राजनीतिक दल मेवा लालों से कब निजात पाएंगे 

Publsihed: 19.Nov.2020, 20:37

अजय सेतिया / बिहार के नवनिर्वाचित 243 विधायकों में से 163 पर आपराधिक आरोप हैं | इन 163 विधायकों में से 123 के खिलाफ संगीन अपराध के मुकदमे दर्ज हैं | 123 विधायक यानी विधानसभा का बहुमत संगीन अपराधों के आरोपी हैं | इन में से 70 विधायकों के खिलाफ तो कोर्ट चार्जशीट का संज्ञान भी ले चुकी है | 19 विधायकों पर धारा 302 के तहत हत्या के आरोप हैं, 31 हत्या के प्रयास के आरोपी हैं और आठ के खिलाफ महिलाओं के प्रति हिंसा के आरोप हैं | चुनाव आयोग ने कई बार सिरारिश की है कि चार्जशीटेड नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने का क़ानून बनाया जाए | लेकिन राजनीतिक दल इस पर सहमत नहीं होते क्योंकि उन का तर्क यह होता है कि सरकारें अपने राजनीतिक विरोधियों पर फर्जी केस बना देती है , अगर उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया तो इस तरह तो लोकतंत्र ही खतरे में पड जाएगा |

तो क्या इस समस्या का कोई हल नहीं | क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तीन चार्जशीटों पर अदालत के संज्ञान लेने पर चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने का क़ानून बनाने पर कोई सहमती बने | राजनीतिक दलों को शर्मसार करने के लिए अश्विनी उपाध्याय की पीआईएल पर सुप्रीमकोर्ट ने इस साल फरवरी में छोटा सा प्रयास किया था | सुप्रीम कोर्ट ने सभी पार्टियों से कहा था कि वे आपराधिक आरोपों वाले अपने सभी उम्मीदवारों का ब्यौरा अखबारों में प्रकाशित करें और ये भी बताएं कि उन्हें टिकट क्यों दिए गए | सुप्रीमकोर्ट को लगता था कि इस से राजनीतिक दल टिकट देते समय दस बार सोचेंगे | लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने अखबारों में ऐसे विज्ञापन नहीं दिए | सुप्रीमकोर्ट चाहे तो राजनीतिक दलों को तलब कर सकती है | शायद अश्विनी उपाध्याय सुप्रीमकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएं |

कई विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी हैं | यह अच्छा हुआ कि भ्रष्टाचार के एक मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो गई | उन्होंने एक भ्रष्ट मेवा लाल को पहले टिकट दिया और फिर उसे शिक्षा मंत्री बना दिया | वैसे यह भाजपा के लिए शर्म की बात थी कि जिस पर उस ने खुद भ्रष्टाचार के आरोप लगवा कर राज्यपाल से जांच के आदेश करवाए थे नीतीश कुमार ने उसी को भाजपा के साथ साझा सरकार में मंत्री बनवा दिया | मेवालाल भागलपुर कृषि विश्वविद्यालय का कुलपति था | तब उस पर सहायक प्रोफेसर और कनिष्ठ वैज्ञानिक के पदों पर नियुक्तियों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगे थे |  

नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के आरोपी मेवा लाल को 2015 में जदयू का टिकट दे कर विधायक चुनवा दिया | तब भाजपा विपक्ष में थी और उस ने नियुक्तियों में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना कर जांच की मांग की थी , नीतीश कुमार ने मांग नहीं मानी तो भाजपा ने राज्यपाल से गुहार लगाई | तब रामनाथ कोविद बिहार के राज्यपाल थे , जो अब राष्ट्रपति हैं | राज्यपाल ने रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित कर दी , जिस ने भ्रष्टाचार के आरोप सही पाए , राज्यपाल ने खुद मेवा लाल के खिलाफ आपराधिक मामला दायर करने की इजाजत दी तो नीतीश कुमार की भद्द पिटी थी | लोकलाज में उन्होंने मेवालाल को पार्टी से निलम्बित कर दिया था , लेकिन बाद में फिर से शामिल कर लिया और इस बार फिर टिकट दे दिया | इतना क्या कम था कि नीतीश कुमार ने उसी भ्रष्टाचार के एक्सपर्ट मेवा लाल को शिक्षामंत्री बना दिया ताकि पूरे प्रदेश में शिक्षकों की नियुक्तियों में जम कर भ्रष्टाचार कर सके | नीतीश कुमार ने यह भी सोचा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला शिक्षकों की नियुन्तियों में ही भ्रष्टाचार के आरोप में सालों से जेल में बंद हैं |  

तेजस्वी यादव ने तो नीतीश पर हमला बोला ही , भ्रष्टाचार के आरोपों में सजायाफ्ता जेल में बंद लालू यादव के अकाउंट से भी किए गए एक ट्वीट में लिखा गया, “ तेजस्वी जहाँ पहली कैबिनेट में पहली कलम से 10 लाख नौकरियाँ देने को प्रतिबद्ध था , वहीं नीतीश ने पहली कैबिनेट में नियुक्ति घोटाला करने वाले मेवालाल को मंत्री बना अपनी प्राथमिकता बता दी है |  विडंबना देखिए जो भाजपाई कल तक मेवालाल को खोज रहे थे आज मेवा मिलने पर मौन धारण किए है |” मेवा लाल का इस्तीफा हो गया है , लेकिन सवाल यह है कि राजनीतिक दल इन मेवा लालों से कब निजात पाएंगे |

 

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