अजय सेतिया / अपन ने कल राहुल गांधी के विदेशी अखबारों के सहारे भारत में राजनीति करने का खुलासा किया था | अमेरिका के अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल में छपी खबर को आधार बना कर राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि भाजपा में फेसबुक और वॉट्सऐप पर बीजेपी और आरएसएस का कब्जा है | ये इसके जरिए फेक न्यूज और नफरत फैलाते हैं और चुनाव को प्रभावित करने में भी इनका इस्तेमाल करते हैं | राहुल गांधी ने यह भी लिखा था कि आखिरकार, अमेरिकी मीडिया में फेसबुक के बारे में सच बाहर आ गया | इस खबर में फेसबुक के एक पूर्व कर्मचारी के हवाले से कहा गया था कि भाजपा का एक विधायक टी.राजा नफरत भरी पोस्ट डालता है , लेकिन जांच टीम की ओर से सिफारिश किए जाने के बावजूद फेसबुक ने यह अकाऊंट बंद नहीं किया | सवाल पैदा होता है कि अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल में फेसबुक के खिलाफ यह खबर किस ने छपवाई थी |
राहुल गांधी और उन के समर्थक मीडिया बंधुओं की ओर से 48 घंटे के अंदर जिस तरह वाल स्ट्रीट जर्नल का प्रचार किया गया है , उस से शक पैदा होता है कि यह खबर प्रायोजित है | नरेंद्र मोदी की ओर से 2014 के चुनाव में फेसबुक, ट्विटर, इन्स्ताग्राम आदि सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से प्रभावित और भयभीत राहुल गांधी 2019 के चुनाव में मोदी से भी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी | जिस के लिए राहुल गांधी ने ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका कम्पनी का सहारा लिया था |
कैंब्रिज एनालिटिका ने अक्टूबर 2017 में कांग्रेस पार्टी के सामने 50 पेज का एक प्रपोजल रखा | इस प्रपोजल का टाइटल था ' डाटा ड्रिवन कैंपेन, द पाथ टू द 2019 लोक सभा ' | कैंब्रिज एनालिटिका का प्रस्ताव फेसबुक का डाटा इस्तेमाल करते हुए राहुल गांधी का चुनाव प्रचार करना था | यह मामला लीक हो गया था , जिस कारण कैंब्रिज एनालिटिका को अपनी इलेक्शन कम्पेन यूनिट ही बंद करनी पड़ी थी | राहुल गांधी फेसबुक का इस्तेमाल करने के लिए सौदा करते हुए रंगे हाथों पकड़े गए थे | अब जब राहुल गांधी ने भाजपा और आरएसएस पर फेसबुक पर कब्जा करने का आरोप लगाया है तो रविशंकर प्रशाद ने उन्हें याद दिलाया है कि फेसबुक का इस्तेमाल करते हुए तो वह खुद रंगे हाथों पकडे गए थे |
फेसबुक एक सार्वजनिक मंच है , जिस में कोई भी अपना खाता खोल कर मन की बात कह सकता है | राहुल गांधी का खुद का फेसबुक में अपने नाम से पेज है , जिसे वह दिन में कई बार अपडेट करते हैं | अपन ने कल लिखा था कि जिस टी.राजा की पोस्ट को आधार बना कर वाल स्ट्रीट जर्नल ने खबर लिखी है , उसे पढ़ कर कोई भी समझ सकता है कि भारत के एक शहर हैदराबाद के दो राजनीतिज्ञों टी.राजा और असुद्दुदीन ओवैसी की साम्प्रदायिक नोंक झोंक में वाल स्ट्रीट जर्नल जैसे अमेरिकी बड़े अखबार की कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती | इस खबर में दिलचस्पी सिर्फ उन लोगों को होगी , जो इसे अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करना चाहते हों | स्वाभाविक है कि वाल स्ट्रीट जर्नल में खबर छपवाने की भूमिका दिल्ली में लिखी गई थी | जिन लोगों ने भारत में इस खबर को सोशल मीडिया पर इस्तेमाल किया , राहुल गांधी और उन के फोलोवर्स के अलावा वे या तो मुस्लिम समाज के अग्रणी नेता हैं , या वामपंथी विचारधारा के एक्टिविस्ट |
सोशल मीडिया पर बेहद कमजोर पड रहे और आए दिन हंसी का पात्र बन रहे राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के सब से बड़े स्रोत फेसबुक पर हमला बोला है , तो फेसबुक ने भी उन्हें मुहं तोड़ जवाब देते हुए कहा है कि “ हम हेट स्पीच और हिंसा भड़काने वाले कंटेंट पर रोक लगाते हैं और हम अपनी नीतियां बिना किसी की पार्टी या फिर राजनीतिक संबंध या पोजीशन देखे लागू करते हैं”
अपन ने कल खुलासा किया था कि टी.राजा देश के एकमात्र हिन्दू नेता हैं जो असादुद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी को उन्हीं की भाषा में मुहं तोड़ जवाब देते हैं | अब जब वाल स्ट्रीट जर्नल ने उन के राजनीतिक दुश्मन टी. राजा की पोस्टों को आधार बना कर फेसबुक पर प्रायोजित हमला किया है तो सोमवार को ओवैसी ने भी फेसबुक पर हमला करते हुए कहा कि फेसबुक के अलग-अलग देशों के लिए अलग अलग मानक क्यों है , यह किस तरह का निष्पक्ष मंच है |” यानी राहुल गांधी के बाद असादुद्दीन ओवैसी के निशाने पर भी फेसबुक है , दोनों की साम्प्रदायिक राजनीति को क्योंकि फेसबुक जैसे मंचों का इस्तेमाल कर भारत का युवा खुले मन से नकार रहा है , इसलिए खिसियानी बिल्ली खम्भा नोच रही है |
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