अजय सेतिया / शिव सेना के सांसद संजय राउत ने सही तो कहा है कि शरद पवार को समझने में सौ जन्म लगेंगे | अच्छी भली एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की सरकार बनने की बात चल रही है | इसी बीच शरद पवार जब साझा सरकार बनने सम्बन्धी शिवसेना के इस दावे पर हैरानी प्रकट करें और मीडिया से कह दें कि उनकी तो सोनिया गांधी से महाराष्ट्र में साझा सरकार बनाने के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई , तो स्वाभाविक है कि शरद पवार को समझना आसान नहीं | सोमवार को सोनिया गांधी से मुलाक़ात के बाद जब शरद पवार ने ये बातें कहीं थी तो भाजपाईयों के चेहरे खिल उठे थे | अपन को भी तब भाजपा के कई नेताओं का फोन आया , तो अपन ने भी उन्हें यही बात कही थी , जो संजय राउत ने कही है | शरद पवार कोई इतने सरल राजनीतिग्य नहीं हैं , वह बिना नफा-नुक्सान सोचे कोई कदम नहीं उठाते और कोई भी कदम जल्दबाजी में तो कतई नहीं उठाते | वह तो आप शिवसेना को 27 दिन से लटकाए रखने से समझ ही सकते हैं |
अब अचानक सुगबुगाहट चल रही है कि शिवसेना की भाजपा से गुपचुप बात चल रही है | यह बात अपने पल्ले नहीं पडती , क्योंकि शरद पवार की कोई बात मोदी या अमित शाह के स्तर से नीचे नहीं हो सकती और शरद पवार की तरफ से एनसीपी का कोई नेता भाजपा के किसी छुटभैये नेता से बात नहीं कर सकता | इन्हीं खबरों के बीच ही सोमवार को नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में अचानक एनसीपी और बीजेडी की तारीफ़ कर के सभी को चौंकाया | अगले ही दिन बुधवार को जब शरद पवार ने सोनिया गांधी से मुलाकात से पहले संसद भवन के भीतर ही नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की तो राजनीतिक गलियारों में सुगबुगाहट तेज हो गई , हालांकि शरद पवार ने मोदी से मुलाक़ात का वक्त महाराष्ट्र में किसानों की फसल तबाह होने के कारण राहत मांगने के लिए माँगा था | संजय राउत तो इतना घबरा गए कि जब पवार प्रधानमंत्री को मिलने जा रहे थे , तो उन से मिल कर सूंघने की कोशिश की , हालांकि वह जानते हैं कि वह भी पवार को सौ जन्म नहीं समझ सकते |
सवाल यह है कि जब तीनों दलों में सरकार बनाने पर सहमति हो गई थी , तो अब हिचकिचाहट क्यों हैं , शरद पवार यह क्यों कह रहे हैं कि दावा पेश करने के लिए उनके पास छह महीने का वक्त है | तो क्या शरद पवार सभी दलों से मोलभाव कर रहे हैं , अगर ऐसा है तो किस बात का मोलभाव कर रहे होंगे | असल में शरद पवार के बारे में महाराष्ट्र में कहावत है कि वह बिना फायदे के थूकते भी नहीं | तो शरद पवार की राजनीति की असली समस्या है जिला बैंकों और शुगर मिल सोसायटियों की सुरक्षा , जब तक उन को उस की गारंटी नहीं मिलेगी , वह किसी से कोई गठबंधन नहीं करेंगे | शरद पवार की कमजोरी समझने वाले पृथ्वी राज चौहान ने 2010 में मुख्यमंत्री बनते ही कांग्रेस आलाकमान से हरी झंडी ले कर एनसीपी के नियन्त्रण वाली सभी शुगर मीलों और जिला बैंकों की सोसयटियों को भंग कर के उन पर प्रशानिक अधिकारी बिठा दिए थे | यह शरद पवार को राजनीतिक तौर पर खत्म करने के लिए एनसीपी के आर्थिक स्रोत सुखाने की कांग्रेसी साजिश थी , इसी लिए शरद पवार ने 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-एनसीपी का चुनाव गठबंधन नहीं किया था |
2014 के विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद शरद पवार ने तकनीकी समर्थन दे कर भाजपा की सरकार बनवा दी थी , तो वह कोई यों ही नहीं बनवाई थी | तब के वित्तमंत्री अरुण जेटली और शरद पवार के बाच लम्बी बातचीत हुई थी,जिन का बीसीसीआई का रिश्ता जगजाहिर था | नतीजतन सभी जिला बैंकों और शुगर मीलों से प्रशासनिक अधिकारियों को हटा कर चुनी हुई समितियां बहाल कर दी गईं थी | तभी शुगर मीलों के बड़े बड़े मालिक अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर भाजपा एन शामिल हुए थे | देवेंद्र फडनवीस के पूरे पांच साल इन समितियों पर पवार समर्थकों का नियन्त्रण रहा , इसलिए अब जो भी सरकार बनेगी उसे शरद पवार को यह गारंटी तो देनी ही होगी कि जिला बैंकों और शुगर मीलों के प्रशासन में कोई दखल नहीं दिया जाएगा | जब तक इन महीन मुद्दों पर सहमती नहीं बनती , तब तक सरकार तो लटकी रहनी है , भले ही शिवसेना इसी हफ्ते सरकार बन जाने का दावा कर रही हो | चुनावों के दौरान भले ही ईडी ने अपनी पूछताछ सूची में शरद पवार का नाम शामिल किया था , लेकिन उन के खिलाफ कोई ऍफ़आईआर दाखिल नहीं की गई है | बुधवार को मोदी-पवार की 40 मिनट लम्बी मीटिंग से शिवसेना का घबराना स्वाभाविक है , क्योंकि शरद पवार के लिए महाराष्ट्र सरकार से ज्यादा गन्ना किसानों की समस्याओं का स्थाई हल ज्यादा महत्वपूर्ण है और मोदी कृषि मंत्रालय उन्हीं के हवाले करने की पेशकश कर दें तो सारे समीकरण बदल जाएंगे |
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