लटकाने की कोशिशें हुई नाकाम 

Publsihed: 18.Sep.2019, 12:30

अजय सेतिया / जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भोले भले निर्मोही अखाड़े को अपनी चुपड़ी चुपड़ी बातों में फंसा कर अयोध्या मुद्दे पर फिर से बातचीत शुरू करने की संयुक्त चिठ्ठी लिखी तो अपने कान खड़े हुए थे | अपन को आशंका थी कि यह सुप्रीमकोर्ट में चल रही सुनवाई को ठप्प करने की नई साजिश है | सुप्रीमकोर्ट ने भी इस साजिश को समझा होगा , इसलिए उस ने दो-टूक कह दिया कि सुनवाई तो नहीं रुकेगी आप चाहें तो बातचीत जारी रखें | वैसे भी कोर्ट में गए पक्ष जब चाहे आपसी समझौता कर के कोर्ट के सामने आ सकते हैं , अगर सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा बिना चिठ्ठी लिखे भी फैसले से पहले सब पक्षों को मान्य हल ले कर कोर्ट के सामने जाते , तो कोर्ट उसे मान लेता | 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सुनवाई पूरी करने के लिए भी 18 अक्टूबर की तारीख तय कर दी है , यानी उस दिन से पहले कोई सर्वमान्य हल निकालना चाहे तो निकाल सकता है | सम्भवत : सुनवाई खत्म होने के बाद कोर्ट बीच-बचाव वालों को नहीं सुनेगा , क्योंकि उसी दिन से फैसला लिखने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी | चीफ जस्टिस ने 18 अक्टूबर की तारीख इस लिए तय की है, क्योंकि वह 17 नवम्बर को रिटायर हो रहे हैं और फैसला सुना कर रिटायर होना चाहते हैं | अगर बेंच ने उनके रिटायरमेंट से पहले फैसला नहीं सुनाया तो नए जज के सुनवाई में शामिल होने पर फिर से पूरे केस की सुनवाई शुरू करनी पड़ेगी | यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रतिदिन सुनवाई के लिए तीन दिन की व्यवस्था को खत्म कर पांच दिन सुनवाई कर रहा है |155 दिन की बातचीत के बाद सुप्रीमकोर्ट ने 2 अगस्त को बातचीत विफल रहने का एलान किया था और 6 अगस्त से दैनिक आधार पर सुनवाई शुरू की , हालांकि मुस्लिम पक्ष ने दैनिक सुनवाई का विरोध किया | हिन्दू पक्षकारों का काम तो हाईकोर्ट की ओर से करवाई गई खुदाई ने ही पूरा कर दिया था , जिस में मंदिर के अवशेष मिले हैं | सभी हिन्दू पक्ष और शिया वक्फ बोर्ड ने भी अपनी दलीलें 16 दिन की सुनवाई में पहली सितम्बर को पूरी कर थीं |

 
अब जब कि सुप्रीमकोर्ट फैसले के करीब आ गई है तो यह जानना भी जरूरी है कि असल में जब यह शिया मस्जिद थी , तो सुन्नी वक्फ बोर्ड कैसे दावेदार बना | शिया वक्फ बोर्ड ने अगस्त में सुनवाई के दौरान कहा कि वह पक्षकार था , लेकिन निचली अदालत ने उन का हक खारिज कर दिया था | यह समझना भी महत्वपूर्ण होगा कि यह सिर्फ जमीनी विवाद नहीं है , भले ही सुप्रीमकोर्ट ने जमीनी पक्ष पर ही फैसला करने की बात कही है | यह वास्तव में हिन्दुओं और मुसलमानों का मामला है , इसकी पृष्भूमि अदालत ने ही तय की थी | जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में बाबरी मस्जिद पर हक जताने का मुकद्दमा दायर किया तो फैजाबाद की जिला अदालत ने मुकदमें को हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच रिप्रजेन्टेटिव सूट बनाने का आदेश दिया था | कोर्ट ने खुद बाकायदा अखबारों में पब्लिक नोटिस निकाल कर हिन्दू पक्ष को पक्षकार बनने का न्योता दिया था | कोई भी मुकदमा दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आर्डर एक नियम आठ के तहत रिप्रजेन्टेटिव सूट बनाया जाता है | अदालत ने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधि घोषित किया , जिन लोगों ने हिन्दू पक्षकार बनने का दावा किया , अदालत ने उन्हें हिन्दू पक्षकार घोषित किया | तभी हिन्दू पक्षकार ने कहा कि वह पूरे हिन्दू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हैं | अदालत ने 20 मार्च 1963 को अखबारों में नया विज्ञापन जारी किया जिसमें हिन्दू महासभा, सनातन सभा और आर्यसमाज को हिन्दुओं की तरफ से प्रतिनिधि बनने का आग्रह किया गया था | सनातन धर्म सभा और आर्य समाज आगे नहीं आए , सिर्फ हिन्दू महासभा पक्षकार बनी थी | तब से यह मुकद्दमा रिप्रजेंटेटिव सूट बन गया ,जिसका मतलब है कि यह महज जमीन पर मालिकाना हक का मुकदमा नहीं है बल्कि दो समुदायों के बीच मुकदमा है और जो भी फैसला आएगा वह दोनों समुदायों पर बाध्यकारी होगा |

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