित किया है , कांग्रेस इस बात पर विचार कर रही है कि भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस सेवा दल में लम्बा समय काम करने वालों को प्रदेश और जिला स्तर पर संगठन मंत्री तैनात किया जाए |
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