किसान समृद्धि के लिए देशी फार्मूले-2 

Publsihed: 19.Jan.2021, 19:26

अजय सेतिया / कहते हैं –दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है | सुप्रीमकोर्ट के साथ हाल ही में तीन घटनाएं हुई | पहली बार अयोध्या के मामले में बातचीत से हल निकालने के लिए कमेटी बनाना , जबकि उस का काम मुकद्दमे का फैसला करना था | वह इस पंचायती में फेल रही और अंतत: क़ानून के मुताबिक़ फैसला करना पड़ा | दूसरा मामला शाहीन बाग़ का था , जब उसे पुलिस को फटकार लगा कर सडक खाली करवाने का आदेश देना चाहिए था , लेकिन उस ने मुसलमानों से बातचीत के लिए कमेटी बना दी | अब तीसरी घटना किसानों के आन्दोलन की हुई है , जब उस ने संसद से पारित कानूनों में दखल देते हुए किसानों से बात कर कोर्ट को सुझाव देने के लिए कमेटी बना दी | जबकि उसे कानूनों की सवैधानिकता जांचने के सिवा, संसद से पारित कानूनों में किसी तरह के दखल का अधिकार नहीं | कमेटी के एक सदस्य के इस्तीफे और किसानों की ओर से कमेटी के साथ बातचीत से इनकार करने के बाद अब जब चौथा मामला 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली का सामने आया , तो सुप्रीमकोर्ट ने हाथ खड़े करते हुए कहा- यह क़ानून व्यवस्था का मामला है  , आप जानों , हम क्यों दखल दें | जबकि इस बार तो पुलिस खुद आदेश लेने पहुंची थी |

खैर अपन ने कल के कालम में कृषि और किसानों की समृद्धि के लिए राजस्थान के एक बुजुर्ग किसान शंकरलाल सींवर के देसी फार्मूले की बात शुरू की थी | कल उत्पादन की चर्चा हो गई थी ,आज भंडारण, प्रसंस्करण यानि प्रोसेसिंग और विपणन यानि बाजार पर बात करते हैं |

दूसरा प्रस्ताव-भंडारण : शंकरलाल सींवर कहते हैं कि हर गांव को एक कंपनी मान लिया जाए, हर किसान उसका शेयर होल्डर हो | खाद्यान्न उत्पादन के अनुसार, हर गांव का अपना वेयर हाउस हो, जिसमें हर किसान अपने सरप्लस उत्पादन को रख सके | सब्जियों और फलों के रख रखाव के लिए फ्रोजन सेंटर हो | नितिन गडकरी जब भाजपा अध्यक्ष थे , तब अपने साथ हुई एक बातचीत में उन्होंने हर गाँव में को-आपरेटिव सोसायटी बना कर इसी तरह की संरचना का सुझाव दिया था |

तीसरा प्रस्ताव-प्रसंस्करण  : जरूरत के अनुसार प्रोसेसिंह युनिट हों | हर ब्लाक पर एपीडा का एक नोडल आफिस हो, जो गांव के अतिरिक्त उत्पादों को प्रोसेस या मांग के अनुसार निर्यात कराने में ज़रूरी मानकों को पूरा कराए, ताकि निर्यात आबाध गति से होता रहे | गांव के भंडारण और प्रोसेसिंग केंद्र बन जाने से गांव लघु उद्योगों के हब बन जाऐंगे | क्योंकि हर गांव अपनी ही अतिरिक्त उपज को प्रोसेसिंग कर सकेगा ,इसलिए ज़रूरी होगा कि बड़े कारखानों के बजाय, ऐसी छोटी मशीनों का उपयोग किया जाए, जो एक गांव की उपज को प्रोसेस कर सके | 

चौथा प्रस्ताव-विपणन यानि मार्केटिंग : नितिन गडकरी के सुझाव के अनुसार ही शंकरलाल सींवर कहते हैं कि उत्पादन, भंडारण,  प्रोसेसिंग और मार्केटिंग को संचालित करने के लिए हर गांव में सोसायटियों गठित हों | इनमें हर 30 परिवारों से एक प्रतिनिधि लिया जाए | इसी तर्ज पर शहरों में हर बूथ स्तर पर सोसायटियों का गठन हो | यही सोसायटी पीडीएस धारकों को राशन दे | यही सोसायटी अतिरिक्त राशन को फिक्स ग्राहकों को फिक्स एमएसपी के अनुसार बेच दे | दूध समेत सभी कृषि उत्पादों की एमएसपी तय हो | कृषि को संरक्षित व्यापार के तौर पर विकसित किया जाए, जिसके बाजार पर उत्पादन से लेकर बेचने तक, किसानों का एकाधिकार हो | कृषि क्षेत्र में खुले बाजार की व्यवस्था समाप्त हो, मसलन गांव के पीडीएस धारकों का साल भर का राशन गांव के गल्ले से ही दे दिया जाए, जिसका भुगतान सरकार गांव की सोसायटी को कर दे | सरकार बस रेग्यूलेटरी की भूमिका निभाए | ये रेग्यूलेटरी, हर ग्राम पंचायत को आबादी के हिसाब से शहरों में उपभोक्ताओं की सोसायटी आवंटित करे | यही सोसायटी अब शहर में अपनी उपभोक्ता सोसायटी के परिवारों की रसोई से जुड़ी तमाम जरूरता की पूर्ति करेगी | असर ये होगा, कि किसान भी खुश होकर सब चीजों को एक अनुपात में बोऐंगे, कृषि उपज में संतुलन कायम होगा | यानि हर उत्पादक गांव, अपने उपभोक्ताओं के लिए सब कुछ क्र रहा होगा |

 उत्पाद विशेष : ड्राई फू्रट या कुछ मसालों समेत जिन चीजों की उत्पादन किसी क्षेत्र विशेष में ही होता है, वहां की ग्राम सोसायटी से मांग के हिसाब से पहले सीधे सोसयटी में आएगा, वहीं से वो उपभोक्ता सोसायटी को सप्लाई होगा | अगर नई कृषि नीति की मांग की जाए तो पूरे देश के किसान इससे सहमत होंगे, किसान ही नहीं शहरों में बैठे उपभोक्ता भी खुश होंगे | क्योंकि तब देश में यूरिया की जगह पशुओं का गोबर ले लेगा | स्वस्थ अन्न होगा, स्वस्थ मन होगा | 

क्या बदलाव करना होगा

मंडियों और एफसीआई का विकेंद्रीकरण करना होगा, यानि अब इनकी शाखाऐं हर गांव में होंगी | 

दुग्ध सहकारी संघों की जगह गावों को दूध उत्पादन और उसके विपणन की इकाई बनाना होगा |

 

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