आज़ादी के बाद की राजनीति के एक युग का अंत

Publsihed: 17.Aug.2018, 21:02

अजय सेतिया / अटलजी की अस्थियाँ गंगा, यमुना और ताप्ती में प्रवाहित होंगी | राजघाट के करीब स्मृति स्थल बनाया गया है | जहां शुक्रवार को उन्हें अश्रुपूर्ण अंतिम विदाई दी गई | वहीं पर उन की याद में समाधि बनाई जाएगी | देश ने वाजपेयी को उतना ही सम्मान दिया , जितना 1964 में अंतिम विदाई के समय नेहरु को मिला था | नेहरु और वाजपेयी में एक समानता थी | दोनों ही अपने अपने समय के घोर लोकतंत्रवादी थे | शास्त्री, इंदिरा ,राजीव, वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, नरसिंह राव के समय लोकतंत्र की उतनी छाप नहीं बनी | तो इस की वजह उन के मंत्रिमडल में किसी का भी उन के बराबर के कद का नहीं होना था | नेहरु और वाजपेयी के मंत्रिमंडलों में अपने समय के बड़े कद के लोकप्रिय नेता शामिल थे | इस लिए नेता के लोकतांत्रिक होने की परख बराबरी के नेताओं का मुखिया होने पर होती है | प्रधानमंत्री के नाते नेहरु के तानाशाहीपूर्ण व्यवहार के कई उदाहरण मिलते हैं | पर नेहरु और वाजपेयी ने अपने मंत्रिमंडलों की बैठकों में खुद को लोकतांत्रिक साबित किया |

मुरली मनोहर जोशी 13 दिन की सरकार में वाजपेयी के गृहमंत्री थे | बाद में जब 1998 में सरकार बनी , तो वह लम्बा समय मानव संसाधन मंत्री बने | नरसिंह राव के बाद वह सब से लोकप्रिय और कारगर मानव संसाधन मंत्री थे | जन संघ और भाजपा में भी वह लंबा समय वाजपेयी के सहयोगी थे | अस्सी नब्बे के दशक में भाजपा जो तिकड़ी मशहूर हुई | वह अटल आडवाणी जोशी की थी | जोशी बताते है कि वाजपेयी के समय मंत्रिमंडल की बैठक एक परिवार की तरह होती थी | परिवार के बड़े की तरह वह सब की सुनते थे | किसी मुद्दे पर आम सहमती न बने तो वह फैसला अगली बैठक पर टाल देते थे | केबिनेट पर कभी अपनी राय नहीं लादी | वह लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी थे | मुरली मनोहर जोशी का यह कथन वाजपेयी को सच्चा लोकतंत्रवादी साबित करता है | नहेरु के मंत्रिमंडल में भले ही उन का कद काफी बड़ा था | पर मंत्रिमंडल में उन के कद के और भी कई नेता थे | इस लिए नेहरु अपनी मनमानी नहीं कर सकते थे |

वैसे संघ परिवार और भाजपा नेहरु विरोधी रहा है | देश की समस्यायों का कारण नेहरु को माना जाता है | पर संघ के प्रचारक और जनसंघ , भाजपा के जन्मदाता होने के बावजूद वाजपेयी नेहरु के प्रसंशक रहे हैं | 1957 से 1964 तक आठ साल दोनों इक्कठे संसद के सदस्य भी रहे हैं | जनसंघ के पहले राष्ट्रीय नेता के रूप में वाजपेयी की पहचान बनी , तो नेहरु ने उस नाते उन को सम्मान भी दिया | नेहरु ने ही एक विदेशी मेहमान से वाजपेयी का परिचय करवाते हुए उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री बताया था | शायद नेहरु के नजदीक रहने के कारण वाजपेयी नेहरूवादी बन गए | कश्मीर समस्या का बातचीत से हल करने की वकालत करते हुए वह प्रधानमंत्री के रूप में कश्मीर गए थे | तब उन से पूछा गया था कि क्या कश्मीर समस्या का हल संविधान के दायरे में ही होगा | तो उन्होंने जवाब दिया कि इंसानियत के दायरे में होगा | यह वाजपेयी के अपनी विचारधारा से बाहर निकल कर सोचने का पहला उदाहरण था | प्रधानमंत्री के नाते वाजपेयी संघ की तरह देश को नहीं सोचते थे | इस लिए स्वदेशी जागरण मंच जैसे संघ के कई संगठन उन के घोर आलोचक बन गए थे | पर उन की सोच हमेशा देश को सामने रख कर हुआ करती थी | जिस का संघ भी कायल था | 

वाजपेयी के बारे में विपक्षी नेता भी कहा करते थे कि वह आदमी तो अच्छे हैं, पर गलत दल में हैं | 1996 में जब वह अपना बहुमत साबित नहीं कर पा रहे थे , तो उन्होंने लोकसभा में विपक्षी दलों का जूमला उन पर ही फेंक दिया था | जब उन्होंने हंसी के ठहाकों के बीच विपक्ष के सांसदों से पूछा था कि अब इस अच्छे आदमी के साथ क्या करने का इरादा है | वह सिर्फ भाजपा नहीं , अपने विरोधियों के बीच भी बेहद लोकप्रिय थे | जिस की झलक गुरूवार को उन के देहांत के बाद शुक्रवार को उन का अंतिम संस्कार होने तक देश ने देखी | जब शवयात्रा जामा मस्जिद के इलाके से निकल रही थी, तो उन पर फूल बरसाए गए | वहा खड़े मुस्लिमों ने वाजपेयी अम्र रहे के नारे लगाए | डाह संस्कार के समय सभी दलों के नेता कार्यकर्ता गमगीन थे | वाजपेयी के चले जाने के बाद आज़ादी के बाद की भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया | अब देश में उन के कद का कोई नेता नहीं बचा |

 

आपकी प्रतिक्रिया