कोवाशिल्ड के खिलाफ कम्युनिस्ट साजिश

Publsihed: 16.Mar.2021, 17:27

अजय सेतिया / जब पुणे का सीरम इंस्टीच्यूट आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की खोज पर आधारित कोवाशिल्ड वेक्सीन का निर्माण कर रहा था | ठीक उसी समय ब्रिटेन में इसी वेक्सीन को फाईजर कम्पनी भी बना रही थी | फाईजर कम्पनी ने वेक्सीन का नाम एसट्राज़ेनेका रखा था , तो सीरम ने कोवाशिल्ड रखा था | चार जनवरी 2021 को एसट्राज़ेनेका की पहली वेक्सीन ब्रिटेन के 82 वर्षीय रिटायर्ड इंजीनियर ब्रियन पिनकर को दी गई थी | तब तक फाईजर एक करोड़ टीके तैयार कर चुका था , जिन्हें पहले ब्रिटेन में लगाया गया और फिर यूरोप के अन्य देशों और अमेरिका को भी भारी मात्रा में एसट्राज़ेनेका भेजी गई |

चार जनवरी को ब्रिटेन में एसट्राज़ेनेका पहली वेक्सीन लगने से ठीक एक दिन पहले भारत ने एसट्राज़ेनेका के भारतीय अवतार कोवाशिल्ड को मान्यता दी | कोवाशिल्ड के साथ ही भारत बायोटेक और आईसीएमआर के अनुसन्धान पर आधारित को-वेक्सीन को भी मान्यता दे दी गई थी , तो कांग्रेस, सपा , माकपा, तृणमूल , आप जैसे राजनीतिक दलों ने बवाल खड़ा कर दिया था | कोवेक्सीन का तीसरा ट्रायल बाकी था , लेकिन पहले और दूसरे ट्रायल के नतीजे कोवाशिल्ड से बेहतर थे | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भरोसा है तो पहली खुराक वह खुद क्यों नहीं लेते | मुलायम सिंह के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कोवेक्सीन को भाजपा की वेक्सीन कह कर खारिज किया था |

भाजपा और मोदी विरोध को पत्रकारिता का धर्म बताने वाले सैंकड़ों पत्रकारों ने भी अपने अनेक लेखों में इसी तरह के बेतुके तर्क दे कर भारत के सौ फीसदी देशी अनुसन्धान पर सवालिया निशान लगाए थे | इन एजेंडा पत्रकारों ने मोदी विरोध के कारण भारत के प्रतिष्ठित संस्थान आईसीएमआर के वैज्ञानिकों पर भी सवाल उठाए | यह लिख लिख कर वेक्सीन पर आशंका पैदा की गई कि मोदी और उन के मंत्री पहले वेक्सीन क्यों नहीं लगाते , इस का नतीजा यह निकला कि आज भी वेक्सीन केन्द्रों पर भीड़ नहीं उमड रही | वेज्ञानिकों ने वेक्सीन लगाने की प्राथमिकता तय की थी , सब से पहले कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले डाक्टरों , नर्सों , अस्पताल कर्मियों , सफाई कर्मियों को वेक्सीन लगनी थी और बाद में 60 साल से ज्यादा उम्र और 45 साल से ज्यादा उम्र वाले उन लोगों को वेक्सीन लगनी थी , जो घातक बीमारियों के शिकार थे |

पहली मार्च को जब दूसरा दौर शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद एम्स अस्पताल में जा कर पहली वेक्सीन ली , और भारत बायोटेक की कोवेक्सीन ही ली | यह विपक्ष के साथ साथ उन महान पत्रकारों के मुहं पर भी जोरदार तमाचा था , जो सारे देश को गुमराह कर रहे थे | लेकिन जब कोवेक्सीन के तीसरे ट्रायल के नतीजे आए तो चंडूखाने की पत्रकारिता और राजनीति करने वालों के होश उड़ गए , क्योंकि स्वदेशी कोवेक्सीन ब्रिटिश कोवाशिल्ड से कहीं बेहतर साबित हो गई | डब्ल्यूएचओ ने भारत को बधाई दी , क्योंकि भारत के वैज्ञानिकों ने दुनिया में अपनी श्रेष्ठता का झंडा गाड दिया | वामपंथी पत्रकार टोला अब नया सवाल उठा रहा है कि भारत में तो सभी को वेक्सीन दी नहीं जा रही , निर्यात क्यों किया जा रहा है | यानी किसी न किसी तरह विरोध करना ही है |

दूसरी तरफ दुनिया से दूसरे संकेत आ रहे हैं , एसट्राज़ेनेका वेक्सीन के दुष्प्रभावों की खबरों के बाद यूरोप के जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, स्लोवानिया, लातविया , आयरलैंड , नीदरलैंड जैसे 16 देश एसट्राज़ेनेका का वेक्सिनेशन बंद कर चुके हैं | भारत की कोवेक्सीन ने दुनिया भर में धूम मचा दी है , अब वही विपक्षी नेता जब खुद वेक्सीन लगवाने जा रहे हैं ,तो कोवेक्सीन की मांग कर रहे हैं , जबकि मोदी सरकार ने सारे सांसदों के लिए आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और सीरम की कोवाशिल्ड वेक्सीन का इंतजाम किया है , जिस की वे तारीफ़ और तरफदारी कर रहे थे | संसद भवन परिसर में सोमवार को अपन ने भी सांसदों के साथ ही कोवाशिल्ड लगवाई | यूरोप के 16 देश खून का थत्था जमने की शिकायत पर एसट्राज़ेनेका यानी कोवाशिल्ड पर रोक लगा चुके हैं , तो अब वही लोग भारत में भी कोवाशिल्ड पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं , जिन्हें पहले कोवेक्सीन को मान्यता पर एतराज था | अंतर्राष्ट्रीय साजिशों से सरकार बेखबर नहीं , इस लिए डाटा इक्कठा किया जा रहा है और राज्यों के साथ सलाह मशविरा कर के कोई फैसला होगा , क्योंकि अपनी वेक्सीन बेचने के लिए ब्रिटिश एसट्राज़ेनेका और भारतीय कोवाशिल्ड के खिलाफ कम्युनिस्ट चीन-रूस की साजिश भी हो सकती है |

 

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