बहुमत साबित न करना ही अल्पमत का सबूत 

Publsihed: 17.Mar.2020, 23:25

अजय सेतिया / मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ और राज्यपाल लाल जी टंडन में पत्रयुद्ध चल रहा है | यह पत्र युद्ध राज्यपाल ने 14 मार्च को शुरू किया था , जब उन्होंने कमलनाथ को कहा था कि वह 16 मार्च को अपना बहुमत सिद्ध करें | राज्यपाल ने एक चिठ्ठी स्पीकर को भी लिखी थी , जिस में 16 मार्च को सदन में बहुमत साबित करने की प्रक्रिया अपनाने का निर्देश था | स्पीकर ने राज्यपाल की चिठ्ठी की कोई प्रवाह नहीं की और कोरोना वायरस का बहाना बना कर सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक स्थगित कर दी | शायद भाजपा के नेताओं को खुद अपने राज्यपाल पर भरोसा नहीं था , इस लिए विधानसभा स्थगित होते ही शिवराज सिंह ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका लगा दी कि कमलनाथ ने राज्यपाल के कहने के बावजूद बहुमत साबित नहीं किया है , इसलिए उन्हें जल्द बहुमत साबित करने के लिए कहा जाए |

इधर भाजपा सुप्रीमकोर्ट पहुंची हुई है , जिस में कांग्रेस 16 बागी विधायक भी पार्टी बन गए हैं | कोर्ट ने कमल नाथ  और स्पीकर को नोटिस दे कर बुधवार सुभ 10 बजे तक अपना पक्ष रखने को कहा है | एक तरफ कोर्ट सुनवाई कर रही है तो दूसरी तरफ राज्यपाल और मुख्यमंत्री में पत्र-युद्ध चल रहा है | विधानसभा स्थगित करने के बाद कमलनाथ ने राज्यपाल को ऐसी कानूनी चिठ्ठी लिखी जिस की कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी , उन्होंने बहुमत साबित करने के लिए सदन को भेजे गए संदेश देने के उन के अधिकार को ही चुनौती दे दी | कमलनाथ ने इस चिठ्ठी में कहा कि बिना मंत्रिमडल से इजाजत लिए उन्हें सदन को संदेश भेजने का सवैधानिक हक नहीं है |

इया सम्बन्ध में उन्होंने सुप्रीमकोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया था | राज्यपाल ने उन का यह हास्यस्पद तर्क खारिज करते हुए अपनी जवाबी चिठ्ठी ने बताया कि सुप्रीमकोर्ट का वह फैसला सरकार के अल्पमत में आने के मामले में लागू नहीं होता | सुप्रीमकोर्ट के अनेक फैसले राज्यपाल के सदन को बहुमत का फैसला करने सम्बन्धी संदेश भेजने के अधिकार की पुष्टि करते रहे हैं , भले ही कोर्ट राज्यपाल की और से बहुमत साबित करने के लिए दिए गए समय को बढाती घटाती रही है | राज्यपाल ने अपनी नई चिठ्ठी में उन्हें  बहुमत साबित करने की 24 घंटे की नई मोहलत देते हुए यह भी लिखा था कि अगर वह बहुमत साबित नहीं करते तो यह माना जाएगा कि उन के पास बहुमत नहीं है |

राज्यपाल की चिठ्ठी के बाद कमलनाथ को यह अहसास हो गया था कि 16 मार्च को कानूनी नुक्तों पर लिखी उन की चिठ्ठी बेदम है , इस लिए 17 मार्च उन्होंने दो कदम उठाए  | एक तो सुप्रीमकोर्ट में याचिका लगाई कि राज्यपाल के विश्वासमत लेने के निर्देशों को गैर कानूनी घोषित किया जाए और दूसरा कमलनाथ ने खुद राज्यपाल को चिठ्ठी लिख कर दो-टूक कहा वह बहुमत साबित नहीं करेंगे | भाजपा चाहे तो अविश्वासमत का प्रस्ताव ले आए , उन्होंने यह भी लिखा कि शायद भाजपा ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे भी दिया है जिस पर स्पीकर उचित समय पर कार्रवाई करेंगे |

उनकी जवाबी चिठ्ठी पूरी तरह राजनीतिक है | राज्यपाल को लिखी चिठ्ठी में उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने कांग्रेस के16 विधायकों का अपहरण किया है, पहले उन्हें मुक्त करवाया जाए | हालांकि उन विधायकों ने मंगलवार को बेंगलूर में प्रेस कांफ्रेंस कर के साफ़ कह दिया है कि वे कमलनाथ सरकार के साथ नहीं हैं | संसदीय इतिहास में शायद यह पहला मौक़ा है कि किसी मुख्यमंत्री ने अल्पमत में आने के बाद राज्यपाल के निर्देशों के बावजूद बहुमत साबित करने से इनकार किया है | अगर भाजपा खुद सुप्रीमकोर्ट नहीं गई होती तो कमलनाथ ऐसा बिलकुल नहीं करते |

एक तरफ राज्यपाल अपने सवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए कमल नाथ सरकार को अल्टीमेटम दे रहे हैं , तो दूसरी तरफ  भाजपा ने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया | शायद यह भी पहला मौक़ा है जब केंद्र में सत्ताधारी पार्टी अपनी सरकार की ओर से नियुक्त अपने राज्यपाल पर भरोसा न कर के सुप्रीमकोर्ट गई होगी | वैसे राज्यपाल पर कोई बंदिश नहीं है कि वह कोर्ट में मामला लम्बित होने के कारण अपने विवेक से सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश नहीं कर सकते , शायद इसी आधार पर ही उन्होंने कोर्ट में याचिका होने के बाद कमलनाथ को 24 घंटे का समय दिया , लेकिन जब सुप्रीमकोर्ट ने भाजपा की याचिका पर मुख्यमंत्री और स्पीकर को नोटिस दे दिया है तो राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठेंगे |

 

आपकी प्रतिक्रिया