कौन भर रहा है दादियों-नानियों के कान

Publsihed: 19.Feb.2020, 10:42

अजय सेतिया / शाहीन बाग़ में बैठे प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीमकोर्ट की ओर से भेजे गए वार्ताकारों साधना रामचंद्रन और संजय हेगड़े के सामने भी महिलाओं को आगे कर दिया | जो नागरिकता क़ानून वापस लेने तक एक ईंच भी नहीं हटने पर अड़ी रहीं | नतीजा नहीं निकलना था और नहीं निकला | वार्ता अभी और चार दिन जारी रहेगी | देश की सहानुभूति हासिल करने के लिए दादियों , नानियों वाला लेफ्ट का नरेटिव चल निकला है | वार्ता कर के बाहर निकली साधना रामचंद्रन ने भी दादियों शब्द का इस्तेमाल किया | अनपढ़ बूढ़ी औरतों को सामने रख कर संविधान की लड़ाई लडी जा रही है , तो देशवासी इस का मतलब समझ सकते हैं |

अब यह बात खुल रही है कि विदेशी चंदों के माध्यम से मोदी के खिलाफ 2002 से 2014 तक मुहीम चलाते रहे वामपंथी एनजीओ के गिरोह इस धरने को गाईड कर रहे हैं | मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही विदेशी चंदे के दुरूपयोग की जांच शुरू करवा दी थी और चन्दा हासिल करने के नियम सख्त बना दिए थे | तब से ये सारे एनजीओ कोई न कोई बलवा करते रहते हैं | सुप्रीमकोर्ट ने साधना रामचंद्रन और संजय हेगड़े को धरने का स्थान बदलने के लिए राजी करने का जिम्मा सौंपा था | लेकिन बुधवार को जब दोनों शाहीन बाग़ पहुंचने वाले थे तो उस से ठीक पहले तीस्ता शीतलवाड दादियों-नानियों के कान भर आई थीं | वह कह आई थी कि धरने का स्थान बदला तो आन्दोलन कमजोर होगा |  

यह वही तीस्ता शीतलवाड है जिस ने गुजरात के दंगा प्रभावित मुसलमानों को राहत पहुँचाने के नाम पर इक्कठा किए चंदे का खुद की मौज मस्ती के लिए इस्तेमाल किया था | खुद तीस्ता शीतलवाड का सहयोगी रईस पठान उन पर झूठे दस्तावेज बनाने का आरोप लगा चुका है | इन्होने मोदी के खिलाफ झूठे सबूत बनाए थे | उन पर इन सब घपलेबाजियों के केस चल रहे हैं | सुप्रीमकोर्ट क्या इन बातों का संज्ञान लेगा कि उस की मंशा के खिलाफ धरने पर बैठी औरतों को कौन कौन भड़का रहा है | वार्ताकारों के धरना स्थल पर पहुंचने से पहले तीस्ता शीतलवाड दादियों नानियों को भडकाने गईं थी , तो दोनों वार्ताकारों के बाद सुप्रीमकोर्ट के वकील महमूद प्राचा भडकाने वाला भाषण देते देखे गए | उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ आन्दोलन को जारी रखना है |

वजाहत हबीबुल्ला वार्ताकारों के साथ मौजूद नहीं थे , उन्हें वार्ताकारों की मदद करने को कहा गया था | वह वार्ताकारों के जाने के बाद मंच पर मौजूद थे | धरना देने वालों के लोकतांत्रिक हक की बात कह कर  वजाहत हबीबुल्ला ने भी तालियाँ बजवाई | हबीबुल्ला भी मोदी सरकार आने के बाद पैदल हैं , वरना कांग्रेस राज में तो रिटायरमेंट के बाद भी अनेक पदों पर तैनात किए जाते रहे थे | औरतों ने वार्ताकार साधना रामचंद्रन और संजय हेगड़े से कहा कि वे संविधान बचाने की लड़ाई लड रही हैं | पता नहीं उन्होंने संविधान की कापी देखी भी है या नहीं , पढना तो दूर की बात | सुप्रीमकोर्ट ने इन दोनों को सिर्फ धरने का स्थान बदलने के लिए राजी करने को भेजा था | लेकिन उन्होंने अपनी सीमा लांघ कर आन्दोलन का समर्थन किया | आन्दोलन और विरोध के उन के अधिकार की बात कह कर अपने पक्ष में तालियाँ बजवाईं |

कई मुस्लिम वकील शाहीन बाग़ में जा रहे हैं , लेकिन कोई इन बूढ़ी दादियों के दिमाग में भरा जहर नहीं निकाल रहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सताए गए लोगों को नागरिकता देने के लिए है , जिस का विरोध करना इंसानियत के भी खिलाफ है | वार्ताकारों के सामने वे सभी बूढ़ी दादियाँ मालाओं के मनके घुमाते हुए इंसानियत भूल कर नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ बोलती रहीं | उन्होंने कहा कि वे संविधान बचाने के लिए बैठी हैं और जब तक नागरिकता संशोधन क़ानून वापस नहीं लिया जाता , वे एक ईंच भी नहीं हटेंगी | जब तक उन की परेशानियों का हल नहीं निकलेगा तब तक रास्ता नहीं खुलेगा | उन्होंने शर्त रख दी है कि क़ानून वापस हो तभी सडक खुलेगी |  

सुप्रीमकोर्ट को धमकी भी दी गई कि सडक खुली तो कोई गोली चला देगा | वार्ताकारों को यहाँ तक कहा गया कि –“ हम ने अंग्रेजों को भगा दिया , ये सरकार क्या चीज है |” यह भाषा साफ़ दर्शाती है कि लड़ाई भारत पर मुस्लिम हक की है , डर यह है कि मोदी के आने के बाद भारत को दारुल-इस्लाम बनाने का मकसद पूरा होना असम्भव होता जा रहा है |

 

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