नागरिक क़ानून ने कर दिया ध्रुविकरण

Publsihed: 17.Dec.2019, 00:38

अजय सेतिया/ झारखंड विधानसभा के चुनाव नतीजों को नागरिकता संशोधन क़ानून पर जनमत संग्रह नहीं माना जाना चाहिए | भारतीय जनता पार्टी जीते , तो भी नहीं , और हारे , तो भी नहीं | क्योंकि झारखंड नागरिकता संशोधन क़ानून के असर वाले दायरे में नहीं आता | वैसे भी मोदी शाह भले ही इस गलतफहमीं में हों कि उनकी राष्ट्रवादी नीतियों का राज्य विधानसभा चुनावों पर असर होता है , पर यह सच नही है | अगर असर होता तो कश्मीर का अनुच्छेद 370 से पीछा छूट जाने का सब से ज्यादा असर हरियाणा विधानसभा के चुनाव नतीजों पर होता , जहां एक छोटे से इलाके को छोड़ कर सारा प्रदेश हिन्दू और हिंदूवादी है |

हालांकि यह कभी राजनीतिक या सामाजिक बहस का मुद्दा नहीं बना , लेकिन बोद्धिक वर्ग में यह बहस का मुद्दा बना हुआ है कि भारत का मुसलमान भारतीय संस्कृति में रच बस क्यों नहीं रहा | बंटवारे के समय मुस्लिम देश पाकिस्तान में जाने के बजाए वे इतनी बड़ी तादाद में भारत में क्यों रह गए  , क्या वे सचमुच धर्म के आधार पर राज्य के खिलाफ थे | अगर ऐसा था तो उन्हें भारत माता कहने पर एतराज क्यों है और उन्होंने बन्देमातरम का विरोध क्यों किया | इन दोनों मुद्दों पर उन का विरोध धर्म आधारित है | जहां तक सेक्यूलरिज्म का सवाल है तो जिन्ना ने भी पाकिस्तान को सेक्यूलर देश बनाने का वायदा किया था | सच यह है कि भारत की आज़ादी के समय भारत में रह गए मुसलमान कट्टर नहीं थे , वे खुले विचारों के थे , मुस्लिम लीग के साम्प्रदायिक आधार पर विरोध के कारण कांग्रेस कार्यसमिति ने बंदेमातरम के जिन चार पैराग्राफ को ही मान्यता दी थी , उन्हें मुस्लिम भी मन से गाते थे |

लेकिन धीरे धीरे भारतीय मुसलमानों पर वहाबी विचारधारा हावी हो गई , जिसके लिए जाकिर नाईक जैसे कई इस्लामी धर्म प्रचारक जिम्मेदार हैं | हालांकि कुरआन और हदीस में दुनिया को दारुल इस्लाम और दारुल हरब के रूप में बांटने का कोई जिक्र नहीं है , लेकिन वहाबी विचारधारा को मानने वाले मुस्लिम मानते हैं कि दुनिया में वे देश दारुल इस्लाम हैं , जहां इस्लाम का राज है और वे मुल्क दारुल हरब हैं जहा इस्लामिक राज स्थापित करना है | वे दारुल हरब को युद्ध की भूमि मानते हैं | उन की नजर में भारत दारुल हरब यानी युद्ध की भूमि है | इस लिए वे भारत में मुस्लिम घुसपैठ का समर्थन करते हैं | नागरिकता संशोधन क़ानून असल में भारत को दारुल इस्लाम बनाने की दिशा में बड़ी अडचन के रूप में सामने आया है | इस लिए आप ने देखा कि इस के खिलाफ सब से पहले देवबंद से आवाज उठी , जिस का पालन करते हुए जामिया मिल्लिया इसलामिया के अध्यापक संघ ने प्रदर्शन का आयोजन किया | और उस के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में आन्दोलन शुरू हुआ | अहमदाबाद , सूरत , मुम्बई जहां जहां मुस्लिम बड़ी तादाद में हैं , वहां वहां से आगजनी की खबरें आईं , जबकि नागरिकता संशोधन क़ानून में भारतीय मुसलमानों के खिलाफ कुछ भी नहीं है |

मुसलमानों के विरोध ने भारत में आज़ादी से पहले जैसा हिन्दू मुस्लिम ध्रुविकरण बना दिया है | जिस का भाजपा को निश्चित ही फायदा होगा क्योंकि उस ने अपने कोर वोट बैंक को बता दिया है कि उन की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है | आज़ादी के समय मुस्लिम हितों की रक्षा करने के लिए गांधी और गांधी की कांग्रेस देश की शासक पार्टी थी , जिस कारण उन के सभी हितों का ख्याल रखा गया | वह ख्याल बाद में इतना ज्यादा रखा गया कि सरकारी नीतियाँ ही नहीं क़ानून भी उन के हितों को सामने रख कर बनने लगे | कांग्रेस यहाँ तक कहने लगी कि संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है | बांग्लादेश के मुस्लिम घुसपैठियों तक को संरक्षण  दिया गया , जबकि इंदिरा गांधी ने उन्हें वापस भेजने का देश से वादा किया था | कांग्रेस की सरकारें संरक्षण देती देती मुस्लिम परस्ती तक पहुंच गई | इसलिए नागरिकता संशोधन क़ानून से हिन्दुओं का हौंसला बुलंद हुआ है कि कोई तो मुस्लिम परस्ती को रोकने और तीनों पडौसी मुल्कों से मुस्लिम आबादी की घुसपैठ रोकने वाला आया है |

हालांकि हर कोई मानता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह एनआरसी बना कर म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम घुसपैथियों की चाहे कितनी पहचान कर लें , वे उन्हें भारत से निकाल नहीं पाएंगे | लेकिन भारत का हिन्दू यह भी मानता है कि जिन तीन पडौसी देशों का क़ानून में जिक्र किया गया है , उन देशों से मुस्लिम घुसपैठ रुक जाएगी | इस लिहाज से राष्ट्रीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को फायदा होगा |

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