अजय सेतिया / ये वही वामपंथी विचारधारा के लोग तो हैं , जिन्होंने पिछली बार ईसाईयों और दलितों को भडकाया था | क्या लोग भूल गए हैं कि 2014 में मोदी सरकार बनते ही ईसाईयों पर अत्याचारों का कितना झूठ फैलाया गया था | चर्चों पर हमलों और ईसाई मिशनरी स्कूलों में आगजनी , चोरी जैसी घटनाओं को किस तरह साम्प्रदायिक रंग दिया गया था | जब ईसाइयों पर अत्याचारों की कहानी झूठी साबित हो गई तो दलितों को अपने विरोध का हथियार बनाया गया था | क्या आप भूल गए रोहित वेमूला की आत्महत्या को कैसे मोदी सरकार के साथ जोड़ा गया था | कैसे ओबीसी समुदाय के रोहित वेमूला को झूठ बोल कर बनाए गए दस्तावेज दिखा कर उसे दलित बनाया गया ताकि दलित सरकार के खिलाफ खड़े हों | फिर उस आग को महाराष्ट्र में भीमा कोरेगांव में आगे भडकाया गया था , कैसे गुजरात के चुनाव में दलित का नेरेटिव खडा किया गया था | बृहस्पतिवार को तो वामपंथी नागरिकता क़ानून पर भी चेहरे से नकाब हटा कर खुल कर मैदान में आ गए |
पहली बात तो यह है कि इस्लाम के नाम पर भारत का एक तिहाई हिस्सा लेने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुस्लिम किस आधार पर भारत में शरणार्थी हो सकते हैं | दूसरी बात यह कि भारत के मुसलमान इन दोनों देशों के मुसलमानों को किस आधार पर भारत की नागरिकता देने की मांग करते हुए हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं | इस्लाम के नाम पर भारतीय मुसलमानों को भडकाने वाले कम्युनिस्ट जरा याद करें कि पाकिस्तान में उन के नेता सय्यद सज्जाद ज़हीर को किस तरह देशद्रोह का मुकद्दमा चला कर सजा-ए-मौत दे दी गई थी , और जब वह किसी तरह भाग कर भारत आए थे तो भारत ने उन्हें नागरिकता दी थी | वामपंथी और कांग्रेसी शरणार्थियों की परिभाषा पर भी मुसलमानों को भडका रहे हैं , लेकिन संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी की परिभाषा को भी देख लें , वह कहती है -“ शरणार्थी वे हैं , जिन्हें नस्ल, धर्म , किसी सोशल ग्रुप या ख़ास राजनीतिक विचारधारा के कारण जान का खतरा होता है और जिन्हें अपने देश से भाग जाने के लिए मजबूर किया जाता है |” आप सोचिए क्या किसी मुस्लिम देश से कोई मुस्लिम इन आधारों पर भेदभाव का शिकार हो सकता है | अगर होता है तो भारत सय्यद सज्जाद ज़हीर की तरह उसे नागरिकता भी देता है | अब तक पन्द्रह हजार के करीब पाकिस्तान के मुस्लिम भारतीय नागरिकता ले चुके हैं , जिन में से 566 को तो मोदी सरकार ने ही नागरिकता दी है और मौजूदा क़ानून में वह प्रावधान जस का तस बरकरार है |
सरकार बदलने पर कैसे नेरेटिव बदल जाते हैं , कैसे नेताओं का दोमुहापन सामने आ जाता है , कांग्रेस की ओर से नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध इस का ताजा उदाहरण है | सिर्फ 16 साल पहले 18 दिसम्बर 2003 को कांग्रेस ने बांग्लादेश के हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने की बात राज्यसभा में कही थी | नजमा हेपतुल्ला उप सभापति के नाते चेयर पर थी , सदन में उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवानी मौजूद थे और मनमोहन सिंह ने उन्हें सम्बोधित करते हुए ने कहा था –“ मेडम जब मैं इस विषय पर बोल रहा हूँ , तो मैं बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव हुआ है , उन पर अत्याचार किए गए हैं | इस लिए हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि अगर ये दुर्भाग्यपूर्ण लोग भारत में शरण मांगते हैं तो हमारी सोच इन्हें उदारतापूर्वक भारत की नागरिकता देने की होनी चाहिए | मैं उप प्रधानमंत्री से उम्मींद करता हूँ कि वे उन्हें नागरिकता देने के लिए नागरिकता क़ानून में प्रावधान करेंगे |” इस पर नजमा हेपतुल्ला ने कहा _ “ आडवानी जी पाकिस्तान के अल्पसंख्यक भी बुरी तरह से जूझ रहे हैं , उन की भी फ़िक्र करनी चाहिए |” और उस समय के कांग्रेस के राज्यसभा के नेता मनमोहन सिंह ने जो मांग की थी , वही तो नागरिकता संशोधन क़ानून में किया गया है |
सोनिया गांधी , राहुल गांधी और प्रियंका गांधी किस मुहं से विरोध कर रहे हैं और मुसलमानों को भडका रहे हैं | क्या क़ानून में संशोधन मनमोहन सिंह ने जो कहा था उस से भिन्न हुआ है , क्या कहीं भारत के मुसलमानों के बारे में संशोधित क़ानून में कुछ नया डाला गया है | यह कैसे होता है कि कांग्रेस की मांग सेक्यूलर होती है और भाजपा उस पर अम्ल करे तो वह साम्प्रदायिक हो जाती है | इस समय वामपंथी नागरिकता क़ानून की गलत व्याख्या कर के मुसलमानों को सब से ज्यादा भडका रहे हैं | जेएनयूं का भारत तोड़ो, हैदराबाद का रोहित वेमूला और भीमा कोरेगांव की सारी साजिश वामपंथियों की ही थी | वामपंथियों ने जैसे नेहरु और इंदिरा को अपने जाल में फंसाया हुआ था , अब उस के परिवार के बाकी सदस्यों को भी सत्ता दिलाने का भ्रम दिखाया हुआ है इसलिए वे राहुल गांधी को जेएनयूं और हैदराबाद ले जाने में सफल हो जाते हैं | उन्हें पता है कि क़ानून में संशोधन साम्प्रदायिक नहीं मानवीय आधार पर हुआ है , फिर भी वह मुसलमानों को भडका रहे हैं |
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