कोर्ट और सरकार के अलग रास्ते

Publsihed: 17.Dec.2020, 22:29

अजय सेतिया / जाने माने राजनीतिक ड्रामेबाज अरविन्द केजरीवाल किसान आन्दोलन से पंजाब, हरियाणा , यूपी और उतराखंड में राजनीतिक फसल के सपने देख रहे हैं | 2014 में प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले केजरीवाल ने चुनाव नतीजों के बाद कान पकड़ लिए थे , उन्होंने एलान किया था कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में सीमित रहेगी | लेकिन फिर उन्होंने पंजाब और गोवा में सरकार बनाने का सपना देख लिया था | अब जब से किसानों ने दिल्ली में डेरा डाला है , केजरीवाल रोज नया ड्रामा कर रहे हैं , कभी धरना स्थल पर पहुंच जाते हैं , कभी खुद को घर में कैद कर के नजरबन्दी का आरोप लगा देते हैं , कभी किसानों के साथ उपवास करने लगते हैं , और अब तो विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर तीनों कृषि बिलों को फाड़ने का नाटक कर डाला |

इस तरह वह राहुल गांधी से एक कदम आगे निकल गए हैं , राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल का पास किया गया अध्यादेश का प्रारूप ही फाड़ा था , केजरीवाल ने तो संसद से पारित और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से लागू हो चुके क़ानून को ही फाड़ दिया | वैसे यह संसद की अवमानना का मामला बनता है , लेकिन लोकसभा स्पीकर उन्हें तलब कर के हीरो बनने का मौक़ा नहीं देंगें | उधर भारतीय जनता पार्टी ने राहत महसूस करना शुरू कर दिया है कि सुप्रीमकोर्ट के दखल के बाद किसान आन्दोलन असीमित समय के लिए नहीं चल पाएगा , क्योंकि सुप्रीमकोर्ट पहले शाहीन बाग़ आन्दोलन को भी नागरिक अधिकारों के खिलाफ करार दे चुका है | हालांकि गुरूवार को किसान आन्दोलन के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि वह 'राइट टू प्रोटेस्ट' के अधिकार में कटौती नहीं कर सकती | लेकिन इस के साथ ही चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने यह भी कहा कि किसान अपना प्रदर्शन भी करे और लोगों के अधिकारों का उलंघन भी न हो |

चीफ जस्टिस ने दो टूक कहा कि वह किसानों की दुर्दशा को जानते हैं और उन की सहानुभूति उन के साथ हैं , लेकिन उन्हें आन्दोलन के तरीके को बदलना होगा | कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी पूछा कि क्या वह किसानों से बातचीत के दौरान कृषि कानूनों को होल्ड करने को तैयार हैअटार्नी जनरल ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया , वह जानते हैं कि सरकार ऐसा शायद ही करेगी , क्योंकि सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने गुरूवार को ही किसान आन्दोलन के खिलाफ जनजागृति अभियान शुरू कर दिया | कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों को चिठ्ठी लिख कर वामपंथियों और बाकी विपक्षी दलों की ओर से फैलाई जा रही एक एक भ्रान्ति का जवाब दिया है | अटार्नी जनरल ने कोई रिस्क न लेते हुए कहा कि वह इस पर सरकार से निर्देश ले कर बताएंगे | सरकारी वकील हरीश साल्वे ने दलील रखी कि प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली आने वाले रास्तों को ब्लॉक कर रखा है, जिससे दूध, फल और सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं, जिससे अपूरणीय क्षति हो सकती है | हरीश साल्वे ने कहा कि आप शहर को बंदी बनाकर अपनी मांग नही मनवा सकते |

चीफ जस्टिस ने किसानों से बातचीत के लिए वैसी ही कमेटी बनाने की इच्छा जताई है , जैसी उस ने शाहीन बाग़ के धरने की जगह बदलने के लिए धरने पर बैठे मुसलमानों से बातचीत करने के लिए बनाई थी | पर अपन को याद रखना चाहिए कि वह कमेटी फेल हो गई थी | उस कमेटी में वामपंथी टाईप वकील थे , जो चाहते ही नहीं थे कि सडक पर लगा धरना खत्म हो और शाहीन बाग़ का रास्ता खुले | उस कमेटी ने तो यह रिपोर्ट दे दी थी कि रास्ता तो पुलिस ने बंद किया है | चीफ जस्टिस ने किसानों से बातचीत के लिए भी जिस पत्रकार पी. साईनाथ का नाम लिया है , वह कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार लिख रहा है | पी. साईनाथ की पृष्ठभूमि भी वामपंथी है | इस लिए लगता नहीं कि सरकार कोर्ट की सलाह को मानेगी |

सरकारी प्रचार एजेंसी पीआईबी ने बाकायदा श्वेतपत्रनुमा 106 पेज की हिन्दी और अंगरेजी में पुस्तिका छाप कर वितरित करनी शुरू कर दी है , जिस में बताया गया है कि मोदी सरकार ने पिछले छह सालों में अन्नदाता के हित में क्या क्या काम किए हैं | यह विपक्ष और किसानों के आन्दोलन का जवाब देने के लिए किया जा रहा है | भाजपा ने भी राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू कर दिया है | योगी आदित्य नाथ जनता की नब्ज को बहुत अच्छी तरह जानते हैं , उन्होंने जैसे शाहीन बाग़ आन्दोलन को बेनकाब किया था , वैसे ही किसान आन्दोलन पर  हमला बोलते हुए कहा कि रामजन्मभूमि मंदिर बनने और कश्मीर में 370 हटने से परेशान विपक्ष ने किसानों से आन्दोलन शुरू करवाया है |

 

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