ख़ाक करने वाले नक्सलियों को कांग्रेसी समर्थन

Publsihed: 17.Sep.2018, 15:30

अजय सेतिया / सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक्टिविज्म के चलते सरकार को संकट में डाल रखा है | अपन जिस मौजूदा घटना का जिक्र कर रहे हैं , वह माओवादी नक्सलियों की मदद करने वाले समुदाय की है | जिन्हें सामान्य भाषा में शहरी नक्सली कहा जा रहा है | वे वामपंथी विचारधारा के पढ़े लिखे लोग हैं, जो लोकतंत्र में विश्वाश नहीं रखते | वे चुनावों में भाकपा और माकपा की मदद करते हैं, पर खुद चुनावी राजनीति में विशवास नहीं रखते | उन का मानना है कि सामाजिक बदलाव बन्दूक के जरिए ही होगा | वे खुद बन्दूक नहीं उठाते , पर जब जब माओवादी नक्सली बन्दूक चलाते हैं, वे अखबारों में उन के पक्ष में लेख लिखते हैं | टीवी चैनलों पर आ कर उन के पक्ष में बोलते हैं | उन में से कई बीहड़ जंगलों में जा कर बंदूकधारी माओवादियों को बोद्धिक ज्ञान दे कर उन की रगों में उत्साह भरते हैं |

देश का गृह मंत्रालय जब भी हिंसक घनाओं का बयोरा जारी करता है | उस में धार्मिक आतंकवाद, जातीय संघर्ष और नक्सली हिंसा की रिपोर्टें होती है | पिछले तीस साल की सभी रिपोर्टों में नक्सली हिंसा और उस से निपटने के तरीकों का जिक्र होता है | नक्सलियों को बाहर से मिलने वाली मदद का जिक्र भी होता है | जिन्हें शहरी नक्सली कहा जाता है, उन की गिरफ्तारियां भी होती रही हैं | आंध्र प्रदेश, झारखंड और छतीसगढ़ नक्सलियों की कर्मस्थली बनी हुई है | जहां महीने दो महीने में बड़ी माओवादी नक्सली हिंसा की खबर आती रहती है | कभी बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी मारे जाते हैं, कभी राजनीतिक नेताओं का अपहरण होता है | एक बार तो माओवादियों ने छतीसगढ़ के समूचे कांग्रेस नेतृत्व का सफाया कर दिया था | उस के बाद से कांग्रेस छतीसगढ़ में कभी उभर नहीं पाई | तब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे | उन्होंने नक्सली हिंसा को देश के लिए सब से बड़ा खतरा कहा था |

31दिसम्बर 2017 को महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में दलितों ने एक रैली रखी थी | इसी रैली के दौरान दलितों और सवर्णों में भयंकर हिंसा हुई थी | पुलिस ने लम्बी छानबीन के बाद 5 शहरी माओवादी नक्सलियों को हिरासत में लेने का फैसला किया | कवि और माओवादी विचारक वरवर राव वकील सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरागौतम नवलखा व वरनॉन गोन्सालवेज़ | कांग्रेसी शाशन के दौरान इन शहरी नक्सलियों की प्रसाशन में जबरदस्त घुसपैठ हो चुकी है | इस का सबूत तब मिला , जब उन्हें हिरासत की बात लीक हो गई | हिरासत से पहले ही महाराष्ट्र हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में याचिकाएं दाखिल हो गईं | याचिका दाखिल करने वाली कांग्रेसी इतिहासकार रोमिला थापर और वकील काग्रेसी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी | सुप्रीमकोर्ट ने पाँचों की गिरफ्तारी रोक कर उन्हें घर में नजरबंद रखने का हुक्म सुना दिया | यह हुक्म किस क़ानून के तहत हुआ है , किसी को कुछ नहीं पता | अपन ने पोलिटिकल साईंस में पढ़ा था कि क़ानून बनाना संसद का काम है | सुप्रीमकोर्ट संसद से बने क़ानून को लागू करवाती है | वह क़ानून के संविधानसम्मत होने या नहीं होने की व्याख्या कर सकती है | पर खुद क़ानून नहीं बना सकती , अब जज का कहा ही क़ानून होने लगा है | जिसे केंद्र सरकार ने चुनौती दी है |

पुलिस अपना काम नहीं कर पा रही | सोमवार को सुप्रीमकोर्ट ने सुनवाई की तो नजरबंदी 19 सितम्बर तक और बढ़ा दी | तब तक महाराष्ट्र पुलिस को सबूत लाने को कहा है | पर केंद्र सरकार ने कोर्ट में वही स्टैंड लिया है जिस का जिक्र अपन ने ऊपर किया | सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा –“ सुप्रीमकोर्ट को प्रशाशन के काम में दखल नहीं देना चाहिए | नक्सलवाद की समस्या एक गंभीर मामला है , जो देशभर में फैल रहा है | इस तरह की याचिकाओं को सुना जाएगा तो ये एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा | क्या संबंधित ट्रायल कोर्ट इस तरह एक मामलों को नहीं देख सकती | हर मामले को सुप्रीम कोर्ट में क्यों आते हैं? ये काम निचली अदालत का है और ये कानूनी प्रक्रिया के तहत होना चाहिए | क्या ये संदेश नहीं दिया जा रहा है कि निचली अदालत काबिल नहीं है |”

महाराष्ट्र सरकार की दलील थी कि पुलिस के पास उनके खिलाफ पर्याप्त मैटेरियल है | पर अदालत ने कहा कि मेटीरियल है, तो उन्हें ही दिखाया जाए | यानि सुप्रीमकोर्ट खुद ट्रायल कोर्ट बन गई है | जिस पर केंद्र सरकार ने कडा एतराज जताया है | अपन इसे न्यापालिका और कार्यपालिका में टकराव के रूप में देखते हैं | पर अपन शहरी माओवादी नक्सलियों के कांग्रेसी वकील की दलील भी बता दें | अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पुलिस की आपत्ति एक कविता पर है | वह कविता आप भी पढ़ लें , और आप ही फैसला कर लें कि यह बगावत है या नहीं , यह हिंसा का समर्थन है या नहीं | क्या यह लोकतंत्र में वह असहमति की भाषा है, जिसे सुप्रीमकोर्ट ने सेफ्टी वाल्व कहा था | माओवादी नक्सलियों के समर्थन में शहरी नक्सलियों की यह कविता कुछ यों है- “ जब ज़ुल्म हो तो बगावत होनी चाहिए शहर में | अगर बगावत न हो तो सुबह होने से पहले ये शहर खाक होना चाहिए |”

 

 

आपकी प्रतिक्रिया